उतराखंड खटीमा कांड

खटीमा कांड

1 सितम्बर, 1994 के दिन खटीमा में आंदोलन सर्मथकों ने शांतिपूर्वक जुलूस निकालने का निर्णय लिया था। इस पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार खटीमा और उसके आस-पास के गांव के हजारों लोग रामलीला मैदान में एकत्रित हुए। यहाँ से जुलूस आरक्षण विरोधी एवं पृथक राज्य की मांग के नारे लगाता हुआ रोडवेज बस स्टैण्ड, पीलीभीत रोड स्थिति पेट्रोल पम्प से निकल कर जब सितारगंज रोड स्थित थाने के निकट पहुँचा ही था कि अचानक एक आँसू बम भीड़ के मध्य गिरा और भगदड़ शुरू हुई। भीड़ में शामिल कुछ संदिग्ध लोगों ने थाने की ओर पत्थर फेंके। पहले से तैयार पुलिस ने बिना चेतावनी के अश्रुगैस व गोलियां दागनी शुरू कर दी। इस कांड में पुलिस ने 60 राउंड करीब गोलियां चलाई जिससे कई लोगों की मृत्यु घटना स्थल पर हुई, कई लोग पुलिस की लाठियों का शिकार हुए।
उतराखंड खटीमा कांड

चूंकि अचानक हुए हमले से विशाल जन सैलाब में भगदड़ मच गई, जिसे जिधर ही छुपने का मार्ग दिखा, भागने लगा। इस कारण कुचल कर दबने से अधिक लोग घायल हुए। खटीमा के आस-पास पुलिस आतंक का खौप कई दिनों तक रहा। पुलिस दमन यहीं खत्म नहीं हुआ बल्कि इस हत्याकांड का दोष निर्दोषों के सिर मड़ने के लिए पुलिस ने गांव-गांव छापे मारकर लोगों को गिरफ्तार किया।
खटीमा कांड

खटीमा में बेकसूर लोगो की हत्या स्थानीय कोतवाल और कुछ अन्य लोगों की साजिश का नियोजित परिणाम था। पुलिस ने 1, सितम्बर के प्रथम पहर से ही खटीमा की ऊँची इमारतों पर ईट, पत्थर, अश्रु बमों के साथ मोर्चा लगा लिया था। हत्याकांड के लिए स्थल भी पूर्व निर्धारित था। भीड़ की तरफ से न तो फायरिंग ही की गई न ही किसी हथियार का प्रयोग पुलिसकर्मियों पर हुआ। भीड़ में शामिल लोगों ने किसी भी तरह के उकसावे की कार्यवाही भी नहीं की थी। जिससे स्पष्ट है कि प्रशासन की ये आंदोलन को दबाने की एक सुनियोजित चाल थी जिसने कई बेकसूर लोगों की जाने ली। गोलीकांड के कई दिन बाद तक भी पुलिस मृतकों की संख्या तीन ही मानती रही जबकि गोपीचंद, धर्मनंद भट्ट, परमजीत सिंह और रामपाल नामक लोग तो घटना स्थल पर ही शहीद हो गये थे।

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