तीलू रौतेली जीवनी (Teelu Rauteli Biography )

 तीलू रौतेली जीवनी  (Teelu Rauteli Biography )

सत्रहवीं शताब्दी के उतरार्ध  में गुराड़ गाँव परगना  चौंदकोट गढ़वाल में जन्मी  अपूर्व शौर्य संकल्प और साहस की धनी इस वीरांगना को गढ़वाल के इतिहास में "झांसी की रानी" कहकर याद किया जाता है ! 15 से 22 वर्ष की आयु के मध्य सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है !

 तीलू रौतेली थोकदार वीर पुरुष भूपसिंह गोलार की पुत्री थी,15 वर्ष की आयु में तीलू रौतेली की मंगनी इडा गाँव (पट्टी मोंदाडस्यु) के भुप्पा नेगी के पुत्र के साथ हो गयी थी !नियति की कुरुर हाथों तीलू के पिता मंगेदर और दोनों भाइयों के युद्ध भूमि प्राण न्योछावर हो गए थे !

तीलू रौतेली थोकदार वीर पुरुष भूपसिंह गोलार की पुत्री थी,
 प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल सिंहनी बना दिया था,शास्त्रों से लेस सैनिकों तथा "बिंदुली" नाम की घोड़ी और दो सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर  युद्ध के लिए प्रस्थान किया!
 सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कत्यूरियों से  मुक्त  करवाया !
 उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला फिर वह अपने सैन्य दल के साथ "सल्ट महदेव"  पंहुची वहां से भी शत्रु दल को भगाया,इस जीत के उपरान्त तीलू ने "भिलण भौण"   की ओर प्रस्थान किया  तीलू दो सहेलियों ने इसी युद्ध में मिर्त्यु का आलिंगन किया था !
 चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आई ! कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, विरोंखाल के युद्ध में तीलू के मामा "रामू भंडारी 
 तथा सराईखेत युद्ध में तीलू के पिता भूपू  ने युद्ध लड़ते -लड़ते अपने प्राण त्याग दिए थे !
 सराईखेत में कई कत्युरी सैनिको को मोत के घाट उतार तीलू अपने पिता की मिर्त्यु का बदला लिया इसी जगह पर तीलू की घोड़ी "बिंदुली " भी सत्रु दल का निशाना बनी, तल्ला कांडा शिविर के समीप पूर्वी न्यार नदी में स्नान करते समय रामू रजवार नामक एक कत्युरी सैनिक ने धोके से तीलू पर तलवार से हमला करके तेल्लू की जान ले ली थी !

वीरांगना तीलू रौतेली का जन्मदिवस

तीलू रौतेली, गढ़वाल, उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है।

8 अगस्त को तीलू रौतेली की जयंती मनाई जाती है. उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल में चौंदकोट की सत्रहवीं शताब्दी की इस वीरांगना ने लगातार सात साल तक युद्ध करके कत्यूरों को भगाया था. कत्यूर कुमाऊं के राजा थे. तीलू रौतेली की जयंती पर हर साल उत्तराखंड के लोग पेड़ लगाते हैं और साथ ही सांस्कृतिक उत्सव भी किए जाते हैं. तीलू रौतेली गढ़वाल के लोगों के बीच गढ़वाल की लक्ष्मीबाई भी कही जाती हैं. 

8 अगस्त को उत्तराखंड की महान वीरांगना तीलू रौतेली का जन्मदिवस है. इस अवसर पर दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक कई कार्यक्रम हो रहे हैं. इसी कड़ी में तीलू की जन्मभूमि तल्ला गुराड, परगना चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल में तीलू रौतेली का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. चौंदकोट गढ़वाल के गोर्ला रौत थोकदार और गढ़वाल रियासत के राजा फतेहशाह के सेनापति भूप्पू रावत की बेटी थी तीलू. तीलू का जन्म सन 1661 में हुआ था.  तीलू के दो बड़े भाई थे पत्वा और भक्तू. तीलू की सगाई बाल्यकाल में ही ईड़ गांव के सिपाही नेगी भवानी सिंह के साथ कर दी गई थी. बेला और देवकी की शादी तीलू के गांव गुराड में हुई थी. जो तीलू की हम उम्र थी.

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