हरिद्वार जिले (Haridwar District Everything )

हरिद्वार: एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल

हरिद्वार, जिसे हरद्वार भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। विद्वानों का मानना है कि यह स्थान भगवान बदरीनाथ एवं केदारनाथ का प्रवेशद्वार होने के कारण "हरिद्वार" या "हरद्वार" नाम से जाना जाता है।

गंगाद्वार का महत्व

हरिद्वार को "गंगाद्वार" कहा जाने का कारण यह है कि यहाँ से गंगा नदी मैदानी क्षेत्र में प्रविष्ट होती है। स्कन्द पुराण में इस क्षेत्र को "मायापुरी" कहा गया है, जो इसके आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। कुमाऊं में प्रचलित जागर गाथाओं में भी इसे "मायापुरहाट" के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि "मय" नामक दैत्य के निवास स्थली होने के कारण इसका नाम मायापुरी प्रचलित हुआ।

क्षेत्र का इतिहास

यह मान्यता भी है कि महामाया सती की नाभि गिरने के कारण इस क्षेत्र को "मायाक्षेत्र" कहा गया। भगवान शिव द्वारा अपनी माया से प्रजापति दक्ष को पुनर्जीवित करने के कारण भी इस क्षेत्र का नाम मायापुरी पड़ा। चौदवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र मायापुर या गंगाद्वार के नाम से जाना जाता था।

पुरानी पहचान

हरिद्वार के अन्य पुरानी नाम हैं:

  • गंगाद्वार
  • देवताओं का द्वार
  • तीर्थस्थलों का प्रवेश द्वार
  • स्वर्ग द्वार
  • मायापुर
  • खांडव वन क्षेत्र

प्रशासनिक विवरण

  • स्थापना वर्ष: 1988
  • मुख्यालय: हरिद्वार
  • पड़ोसी जिले/राज्य:
    • पूर्व में: पौड़ी
    • दक्षिण एवं पश्चिम में: उत्तर प्रदेश
    • उत्तर में: देहरादून

जनसांख्यिकी

  • क्षेत्रफल: 2360 वर्ग किमी
  • जनसंख्या: 18,90,422 (18.74%)
    • ग्रामीण: 11,97,328
    • शहरी: 6,93,094
  • पुरुष: 10,05,295
  • महिला: 8,85,127
  • जनघनत्व: 801 व्यक्ति/वर्ग किमी

साक्षरता और लिंगानुपात

  • साक्षरता दर: 73.43%
    • पुरुष: 81.04%
    • महिला: 64.79%
  • लिंगानुपात: 830
  • शिशु लिंगानुपात: 877

तहसील और विकासखंड

  • तहसीलें: हरिद्वार, रुड़की, लक्सर, भगवानपुर, नारसन
  • उपतहसील: लालढांग
  • विकासखंड: रुड़की, बहादराबाद, भगवानपुर, नारसन, लक्सर

विधानसभा सीटें

हरिद्वार जनपद में विधानसभा सीटें निम्नलिखित हैं:

  • रुड़की
  • पिरान कलियर
  • मंगलौर
  • भेल
  • ज्वालापुर (SC)
  • झबरेड़ा (SC)
  • लक्सर
  • खानपुर
  • हरिद्वार
  • हरिद्वार ग्रामीण
  • भगवानपुर (SC) (कुल 11)

हरिद्वार की यह जानकारी इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है। यहाँ की गंगा आरती, कुंभ मेले, और अन्य धार्मिक उत्सवों ने इसे विश्वभर में एक अद्वितीय स्थान दिलाया है।


हरिद्वार जिले के प्रमुख स्थल, मंदिर और तीर्थ

हरिद्वार, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहाँ कई प्राचीन मंदिर और तीर्थ स्थल हैं जो न केवल धार्मिक महत्त्व रखते हैं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। आइए, हरिद्वार जिले के प्रमुख स्थलों पर एक नज़र डालते हैं:

1. मायादेवी शक्तिपीठ

यह प्राचीन शक्तिपीठ नगर के मध्य स्थित है। मान्यता है कि माता सती द्वारा हवन कुण्ड में प्राणाहुति देने पर उनकी देह को भगवान रुद्र ने पूरे विश्व में घुमाया। इस क्षेत्र में माता सती का धड़ गिरा था।

2. कुशावर्त घाट

हर की पैड़ी के दक्षिण में स्थित कुशावर्त घाट को वर्तमान स्वरूप और दत्तात्रेय के मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा कराया गया था। यहाँ गऊ घाट भी है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है।

3. बिल्वकेश्वर महादेव

ललतारो पुल के समीप बिल्व पर्वत पर स्थित यह मंदिर शैलपुत्री उमा गौरी द्वारा शिव प्राप्ति हेतु तप करने के स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान उनके द्वारा बिल्व (बेल) के पत्ते खाकर जीवन यापन करने के लिए भी जाना जाता है।

4. श्रवणनाथ मंदिर

हरिद्वार के मोती बाजार में स्थित श्रवणनाथ मंदिर में पारद शिवलिंग है, जो शुद्ध पारे से निर्मित है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

5. नीलेश्वर महादेव मंदिर

नीलपर्वत पर स्थित स्वयम्भू श्री नीलेश्वर महादेव मंदिर यहाँ के धार्मिक महत्व को दर्शाता है।

6. कनखल

कनखल में दक्ष प्रजापति की राजधानी है। यहाँ सतीघाट, श्री हरिहर मंदिर, सतीकुण्ड, तिलभाण्डेश्वर महादेव मंदिर, और प्राचीन विश्वकर्मा मंदिर प्रमुख हैं।

7. मनसा देवी मंदिर

बिल्व पर्वत के ऊपर स्थित यह मंदिर माँ मनसा को समर्पित है, जिन्हें वासुकी नाग की पत्नी माना जाता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार श्रवणनाथ मठ के महंत शंतानंदनाथ ने कराया था।

8. चण्डी देवी मंदिर

नीलपर्वत पर स्थित इस मंदिर का विधिवत निर्माण 1886 में जम्मू के राजा सुचेत सिंह द्वारा करवाया गया था। यहाँ चैत्र चतुर्दशी को मेला लगता है।

9. काली माँ मंदिर

चंडीदेवी द्वार के पश्चिम में तरू गंगा के तट पर स्थित इस मंदिर का निर्माण गुरु अमरा ने संवत् 1858 में किया था।

10. सप्त ऋषि आश्रम

हर की पैड़ी के निकट सप्त ऋषियों की स्मृति में यह आश्रम स्थित है। मान्यता के अनुसार, यहाँ तपस्या करने वाले सात ऋषियों के कारण गंगा नदी सात धाराओं में विभक्त हुई थी।

11. नारायणी शिला

इस शिला की नक्काशी पुष्प जैसी है। कहा जाता है कि इसका आधा हिस्सा गया, बिहार में है।

12. चेहड़मल

यहाँ भूतों के राजा के रूप में जाने जाने वाले चेहड़मल का थान रूड़की के निकट तेलीवाला गांव में स्थित है। यहाँ प्रतिवर्ष मेले का आयोजन होता है।

13. गुग्घापीर या गुघाल की मजार

जहीर दीवान के रूप प्रसिद्ध यह मजार हिन्दु- मुस्लिम दोनों समुदायों के आराध्य हैं।

14. नौगजा पीर की मजार

यह मजार नौ गजों के साथ युद्ध स्थल में रहने के कारण "नौगजा" कहलाते हैं।

15. शाह विलायत पीर की मजार

1193 में बुखारा से भारत आए शाह विलायत की मजार यहाँ स्थित है।

16. जटाशंकर महादेव मंदिर

खानपुर में स्थित यह मंदिर घटोत्कच के जन्म स्थान के रूप में भी जाना जाता है।

अन्य प्रमुख स्थल

हरिद्वार जिले में अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी हैं, जैसे:

  • परमार्थ निकेतन
  • सुरेश्वरी देवी मंदिर
  • जयराम आश्रम
  • भारत माता मंदिर
  • दक्षेश्वर महादेव मंदिर
  • दूधाधारी बाबा का राम मंदिर
  • साक्षी गोपाल मंदिर
  • साधु बेला
  • पावन धाम

हरिद्वार का यह धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर इसे एक अनोखा और महत्वपूर्ण स्थल बनाती है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को इन स्थलों का दर्शन करने से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह स्थान भारत की समृद्ध संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक भी है।


पिरान कलियर की जानकारी

  1. स्थापना
    • नगर की स्थापना: 340-270 ई.पू. में राजा रामपाल द्वारा।
    • पुराना नाम: हरिद्वार गढ़फग।
    • नामकरण: राजा जोधसेन द्वारा किकट हरिद्वार रखा गया।
    • पुनः नामकरण: 1133 में राजा कल्याण पाल ने कलियर नाम रखा।
  2. सूफी संतों की मजारें
    • हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर।
    • हजरत इमाम अबु मोहम्मद सालेह।
    • हजरत शाह किलकिली।
    • हजरत गायब शाह।

हर की पैड़ी

  1. धार्मिक महत्व
    • पूर्व में ब्रह्मा का पूजा स्थल।
    • ब्रह्म कुण्ड, जहां कलश की बूंदें छलकी थीं।
    • महाराज भृतहरि का तप स्थल, जहां उन्होंने जीवन मुक्ति प्राप्त की।
  2. साहित्यिक महत्व
    • भृतहरि ने नीतिशतक एवं वैराग्य शतक की रचना की।
  3. निर्माण कार्य
    • सम्राट विक्रमादित्य द्वारा घाट एवं सीढ़ियों का निर्माण।

रुड़की

  1. नामकरण
    • रुडी नामक महिला के नाम पर।
  2. भौगोलिक स्थिति
    • सोनाली नदी के तट पर बसा शहर।
  3. शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियां
    • 1847 में थॉमसन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की स्थापना (एशिया का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज)।
    • 21 सितम्बर, 2001 को देश का सातवां आईआईटी।
    • 1960 में देश का पहला भूकंप इंजीनियरिंग विभाग।
    • 1995 में पहला जल विकास प्रशिक्षण केन्द्र।
  4. ऐतिहासिक तथ्य
    • पहले रेल का संचालन 22 दिसम्बर, 1851 को रुड़की से पिरान कलियर के मध्य।
    • पहले गो- वध निषेध आन्दोलन की शुरुआत 17 सितम्बर, 1918 को।
  5. उपाधियाँ
    • इंजीनियर्स का मक्का।

अन्य महत्वपूर्ण स्थल

  1. झबरेड़ा
    • लंढौरा रियासत का हिस्सा।
  2. गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय
    • 4 मार्च, 1902 को स्थापित।
    • 1962 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिला।
  3. गुरुकुल नारसन
    • 1939 में संस्कृत पाठशाला की स्थापना, 1958 में कृषि डिग्री कॉलेज।

 

हरिद्वार जिला: एक संक्षिप्त परिचय

भौगोलिक स्थिति और क्षेत्रफल हरिद्वार जिला उत्तराखंड राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 2360 वर्ग किलोमीटर है। यह अक्षांश 29.58° उत्तर और देशांतर 78.13° पूर्व पर स्थित है, और समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 249.7 मीटर है। यह जिला 28 दिसंबर, 1988 को अस्तित्व में आया और पहले सहारनपुर मंडल का हिस्सा था।

जिला प्रशासन और संरचना जिले का मुख्यालय रोशनाबाद में स्थित है, जो हरिद्वार रेलवे स्टेशन से 12 किमी दूर है। यहाँ प्रमुख प्रशासनिक संस्थान जैसे जिलाधिकारी कार्यालय, विकास भवन, जिला न्यायपालिका, और एसएसपी कार्यालय स्थित हैं। हरिद्वार जिला चार तहसीलों (हरिद्वार, रूड़की, लक्सर, भगवानपुर) और छह विकास खंडों (भगवानपुर, रूड़की, नारसन, बहादराबाद, खानपुर, लक्सर) में विभाजित है।

जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले की कुल जनसंख्या 18,90,422 है।


इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

हरिद्वार, जिसे 'ईश्वर का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह पवित्र गंगा नदी के किनारे स्थित है, जहाँ हर साल लाखों भक्त स्नान करने आते हैं।

कहा जाता है कि महान राजा भगीरथ ने गंगा नदी को अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर लाया। हरिद्वार में भगवान विष्णु, ब्रह्मा, और महेश का विशेष स्थान है, और इसे चार धामों (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री) के प्रवेश द्वार के रूप में भी माना जाता है।

हरिद्वार में हर की पौड़ी पर हर बारह वर्ष में कुंभ मेला और हर छह वर्ष में अर्ध कुंभ मेला आयोजित होता है। इस स्थान की धार्मिक मान्यता इतनी है कि इसे 'अमृत की बूंदों' का स्थान माना जाता है, जो यहाँ स्नान करने वालों के लिए मोक्ष का द्वार खोलता है।


प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन

हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय है। यहाँ के हरे-भरे जंगल, तालाब, और राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (10 किमी दूर) इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थल बनाते हैं। हर शाम, गंगा आरती की पवित्र ध्वनि और दीपों का प्रकाश घाटों को जगमगाता है, जो एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।


औद्योगिक विकास

हरिद्वार न केवल धार्मिक महत्व का स्थान है, बल्कि यह आधुनिक उद्योगों का भी केंद्र बन चुका है। भेल, एक नवरत्न पीएसयू, और सिडकुल (इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट) यहाँ कई उद्योगों की मेज़बानी करता है। इसके अलावा, रूड़की विश्वविद्यालय और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान विज्ञान, इंजीनियरिंग, और पारंपरिक शिक्षा में विश्व स्तर की सेवाएं प्रदान करते हैं।


प्रमुख फसलें

हरिद्वार जिले में गन्ना मुख्य फसल है, जिसके लिए यहाँ तीन प्रमुख चीनी मिलें स्थित हैं। इसके अलावा, आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन भी इस जिले की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। पतंजलि, शांतिकुंज, और गुरुकुल कांगड़ी जैसे संस्थान यहाँ आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन करते हैं, जो न केवल स्थानीय बाजार में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हैं।


कुंभ: एक पवित्र महापर्व

कुंभ पर्व का परिचय कुंभ पर्व भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत हिस्सा है, जिसका इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन किया गया, तो अमृत कलस निकला, जिसे राक्षसों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध में बचाने की आवश्यकता पड़ी। अमृत कलस की रक्षा के लिए ब्रहस्पति, सूर्य, चंद्र और शनि जैसे चार शक्तिशाली देवताओं को नियुक्त किया गया। ये देवता अमृत कलस को असुरों से बचाते हुए हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में पहुंचे। इस पवित्र घटना की स्मृति में हर 12 साल में इन चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।


धार्मिक महत्व कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें लाखों भक्त भाग लेते हैं। हरिद्वार में 2003 में कुंभ के दौरान 10 लाख से अधिक भक्तों की भीड़ जुटी थी। यह स्थान इसलिए पवित्र माना जाता है क्योंकि यहां गंगा नदी पहाड़ों से मैदानों में प्रवेश करती है।

इस पर्व के दौरान, विभिन्न आश्रमों के संत और साधु यहां आते हैं। नागा साधु, जो हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं और राख में लिपटे होते हैं, इस महापर्व का हिस्सा होते हैं। ये साधु तप करते हैं और किसी भी मौसम की परवाह नहीं करते। इसके अलावा, उर्ध्ववाहुर्रस और पारिवाजक जैसे साधु भी इस अवसर पर उपस्थित रहते हैं, जो अपनी विशेष साधना विधियों के लिए जाने जाते हैं।


स्नान का महत्व कुंभ के दौरान गंगा में स्नान करना सभी पापों और बुराइयों का नाश करता है और मोक्ष प्रदान करता है। कहा जाता है कि इस समय गंगा का जल सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होता है। कुंभ के समय, जल सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति के सकारात्मक विद्युत चुम्बकीय विकिरणों से संपन्न होता है।


कावड़ यात्रा कांवर यात्रा, जिसे कावड़ यात्रा भी कहा जाता है, शिव भक्तों द्वारा हर साल की जाने वाली एक तीर्थ यात्रा है। यह यात्रा हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री जैसे तीर्थ स्थलों से गंगा के पवित्र जल को लाने के लिए की जाती है। यह यात्रा मुख्य रूप से श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में होती है।


रोचक तथ्य

  • इतिहास और पौराणिक कथा: कुंभ मेला की उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसमें अमृत कलस की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ था।
  • चार स्थान: कुंभ मेला हर 12 वर्ष में चार स्थानोंहरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, और नासिक में मनाया जाता है। इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • विशालता: कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समारोह है, जिसमें करोड़ों लोग शामिल होते हैं। 2013 में प्रयाग में आयोजित कुंभ में लगभग 30 करोड़ लोगों ने भाग लिया था।
  • विशेष स्नान तिथियाँ: कुंभ मेले में विशेष स्नान तिथियाँ होती हैं, जैसे माघ मेला और सोमवती अमावस्या, जब लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं।
  • नागा साधु: कुंभ मेले में शामिल होने वाले नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं और वे तपस्या में लीन रहते हैं। ये साधु अपने कठोर जीवनशैली और भक्ति के लिए जाने जाते हैं।
  • सकारात्मक ऊर्जा: कुंभ के दौरान गंगा का पानी विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। यह माना जाता है कि इस समय गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • धार्मिक विविधता: कुंभ मेले में न केवल हिंदू धर्म के अनुयायी शामिल होते हैं, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इस महापर्व का हिस्सा बनने के लिए आते हैं। यह एकता और समर्पण का प्रतीक है।
  • कावड़ यात्रा: कुंभ के समय कावड़ यात्रा भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां शिव भक्त गंगा के पवित्र जल को लाने के लिए लंबी यात्रा करते हैं। यह यात्रा आमतौर पर श्रावण माह में होती है।
  • सुरक्षा व्यवस्था: कुंभ मेले के दौरान सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जाते हैं। पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों की बड़ी संख्या में तैनाती होती है ताकि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • आध्यात्मिक विकास: कुंभ मेले का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि के लिए भी एक अवसर है।

हरिद्वार: एक धार्मिक और ऐतिहासिक यात्रा

हरिद्वार, उत्तराखंड राज्य में स्थित, गंगा नदी के किनारे बसा एक प्राचीन नगर है। यह स्थल अपनी धार्मिक महत्ता और ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कुछ प्रमुख आकर्षणों की जानकारी दी गई है:


1. हर की पौड़ी

श्रेणी: ऐतिहासिक, धार्मिक
हर की पौड़ी हरिद्वार का प्रमुख घाट है, जिसे राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। यह घाट गंगा स्नान के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है और यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।

फोटो गैलरी:

 

 

कैसे पहुंचें:

  • बाय एयर: जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा (72 किलोमीटर)।
  • ट्रेन द्वारा: हरिद्वार रेलवे स्टेशन।
  • सड़क के द्वारा: जिला मुख्यालय से 15 किमी।

2. मनसा देवी मंदिर

श्रेणी: धार्मिक
मनसा देवी मंदिर देवी मनसा देवी को समर्पित है और यह बिलवा पर्वत पर स्थित है। यहाँ से हरिद्वार का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।

फोटो गैलरी:

 

कैसे पहुंचें:

  • बाय एयर: जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा (72 किलोमीटर)।
  • ट्रेन द्वारा: हरिद्वार रेलवे स्टेशन।
  • सड़क के द्वारा: जिला मुख्यालय से 15 किमी।

3. सुरेश्वरी देवी मंदिर

श्रेणी: धार्मिक
सुरेश्वरी देवी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित है। यह मंदिर अपने पौराणिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

फोटो गैलरी:

 

कैसे पहुंचें:

  • बाय एयर: जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा (72 किलोमीटर)।
  • ट्रेन द्वारा: हरिद्वार रेलवे स्टेशन।
  • सड़क के द्वारा: जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर।

4. चंडी देवी मंदिर

श्रेणी: धार्मिक
यह मंदिर देवी चंडी को समर्पित है और नील पर्वत पर स्थित है। यहाँ जाने के लिए रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है।

फोटो गैलरी:

 

कैसे पहुंचें:

  • बाय एयर: जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा (72 किलोमीटर)।
  • ट्रेन द्वारा: हरिद्वार रेलवे स्टेशन।
  • सड़क के द्वारा: जिला मुख्यालय से 15 किमी।

5. पिरान कलियर

श्रेणी: धार्मिक
यहाँ हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद (सबीर) की दरगाह है। यह स्थान हिंदू और मुस्लिम धर्मों के बीच एकता का प्रतीक है।

फोटो गैलरी:

 

कैसे पहुंचें:

  • बाय एयर: जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा (72 किलोमीटर)।
  • ट्रेन द्वारा: हरिद्वार रेलवे स्टेशन।
  • सड़क के द्वारा: जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूरी पर है।

6. राजाजी राष्ट्रीय पार्क

श्रेणी: एडवेंचर, प्राकृतिक/मनोहर सौंदर्य
यह राष्ट्रीय उद्यान 1983 में स्थापित हुआ और यहाँ हाथियों की संख्या के लिए जाना जाता है। इसके अलावा यहाँ विभिन्न प्रकार के वन्यजीव और पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

कैसे पहुंचें:

  • बाय एयर: जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा (72 किलोमीटर)।
  • ट्रेन द्वारा: हरिद्वार रेलवे स्टेशन।
  • सड़क के द्वारा: जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर।

  1. अनुसंधान संस्थान
    • सिंचाई अनुसंधान संस्थान (1928)
    • संरचना अभियांत्रिकीय अनुसंधान केन्द्र (जून, 1956 में स्थापित)।
    • केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (1947)
    • राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (1979)
  2. आयुर्वेदिक एवं अन्य विश्वविद्यालय
    • पतंजलि आयुर्वेदिक अनुसंधान केन्द्र (3 मई, 2017)
    • उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय (2005)
    • आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय (2009)
    • पंतजलि योग डीम्ड विश्वविद्यालय (2009)

Download PDF 👇

यह भी पढ़े

1.      उत्तराखंड की प्रमुख फसलें | Major Crops of Uttarakhand in Hindi

2.      उत्तराखण्ड में सिंचाई और नहर परियोजनाऐं | Irrigation And Canal Project in Uttarakhand

3.      उत्तराखण्ड की मृदा और कृषि | Soil and Agriculture of Uttarakhand in Hindi

4.      उत्तराखण्ड में उद्यान विकास का इतिहास | History of Horticulture Development in Uttarakhand in Hindi

5.      उत्तराखंड की प्रमुख वनौषिधियां या जड़ी -बूटियां | Main Herbs of Uttrakhand in Hindi

6.      उत्तराखण्ड के प्रमुख त्यौहार | Uttrakhand ke Pramukh Tyohaar

7.      उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकनृत्य | Uttarakhand ke Pramukh Loknrityan

8.      उत्तराखंड में वनों के प्रकार | Types of Forests in Uttrakhand in Hindi

9.      उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय उद्यान | All National Parks of Uttarakhand in Hindi

10.  उत्तराखंड के सभी वन्य जीव अभ्यारण्य | All Wildlife Sanctuaries of Uttarakhand in Hindi

11.  उत्तराखंड की जैव विविधता: एक समृद्ध प्राकृतिक धरोहर - Biodiversity of Uttarakhand: A Rich Natural Heritage.

12.  उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय उद्यान | - All National Parks of Uttarakhand

13.  उत्तराखंड की प्रमुख वनौषिधियां या जड़ी -बूटियां - Major herbs or herbs of Uttarakhand

14.  उत्तराखंड की प्रमुख वनौषिधियां या जड़ी -बूटियां - Major herbs or herbs of Uttarakhand

15.  उत्तराखंड के सभी वन्य जीव अभ्यारण्य - All Wildlife Sanctuaries of Uttarakhand

टिप्पणियाँ

उत्तराखंड के नायक और सांस्कृतिक धरोहर

उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी और उनका योगदान

उत्तराखंड के उन स्वतंत्रता सेनानियों की सूची और उनके योगदान, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई।

पहाड़ी कविता और शब्दकोश

उत्तराखंड की पारंपरिक पहाड़ी कविताएँ और शब्दों का संकलन, जो इस क्षेत्र की भाषा और संस्कृति को दर्शाते हैं।

गढ़वाल राइफल्स: एक गौरवशाली इतिहास

गढ़वाल राइफल्स के गौरवशाली इतिहास, योगदान और उत्तराखंड के वीर सैनिकों के बारे में जानकारी।

कुमाऊं रेजिमेंट: एक गौरवशाली इतिहास

कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित पैदल सेना रेजिमेंटों में से एक है। इस रेजिमेंट की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी

लोकप्रिय पोस्ट

केदारनाथ स्टेटस हिंदी में 2 लाइन(kedarnath status in hindi 2 line) something

जी रया जागी रया लिखित में , | हरेला पर्व की शुभकामनायें (Ji Raya Jagi Raya in writing, | Happy Harela Festival )

हिमाचल प्रदेश की वादियां शायरी 2 Line( Himachal Pradesh Ki Vadiyan Shayari )

हिमाचल प्रदेश पर शायरी स्टेटस कोट्स इन हिंदी(Shayari Status Quotes on Himachal Pradesh in Hindi)

महाकाल महादेव शिव शायरी दो लाइन स्टेटस इन हिंदी (Mahadev Status | Mahakal Status)

गढ़वाली लोक साहित्य का इतिहास एवं स्वरूप (History and nature of Garhwali folk literature)

हिमाचल प्रदेश पर शायरी (Shayari on Himachal Pradesh )