श्रीनगर गढ़वाल माँ राजराजेश्वरी मंदिर, देवलगढ़ की महिमा

देवलगढ़, श्रीनगर गढ़वाल के पास स्थित माँ राजराजेश्वरी सिद्धपीठ, आध्यात्मिकता और आस्था का प्राचीन केंद्र है। घने चीड़-बांज के जंगलों और सुरम्य गांवों के बीच स्थित यह मंदिर धन, वैभव, योग और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी माँ राजराजेश्वरी को समर्पित है। इसे प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं की कुलदेवी माना जाता था।
मंदिर की स्थापना और इतिहास
गढ़वाल नरेश अजयपाल ने चांदपुर गढ़ी से अपनी राजधानी बदलकर देवलगढ़ में स्थापित की थी। उन्होंने 1512 में यहाँ तीन मंजिला भवन में श्री यंत्र, श्री महिषमर्दिनी यंत्र, और कामेश्वरी यंत्र स्थापित कर माँ राजराजेश्वरी मंदिर की स्थापना की। यहाँ की प्रमुख विशेषता यह है कि मंदिर की मूर्ति और यंत्र भवन के अंदर ही रखे जाते हैं।
पूजा-पाठ और विशेष अनुष्ठान
मंदिर में नित्य पूजा, पाठ, हवन और अनुष्ठान परंपरा के अनुसार होते हैं। नवरात्रि के पहले दिन से लेकर विजयदशमी तक यंत्रों की विशेष पूजा और हवन होते हैं। हरियाली प्रसाद के रूप में भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है।
अखंड ज्योति और हवन की परंपरा
पुजारी कुंजिका प्रसाद उनियाल बताते हैं कि 10 सितंबर 1981 से यहाँ अखंड ज्योति प्रज्वलित है और विगत 16 वर्षों से दैनिक हवन की परंपरा जारी है। कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत माँगता है, उसकी मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होती हैं।
विदेशों तक पहुँचता है प्रसाद
यहाँ का प्रसाद और हवन की राख (बभूत) विदेशों तक पोस्ट ऑफिस के माध्यम से भेजी जाती है। कई प्रवासी भारतीय अमेरिका, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, और सऊदी अरब जैसे देशों से इसे मंगवाते हैं। जब ये लोग भारत आते हैं, तो माँ के दर्शन करना नहीं भूलते।
प्रशासनिक व्यवस्था और सेवा कार्य
मंदिर में नवरात्रि के दौरान प्रशासन की ओर से कोई विशेष व्यवस्था नहीं की जाती। पुजारी परिवार स्वयं सेवक रखकर सफाई और अन्य व्यवस्थाएँ संभालता है। प्रधान सीता देवी और महिला मंगल दल की सदस्य भी स्वेच्छा से सेवा कार्यों में योगदान देती हैं।

मंदिर से संबंधित कुल वंश
यह सिद्धपीठ कई राजपूत वंशों जैसे पंवार, परमार, भंडारी, कंडारी, रावत, रौतेला, चौहान, बिष्ट, पुंडीर, और श्रीविद्या उपासक ब्राह्मणों जैसे उनियाल, रतूड़ी, खंडूड़ी, डोभाल आदि की कुलदेवी मानी जाती है।
श्रीनगर गढ़वाल से दूरी और महत्ता
श्रीनगर गढ़वाल से लगभग 18 किमी दूर स्थित इस सिद्धपीठ में देश-विदेश के श्रद्धालु अपनी मन्नतों के साथ आते हैं। यह स्थान आस्था, संस्कृति और इतिहास का एक जीवंत प्रतीक है, जो भारत की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को सजीव रखता है।
Questions and Answers about Shri Rajrajeshwari Temple, Devalgarh (Srinagar Garhwal)
1. माँ राजराजेश्वरी मंदिर कहाँ स्थित है?
माँ राजराजेश्वरी मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल के पास देवलगढ़ में स्थित है।
2. माँ राजराजेश्वरी को किस रूप में पूजा जाता है?
माँ राजराजेश्वरी को धन, वैभव, योग और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।
3. इस मंदिर की स्थापना किसने की थी?
गढ़वाल नरेश अजयपाल ने वर्ष 1512 में इस मंदिर की स्थापना की थी।
4. मंदिर की प्रमुख विशेषता क्या है?
मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है कि देवी की मूर्ति और यंत्र मंदिर भवन के अंदर रखे गए हैं और उनकी नियमित पूजा होती है।
5. मंदिर में कौन-कौन से यंत्र स्थापित हैं?
यहाँ श्रीयंत्र, श्री महिषमर्दिनी यंत्र और कामेश्वरी यंत्र स्थापित हैं।
6. मंदिर में कौन-कौन से अनुष्ठान होते हैं?
मंदिर में नित्य पूजा, पाठ, हवन और विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, खासकर नवरात्र के दौरान।
7. अखंड ज्योति की परंपरा कब से जारी है?
10 सितंबर 1981 से यहाँ अखंड ज्योति प्रज्वलित है और पिछले 16 वर्षों से दैनिक हवन भी होता है।
8. विदेशों में प्रसाद कैसे भेजा जाता है?
मंदिर का हवन प्रसाद और राख (बभूत) पोस्ट ऑफिस के माध्यम से विदेशों में अमेरिका, लंदन, ऑस्ट्रेलिया और सऊदी अरब जैसे देशों में भेजी जाती है।
9. नवरात्रि के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था कैसे होती है?
नवरात्रि के दौरान कोई विशेष प्रशासनिक व्यवस्था नहीं की जाती। पुजारी परिवार और महिला मंगल दल स्वयंसेवा के माध्यम से सफाई और अन्य प्रबंध करते हैं।
10. किन वंशों की कुलदेवी मानी जाती है?
यह मंदिर पंवार, परमार, भंडारी, कंडारी, रावत, चौहान, बिष्ट, पुंडीर जैसे राजपूत वंशों और उनियाल, रतूड़ी, खंडूड़ी, डोभाल जैसे श्रीविद्या उपासक ब्राह्मणों की कुलदेवी मानी जाती है।
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