गढ़वाली कुमाऊनी मंडुआ (कोदा मंडुआ) का वानस्पतिक नाम Eleusine coracana में, Linn Gaertn. Syn-Cynosurus coracanus Linn. है
मंडुआ का वानस्पतिक नाम Eleusine coracana में, Linn., Gaertn. Syn-Cynosurus coracanus Linn. है
प्राचीनतम विश्व विख्यात अनाज #मंडुआ को मडुआ, कोदा, रागी भी बोला जाता है। सामान्य तौर पर मंडुआ, कोदा, रागी का उपयोग अनाज के रूप में होता है। क्योंकि यह ना सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि बहुत ही पौष्टिक भी होता है। प्रायः मंडुआ, रागी के आटे को गेहूं के आटे में मिलाकर भी प्रयोग में लाया जाता है। देश भर में इससे कई तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। मंडुआ, रोटी, रागी से उपमा, श्रुवा, बिस्किट, डोसा, हलुआ, मोदा, लड्डू आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। लोग बहुत चाव से इन्हें खाते हैं। आपने भी रागी या मंडुआ के आटे से तैयार रोटी का सेवन किया होगा। लोग रागी या मंडुआ के बारे में इतनी ही जानकारी रखते हैं कि रागी का उपयोग केवल अनाज के रूप में किया जाता है, लेकिन सच यह है कि रागी एक बहुत ही गुणी औषधि भी है और इससे रोगों को भी ठीक किया जाता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में रागी को लेकर कई फायदेमंद बातें बताई गई हैं। मंडुआ के सेवन से अत्यधिक प्यास लगने की समस्या खत्म होती है, शारीरिक कमजोरी दूर हो सकती है और कफ दोष को ठीक किया जा सकता है। आप मंडुआ का प्रयोग मूत्र रोग को ठीक करने, शरीर की गंदगी साफ करने के लिए भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं शरीर की जलन, त्वचा विकार, किडनी या पथरी की समस्या में भी मंडुआ का इस्तेमाल होता है। मंडुआ का इस्तेमाल किस-किस बीमारी में कर सकते हैं।
#मंडुआ_क्या_है
अनेक आयुर्वेदिक ग्रंथों में मंडुआ के बारे में जानकारी मिलती है। मंडुआ या रागी का पौधा लगभग 1 मीटर तक ऊचाँ होता है। इसके फल गोलाकार अथवा चपटे तथा झुर्रीदार होते हैं। मंडुआ की बीज गोलाकार, गहरे-भूरे रंग के, चिकने होते हैं। इसकी बीज बंद मुट्ठी, झुर्रीदार और एक ओर से चपटे होते हैं। इन्हें ही मड़वा या मंडुआ कहा जाता है। इससे बने आहार मोटापे तथा मधुमेह रोगग्रस्त रोगियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है।
मंडुआ का वानस्पतिक नाम Eleusine coracana में, Linn., Gaertn. Syn-Cynosurus coracanus Linn. है
गढ़वाली कुमाऊनी- #मंडुआ, #कोदा
मंडुआ की विशेष जानकारी
कई स्थानों पर मंडुआ का प्रयोग #कोदो दल वंध के नाम पर किया जाता है; लेकिन मुख्य कोदो इससे भिन्न प्रजाति है। कोदो का नाम #कोद्रव के नाम हैं। मंडुआ रागी अनेक भाषाओं नाम अलग अलग है।
मंडुआ के औषधीय गुण
उल्टी को रोकने के लिए मंडुआ का सेवन।
कई लोगों को उल्टी से संबंधित परेशानी होती रहती है। ऐसे में मंडुआ का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। महुआ, हाऊबेर, नीलकमल तथा मधूलिका के चूर्ण को घी तथा शहद के साथ सेवन करें। इससे उल्टी रुक जाती है।
मंडुआ के प्रयोग से रूसी से छुटकारा
महुआ, हाऊबेर, नीलकमल तथा मधूलिका के चूर्ण को घी तथा शहद के साथ सेवन करें। इससे रूसी से छुटकारा मिलता है।
सर्दी जुकाम में मंडुआ उपयोग लाभदायक
सर्दी-जुकाम जैसी परेशानी में भी मंडुआ का उपयोग बहुत अधिक लाभ पहुंचाता है। इसके लिए आपको गुग्गुलु, राल, पतंग, प्रियंगु, मधु, शर्करा, मुनक्का, मधूलिका तथा मुलेठी लेना है। इनका काढ़ा बनाकर गरारा करना है। इससे रक्तज तथा पित्तज सर्दी-जुकाम की समस्या में लाभ होता है।
श्वास रोग में मंडुआ में फायदेमंद
अनेक लोगों को सांसों की बीमारी हो जाती है। आप मंडुआ का विधिपूर्वक इस्तेमाल करेंगे तो सांसों के रोग में फायदा मिलता है। मंडुआ आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक बनाए गए शृङ्गयादि घृत (मधूलिकायुक्त) का मात्रापूर्वक प्रयोग करें। इससे सांसों की बीमारी में लाभ होता है।
दस्त को रोकने के लिए मंडुआ का इस्तेमाल
मंडुआ का लाभ दस्त की समस्या में भी ले सकते हैं। इसका प्रयोग दस्त और पेट दर्द की चिकित्सा में किया जाता है। दस्त में मंडुआ के प्रयोग की जानकारी के बारे में किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लें।
कब्ज में फायदेमंद मंडुआ का सेवन
बहुत लोगों को कब्ज की समस्या रहती है। दरअसल कब्ज एक ऐसी बीमारी है जो कई रोगों का कारण बनती है। कब्ज के कारण व्यक्ति को हमेशा पेट की समस्या बनी रहती है और इसके लिए लोग व्यक्ति तरह-तरह के उपाय करते हैं। मंडुआ की बीजों में सेल्यूलोज अधिक मात्रा में होने के कारण इसका निरन्तर प्रयोग करने से कब्ज में लाभ दिलाता है। खास बात यह है कि यह कब्ज की पुरानी बीमारी में भी लाभ पहुंचाता है।
हिचकी की समस्या को ठीक करता है मंडुआ
मंडुआ आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक सिद्ध शृङ्गयादि घृत-मधूलिकायुक्त का मात्रापूर्वक प्रयोग करने से हिक्का में लाभ होता है।
कुष्ठ रोग में मंडुआ का प्रयोग
मंडुआ को सफेद चित्रक के साथ मिलाकर सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
महुआ, हाऊबेर, नीलकमल तथा मधूलिका के चूर्ण को घी तथा शहद के साथ सेवन करें। इससे उल्टी, कुष्ठ रोग, हिचकी और सांसों की बीमारी में लाभ मिलता है।
मधूलिका, तुगाक्षीरी, दूध, लघुपंच की जड़ तथा काकोल्यादि गण से पेस्ट और काढ़ा को घी में पका लें। इसके प्रयोग से मुखमण्डिका नामक बाल रोग में लाभ होता है।
मंडुआ से खांसी का इलाज
मंडुआ आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक पकाए गए शृङ्गयादि घी (मधूलिकायुक्त) का सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है। इसका सेवन की जानकारी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर लें।
मंडुआ या रागी पूरे भारत में लगभग 2300 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसकी विशेषतः पर्वतीय क्षेत्रों में खेती की जाती है। यह उच्चपर्वतीय प्रदेशों में भी पाया जाता है।
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उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन और उनके स्वास्थ्य लाभ
सिसूण का सूप उत्तराखंड का एक खास व्यंजन है जो पोषण से भरपूर होता है। सर्दियों में शरीर को गर्म रखने के साथ-साथ इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं, जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार।
सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी उत्तराखंड के गाँवों में एक प्रमुख पारंपरिक भोजन है। इसमें प्रोटीन और फाइबर भरपूर होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।
पारंपरिक पहाड़ी स्वाद के साथ आधुनिक शैली का मंडुवे का पिज्जा, एक अनोखा व्यंजन है जो मंडुवा (रागी) के उपयोग से तैयार होता है। यह स्वस्थ और स्वादिष्ट विकल्प है।
मंडुवा, जिसे रागी भी कहा जाता है, उत्तराखंड का सुपरफूड है जो पोषण से भरपूर है। यह विशेष रूप से हड्डियों की मजबूती और ऊर्जा के लिए अत्यंत लाभकारी है।
मंडुवा, जिसे वैज्ञानिक नाम Eleusine coracana के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत पौष्टिक अनाज है। यह विटामिन, कैल्शियम और आयरन का उत्कृष्ट स्रोत है और स्वास्थ्य के लिए अनेक लाभ प्रदान करता है।
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