उत्तराखंड में विश्व धरोहर स्थ्ल

उत्तराखंड में दो विश्व धरोहर स्थल स्थित हैं 

(World Heritage Site in Uttarakhand)

14 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है 

उत्तराखंड में विश्व धरोहर स्थ्ल  ( नंदादेवी नेशनल पार्क)

(1) नंदादेवी नेशनल पार्क

प्राकृतिक खूबसूरती और उछल-कूद मचाते कस्तूरी मृगों का घर है नंदा देवी नेशनल पार्क

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान घूमने की जानकारी 

 नंदा देवी भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। आपको बता दें कि यह नेशनल पार्क एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, और  दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र को वर्ष 1982 में इस क्षेत्र में विदेशी वनस्पतियों और जीवों की रक्षा, संरक्षण और इसे पर्यावरणीय क्षरण से बचाने के लिए एक राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था। इस क्षेत्र आज दुनिया में कुछ दुर्लभ और अद्वितीय उच्च ऊंचाई वाले वनस्पतियों और जीवों का घर है। आज नंदा देवी नेशनल पार्क दुनिया से सबसे प्रमुख पारिस्थितिक आकर्षण केंद्रों में से एक और यह कई तरह के पक्षियों, स्तनधारियों, पौधों, पेड़ों और तितलियों आवास स्थान है।
1982 में इसे संरक्षित राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया.1939 में ब्रिटिश महिला जॉन मार्गरेट भी फूलों की घाटी देखने यहाँ पहुंची. अपने प्रवास के दौरान उन्होंने यहाँ से कई प्रजाति के फूलों को भी लन्दन भेजा अगस्त 1939 में ही उनकी यहाँ एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी, इसे फूलों की घाटी के एक शिलालेख में अंकित किया गया है.समुद्र तल से 3352 से 3658 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस लम्बी-चौड़ी घाटी में सैंकड़ों प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल पाए जाते हैं. इस घाटी का क्षेत्रफल 90 वर्ग किमी के आस-पास है. यूँ तो फूलों की घाटी साल के बारहों महीने बेहद खूबसूरत दिखाई देती है लेकिन बरसात का मौसम इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है. बरसात के बाद यह हरी घाs से तो लकदक हो ही जाती है, इसी जुलाई अगस्त और सितम्बर के महीने में यहाँ 600 से अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल खिला करते हैं.  गोविन्द धाम और गोविन्द घाट दोनों में ही सिखों का गुरुद्वारा है जहाँ रहने-खाने के पर्याप्त बंदोबस्त हैं. यात्रा काल में यहाँ लगभग दिन के 20 घंटे लंगर का आयोजन किया जाता है.  गोविन्द धाम से एक किमी आगे चलने के बाद एक दोराहा मिलता है, जहाँ से दो पगडंडियां अलग-अलग चल पड़ती हैं. बायीं ओर वाली पगडण्डी पकड़कर आप 3 किमी का चढ़ाई उतार वाला आसान सा रास्ता तय करके फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं. दूसरा रास्ता 4 किमी की खड़ी चढ़ाई में आपकी परीक्षा लेता हुआ हेमकुंड साहिब छोड़ देता है.

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों को ट्रेकिंग और लंबी पैदल यात्रा का एक खास अवसर प्रदान करता है। यह जगह एडवेंचर और प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के सामान है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान 1 मई से 31 अक्टूबर तक पूरे वर्ष में केवल छह महीने के लिए आगंतुकों के लिए खुला है। अगर आप प्रकृति की सुंदरता की खोज करना चाहते हैं तो आपके लिए नंदा देवी पार्क एक परफेक्ट पर्यटन स्थल है।

उत्तराखंड में नंदा देवी नेशनल पार्क आकर आप खूबसूरत नज़ारों को देखने के साथ ही भालू, हिरन जैसे जानवरों को भी देख सकते हैं। इतना ही नहीं यहां लुप्त हो चुकी वनस्पतियां भी देखी जा सकती हैं।

शानदार पहाड़, चारों ओर फैली हरियाली और उनमें टहलते हुए जीव-जंतु कुछ ऐसा होता है नंदा देवी नेशनल पार्क का नज़ारा। ब्रम्ह कमल और भरल (पहाड़ी बकरी) यहां पार्क की शोभा बढ़ाते हुए मिल जाएंगे।

समुद्रतल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नंदा देवी नेशनल पार्क, उत्तराखंड में स्थित है। लगभग 630.33 वर्ग किमी में फैला ये उत्तर भारत का सबसे बड़ा पार्क है।

नंदा देवी नेशनल पार्क के लिए जरूरी ट्रैवल टिप्स
1. यहां आने वाले सैलानियों को ग्रूप में जाने की ही इज़ाजत है। जिसमें 5-6 लोग होते हैं। और ग्रूप के साथ गाइड जरूर रहते हैं।
2. 14 साल से ऊपर की आयु वालों ही यहां जा सकते हैं।
3. जंगल में किसी तरह के नियम-कानूनों का उल्लंघन मान्य नहीं।
4. घूमने आ रहे हैं तो हर तरह से फिट होना बहुत ही जरूरी है क्योंकि यहां रास्ते लंबे और टेढ़े-मेढ़े हैं साथ ही मौसम हर पल बदलता रहता है।


नंदा देवी नेशनल पार्क की खासियत

जीव-जंतु

बड़े स्तनधारियों में हिमालयन कस्तूरी मृग, मेनलैंड सीरो, लाल लोमड़ी और हिमालयन ताहर देखे जा सकते हैं। इनके अलावा स्नो लैपर्ड, लंगूर के साथ ही ब्लैक और ब्राउन बियर पार्क की आप आसानी से अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। 1993 में यहां 114 प्रकार के पक्षियों की पहचान की गई थी। 40 प्रकार की तितलियां और इतनी ही मकड़ियां भी यहां मौजूद हैं। पार्क में वनस्पतियों की कुल 312 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 17 को दुर्लभ माना जाता है।
 यहां पाए जाने वाले जीवों हिम तेंदुए, हिमालयी काले भालू, भूरे भालू, तेंदुए, हिमालयन कस्तूरी मृग, कॉमन लंगूर, गोरल और भारल जैसी प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां 80 एवियफुनल प्रजातियां पाई गई हैं, जिनमें भारतीय पेड़ के पिपिट, ब्लू-फ्रंटेड रेडस्टार्ट, रोज फिंच और रूबी थ्रोट शामिल हैं।

पेड़-पौधे

नंदा देवी नेशनल पार्क कई सारी वनस्पतियों का भी घर है। यहां फूलों की 312 प्रजातियां मौजूद हैं वहीं 17 तरह की लुप्तप्राय जातियां जिसमें बर्च, रोडोडेड्रोन और जूपिटर खास हैं। वैसे ये भारत के तीर्थ स्थलों में से भी एक है।
नेशनल पार्क के आसपास चोटियां

नंदा देवी नेशनल पार्क के आसपास और भी कई सारी चोटियों को देखा जा सकता है जिसमें दुनागिरी (7066 मीटर), चांगबंद (6864 मीटर), कालंका (6931 मीटर), ऋषि पहाड़ (6992 मीटर), मैंगराव (6765 मीटर), नंदा खाट (6631 मीटर), मैकतोली (6803 मीटर), मृगथुनी (6655 मीटर), त्रिशूल (7120 मीटर), बेथारतोली हीमल (6352 मीटर) और पूर्वी नंदादेवी (7434 मीटर) शामिल हैं।

उत्तराखंड में विश्व धरोहर स्थ्ल (2) फूलों की घाटी

नंदादेवी नेशनल पार्क

 फूलों की घाटी या “वैली ऑफ फ्लावर्स” भारत के उत्तराखंड राज्य में चमोली जिले में स्थित हैं। पश्चिमी हिमालय में स्थित फूलों की घाटी एक प्राकृतिक और सुंदर राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता है। अल्पाइन फूलों और घास के मैदानों से सुसज्जित यह प्राकृतिक स्थान प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफी के शौकीन व्यक्तियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नही हैं। वैली ऑफ फ्लावर्स पर्यटन स्थल में सैंकड़ों प्रजाति और रंगों के फूल पाएं जाते है। यही फूलो की घाटी की लौकप्रियता का रहस्य हैं जोकि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। फूलों की घाटी को वर्ष 2005 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भी शामिल कर लिया हैं। फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान को शुरुआत में भुइंदर घाटी के नाम से जाना जाता था। लेकिन बाद में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्माइथ द्वारा वर्ष 1931 में इसका नाम बदलकर वैली ऑफ फ्लॉवर्स कर दिया गया।

यदि आप रंग-रंग के फूलों के बारे में जानना चाहते हैं या कुछ सीखना चाहते हैं तो वैली ऑफ फ्लावर्स से शानदार डेस्टिनेशन आपके लिए कही ओर नही हो सकती हैं। फूलों की घाटी में अलग-अलग मौसम में भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल इसकी सुंदरता को और अधिक खूबसूरत कर देते हैं, जिससे फूलो की घाटी की सुंदरता परिवर्तनशील प्रतीत होती हैं। हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों जोकि वर्फ से ढंकी हुई सफ़ेद प्रतीत होती हैं, अपने आप में ही एक रमणीय दृश्य प्रस्तुत करती हैं।

यदि आप भी फूलों की घाटी के बारे में जानना चाहते हैं या घूमने की चाहत रखते हैं तो हमारे इस लेख को पूरा जरूर पढ़े।

फूलों की घाटी का रहस्य – Phoolon Ki Ghati Ka Rahasya


फूलों की घाटी कई प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। वेल्ली ऑफ फ्लावर्स में देशी और विदेशी सभी प्रकार की कष्ट निवारक जड़ी बूटियाँ मिलती हैं। यहाँ प्राप्त हुई जड़ी बूटियाँ बड़ी से बड़ी बीमारियों से छुटकारा दिलाने के लिए जानी जाती हैं।
फूलों की घाटी की 20 रोचक जानकारी

फूलों की घाटी कहां स्थित है?

फूलो की भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

फूलो की घाटी किसे कहते है?

दो पहाडो के बीच के हिस्से को घाटी कहते और जब उस घाटी में अनेक प्रकार के पौधो पर रंबिरंगे फूल खिलते है तो वह फूलो की घाटी कहलाती है

फूलो की घाटी कितनी बडी है या फूलो की घाटी कितने क्षेत्रफल में फैली हुई है?

फूलो की घाटी लगभग आधा किमी चौडी और 3 किलोमीटर लम्बी है। तथा 87 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई है।
फूलो की घाटी पता कब चला?

फूलो की घाटी का सन् 1931 पता चला

फूलों की घाटी की खोज किसने की?

फूलो की घाटी की खोज दून स्कूल के वनस्पति शास्त के प्राध्यापक रिचर्ड होल्सवर्थ ने अपने कुछ साथियो के साथ की थी। जब वह अपने साथियो के साथ किसी रिसर्च से वापस आ रहे थे तो रास्ता भटकने के कारण वह इस स्थान फर पहुंच गए। उनके साथी फ्रैंक स्माईथ को यह जगह भहुत भा गयी। उसके बाद भी फ्रैंक स्माइथ इस स्थान पर कई बार आएं और इस स्थान को valley of  flowers फूलों की घाटी नाम दिया। तथा बाद में फ्रैंक स्माइथ ने इस घाटी पर एक पुस्तक भी लिखी और तब से यह घाटी पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गई। हजारो देशी विदेशी पर्यटक यहा भ्रमण करने आने लगे

फूलो की घाटी में कितने प्रकार के फूल पाए जाते है?

फूलो की घाटी में लगभग 300 से भी अधिक प्रजातियो रंगबिरंगे के फूल पाए जाते है

फूलो की घाटी में कौन कौन से फूल पाए जाते है?

फूलो की घाटी में पाए जाने वाले फूलो में प्रमुख है- एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।

 फूलों की घाटी में फूल कब खिलते है?

15जुलाई से 15 अगस्त तक यह फूल इस पूरी घाटी में रंगोली की तरह सजे रहते है

फूलो की घाटी कब जाए?

फूलो के इस स्वर्ग को देखने के लिए 15 जून से 15 सितंबर तक जाया जा सकता है

फूलो की घाटी कैसे जाएं?

फूलो की घाटी जाने के लिए जोशीमठ से 19 किलोमीटर दूर गोविंद घाट पहुंचना पडता है। गोविंद घाट से फूलो की घाटी की दूरी 13 किलोमीटर है जो पैदल तय करनी पडती है। यही मार्ग गुरूद्वारा श्री हेमकुंट साहिब भी जाता है। आगे जाकर दोनो के मार्ग अलग अलग हो जाते है।

सन् 1982 में फूलो की घाटी को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।
फूलो की घाटी नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का भी एक हिस्सा है।


 फूलों की घाटी के पास घूमने लायक

नंदादेवी नेशनल पार्क

श्री हेमकुंड साहिब पर्यटन स्थल हिमालय पर्वत के बीचो-बीच उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। हर साल हजारों सिखों द्वारा इस पूजनीय पवित्र तीर्थ स्थल का दौरा किया जाता है। हेमकुंड साहिब को दुनिया का सबसे ऊंचा गुरुद्वारा माना जाता हैं जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से 4633 मीटर है। हेमकुंड साहिब पर्यटन स्थल बर्फ से ढके पहाड़ों पर स्थित है। श्री हेमकुंड साहिब गुरद्वारे को श्री हेमकुंट साहिब के नाम से भी जाना जाता है। हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के नजदीक कई झरने, हिमालय का मनोरम दृश्य और घने जंगल हैं, जो ट्रेकिंग की सुविधा प्रदान करते हैं। श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा वह स्थान जो श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की आत्मकथा से सम्बंधित हैं और बर्फ से ढंकी सात पहाड़ियों के लिए जाना गया हैं। हेमकुंड साहिब गुरूद्वारे को बर्फ की झील के नाम से भी जाना जाता हैं।

फूलों की घाटी का इतिहास – Valley Of Flowers History
फूलों की घाटी के इतिहास से पता चलता हैं कि यह स्थान हिमालय पर्वतमाला ज़ांस्कर और पश्चिमी-पूर्वी हिमालय के मिलन बिंदु पर स्थित हैं। फूलों की घाटी को खोजने का श्रेय वर्ष 1931 में एक पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ को जाता हैं। जिन्होंने इस आकर्षित फूलों की घाटी को सफेद चोटियों से घिरे घने जंगल में खोज निकाला। माना जाता हैं कि रामायण काल के दौरान हनुमान जी महाराज ने फूलों की घाटी में ही संजीवनी बूटी की खोज की थी। वर्ष 1980 में सरकार द्वारा फूलों की घाटी को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और सन 1982 में इसका नाम बदलकर नंदा देवी रख दिया गया था। 1988 के दौरान नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व की स्थापना के दौरान इसे मुख्य क्षेत्र घोषित किया गया था।

 फूलों की घाटी भारत के किस राज्य में स्थित है – Bharat Mein Phoolon Ki Ghati Kaha Par Sthit Hai
फूलों की घाटी भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित हैं।

नंदादेवी नेशनल पार्क

नंदादेवी नेशनल पार्क जोशीमठ से 24 किमी की दूरी पर चमोली जिले में है. राष्ट्रीय उद्यान के रूप में इसकी स्थापना 1982 में हुई थी. शुरुआत में इसका नाम संजय गांधी नेशनल पार्क रखा गया था जिसे बाद में बदल दिया गया. 1988 में यूनेस्को ने इसे राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल किया था.

फूलों की घाटी 

फूलों की घाटी चमोली फूलों की करीब 500 प्रजातियां हैं जिसमें से कुछ दुलर्भ प्रजातियों के फूल यहां पाए जाते हैं
फूलों की घाटी


समुद्र तल से 12, 995ft. की ऊंचाई पर 87.5 हैक्टेयर क्षेत्रफल में फैली, फूलों की घाटी में 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं.

1982 में इसे संरक्षित राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया.1939 में ब्रिटिश महिला जॉन मार्गरेट भी फूलों की घाटी देखने यहाँ पहुंची. अपने प्रवास के दौरान उन्होंने यहाँ से कई प्रजाति के फूलों को भी लन्दन भेजा अगस्त 1939 में ही उनकी यहाँ एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी, इसे फूलों की घाटी के एक शिलालेख में अंकित किया गया है.समुद्र तल से 3352 से 3658 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस लम्बी-चौड़ी घाटी में सैंकड़ों प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल पाए जाते हैं. इस घाटी का क्षेत्रफल 90 वर्ग किमी के आस-पास है. यूँ तो फूलों की घाटी साल के बारहों महीने बेहद खूबसूरत दिखाई देती है लेकिन बरसात का मौसम इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है. बरसात के बाद यह हरी घाs से तो लकदक हो ही जाती है, इसी जुलाई अगस्त और सितम्बर के महीने में यहाँ 600 से अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल खिला करते हैं.  गोविन्द धाम और गोविन्द घाट दोनों में ही सिखों का गुरुद्वारा है जहाँ रहने-खाने के पर्याप्त बंदोबस्त हैं. यात्रा काल में यहाँ लगभग दिन के 20 घंटे लंगर का आयोजन किया जाता है.  गोविन्द धाम से एक किमी आगे चलने के बाद एक दोराहा मिलता है, जहाँ से दो पगडंडियां अलग-अलग चल पड़ती हैं. बायीं ओर वाली पगडण्डी पकड़कर आप 3 किमी का चढ़ाई उतार वाला आसान सा रास्ता तय करके फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं. दूसरा रास्ता 4 किमी की खड़ी चढ़ाई में आपकी परीक्षा लेता हुआ हेमकुंड साहिब छोड़ देता है.


1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने दुनिया को फूलों की घाटी के विषय में बताया. फूलों की घाटी हर दिन 15 रंग बदलती है. साल 2005 में यूनेस्को ने फूलों की घाटी को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था.फ्रेंक सिडनी और होल्ड्स वर्थ कामथ ने अपने देश लौटकर वैली ऑफ़ फ्लावर्स नाम से एक किताब लिखी और फूलों की घाटी दुनिया भर में मशहूर हो गयी. 

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