फूलदेई: उत्तराखण्ड का एक लोक त्योहार - Phooldei: Uttarakhand ka Ek Lok Tyohar

फूलदेई: उत्तराखण्ड का एक लोक त्यौहार

उत्तराखण्ड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, न केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं और पवित्र स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के लोग अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और त्यौहार प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं। यहाँ के निवासी जीवन की जटिल परिस्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं और वन्यजीवों के खतरों से निरंतर जूझने के बाद भी हर महीने कोई न कोई त्यौहार मनाने का उत्साह बनाए रखते हैं। उनके ज्यादातर त्यौहार प्रकृति से जुड़े होते हैं और ये लोग अपने लोक त्यौहारों के माध्यम से प्रकृति का आभार व्यक्त करते हैं।

फूलदेई का महत्व

चैत्र मास की संक्रांति को मनाया जाने वाला फूलदेई त्यौहार बसंत ऋतु के स्वागत का प्रतीक है। इस दिन छोटे बच्चे जंगलों से प्योली (फ्यूंली), बुरांस, बासिंग जैसे जंगली फूल और आड़ू, खुबानी, पुलम के पेड़ों के फूल चुनकर लाते हैं। इन फूलों को चावल, हरे पत्ते और नारियल के साथ थाली या रिंगाल की टोकरी में सजाकर हर घर की देहरी पर पूजन करते हैं। लोकगीत गाते हुए बच्चे हर घर की देहरी को फूलों से सजाते हैं और गाते हैं:

फूलदेई थाली
फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।

इस त्यौहार के दौरान लोग होली के फाग गीतों की खुमारी से बाहर आकर ऋतुरैंण और चैती गीतों में रम जाते हैं। बाजगी, औली, और ढोली जैसे वादक ढोल-दमाऊ बजाकर गाँव के हर घर में इन गीतों को गाते हैं। इस सेवा के बदले में उन्हें घर के मुखिया द्वारा चावल, आटा, या अन्य अनाज और दक्षिणा दी जाती है।

बसंत ऋतु और फूलदेई

बसंत के आगमन से उत्तराखंड के पहाड़ बुरांस के लाल फूलों और आड़ू, खुबानी के गुलाबी-सफेद रंगों से भर जाते हैं। बच्चे फूलदेई के दिन प्रकृति को उसके इस उपहार के लिए धन्यवाद स्वरूप फूलों को देहरी पर सजाकर प्रकृति का अभिनंदन करते हैं। इस अवसर पर घरों में विशेष रूप से सई नामक व्यंजन बनता है, जिसे आपस में बाँट कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

बचपन की यादें

मुझे याद है कि बचपन में हम इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते थे। कस्बे में रहने की वजह से मैं जंगल नहीं जा पाता था, लेकिन आस-पास के खेतों से प्योली, भिटोरे (गेहूं के खेत में उगने वाला सफेद फूल), सरसों और आड़ू-खुबानी के फूलों को चुनकर थाली में सजाकर अपने घर और पड़ोस के घरों में देहरी पूजन करते थे। हर घर से हमें गुड़, चावल, और सई खाने को मिलती थी, और 20 पैसे का पीतल का सिक्का हमारी थाली में रखा जाता था।

गढ़वाल मण्डल में फूलदेई

गढ़वाल मण्डल में इस त्यौहार में बच्चों के साथ-साथ पूरे परिवार के लोग शामिल होते हैं। इस दिन गाँव के लोग अपने घर में बोये गए हरेले की टोकरियों को गाँव के चौक में इकट्ठा करते हैं और सामूहिक पूजा करते हैं। पूजा के बाद हरेले के तिनके नौले (जल स्रोत) में विसर्जित किए जाते हैं।

प्रकृति का धन्यवाद

बसंत ऋतु के आगमन के साथ उत्तराखंड के लोग फूलदेई के माध्यम से प्रकृति को उसके रंगों, फूलों और जीवनदायिनी उपहारों के लिए धन्यवाद कहते हैं। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना कितना महत्वपूर्ण है, और फूलों के माध्यम से लोग इस आभार को अपनी देहरी पर सजाकर प्रकृति का अभिवादन करते हैं।

फूलदेई एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति और मानव के बीच के अनमोल रिश्ते का प्रतीक है, और उत्तराखंड के लोक जीवन में इसका विशेष स्थान है। इस त्यौहार की खुशियाँ और इसके साथ जुड़े लोकगीत आज भी हर पहाड़ी गाँव में सुनाई देते हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।


फूलदेई: उत्तराखण्ड का लोक त्यौहार - FAQS

  1. फूलदेई क्या है?

    • फूलदेई उत्तराखण्ड का एक पारंपरिक लोक त्यौहार है, जो चैत्र मास की संक्रांति के दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, और इसमें बच्चे जंगलों से फूलों को एकत्र कर घरों की देहरी पर पूजा करते हैं।
  2. फूलदेई का महत्व क्या है?

    • फूलदेई पर्व प्रकृति के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करने का अवसर है। इस दिन फूलों को घरों की देहरी पर सजाकर प्रकृति को धन्यवाद दिया जाता है और उसके उपहारों के लिए आभार व्यक्त किया जाता है।
  3. फूलदेई किस प्रकार मनाया जाता है?

    • इस दिन, बच्चे विभिन्न प्रकार के फूलों (जैसे बुरांस, प्योली, आड़ू, खुबानी आदि) को इकट्ठा करते हैं, और उन्हें चावल, हरे पत्ते और नारियल के साथ सजाकर घर-घर जाकर पूजा करते हैं। इसके साथ लोकगीत गाए जाते हैं, और बदले में घरों से उन्हें अनाज, चावल, गुड़ और कभी-कभी दक्षिणा दी जाती है।
  4. फूलदेई के दौरान गाए जाने वाले गीत क्या हैं?

    • फूलदेई के दौरान एक प्रमुख लोकगीत गाया जाता है:
      • "फूल देई, छम्मा देई, देणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारम्बार नमस्कार, फूले द्वार… फूल देई-छम्मा देई।"
  5. फूलदेई में किन फूलों का प्रयोग होता है?

    • फूलदेई के दौरान प्योली, बुरांस, बासिंग, आड़ू, खुबानी और पुलम जैसे फूलों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। ये फूल मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में होते हैं और बसंत ऋतु के आगमन का संकेत देते हैं।
  6. फूलदेई का त्योहार किसे मनाने की परंपरा है?

    • फूलदेई मुख्य रूप से बच्चों द्वारा मनाया जाता है। बच्चे इस दिन जंगलों में जाकर फूल इकट्ठा करते हैं और घर-घर जाकर पूजा करते हैं। हालांकि, गढ़वाल क्षेत्र में पूरे परिवार के लोग भी इस पर्व में भाग लेते हैं।
  7. फूलदेई के दिन कौन सा विशेष पकवान बनता है?

    • फूलदेई के दिन विशेष रूप से 'सई' नामक पकवान तैयार किया जाता है, जिसे घरों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
  8. फूलदेई पर्व से जुड़ी बचपन की यादें क्या हैं?

    • बचपन में फूलदेई के दिन हर बच्चा उत्साहित रहता था। वे आस-पास के खेतों और बगानों से फूल चुनकर घर-घर जाकर पूजा करते थे। इस अवसर पर उन्हें गुड़, चावल, सई और कभी-कभी सिक्के मिलते थे।
  9. फूलदेई पर्व का गढ़वाल क्षेत्र में क्या महत्व है?

    • गढ़वाल क्षेत्र में फूलदेई पर्व में बच्चों के साथ-साथ पूरा परिवार भाग लेता है। यहां, लोग सामूहिक पूजा करते हैं और हरेले के तिनकों का विसर्जन जल स्रोतों (नौले) में किया जाता है।
  10. फूलदेई के दौरान लोकगीतों का क्या महत्व है?

    • फूलदेई के दौरान लोकगीतों का महत्व बहुत है क्योंकि ये गीत सामूहिक रूप से गाए जाते हैं, और इन गीतों के माध्यम से लोगों में खुशी और उत्साह का संचार होता है। इसके साथ ही, ये गीत उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा होते हैं।
  11. फूलदेई पर्व की विशेषता क्या है?

    • फूलदेई पर्व उत्तराखण्ड की प्रकृति, संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो न केवल बच्चों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक खुशी का मौका होता है।
  12. फूलदेई पर्व से क्या सिखने को मिलता है?

    • फूलदेई पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें प्रकृति के उपहारों के प्रति हमेशा आभारी रहना चाहिए और उसे सम्मान देना चाहिए। यह पर्व प्रकृति और मानव के बीच के गहरे रिश्ते को प्रदर्शित करता है।

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