बुरांश : नागालैंड और हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा Buransh : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
बुरांश : नागालैंड और
हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Buransh :
Lok-Katha (Himachal Pradesh)
(बुरांश नागालैंड और हिमाचल प्रदेश का राज्य पृष्प है)
भारत और नेपाल के
हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में बुरांश से जुड़ी अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं।
इनमें कहीं इसे एक दैवीय वृक्ष कहा गया है और कहीं किन्नरों को चिर यौवन प्रदान
करनेवाला वृक्ष बताया गया है। एक प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार-
हिमालय पर्वत पर
ऊँची-ऊँची पहाड़ियों और शानदार वनों से भरा हुआ किन्नर देश था। यहाँ का राजा बहुत
नेक, ईमानदार, दयालु और सभी प्रकार से अपनी प्रजा का हित
चाहनेवाला था। वह हमेशा ऐसे प्रयास करता रहता था, जिससे उसकी प्रजा अधिक
सुखी और सम्पन्न बने। किन्नर देश के सभी लोग अपने राजा के समान सज्जन और दयालु थे।
वे आपस में बड़े प्रेमभाव से रहते थे, अतः उनके मध्य कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं होता था।
किन्नर देश के
सभी लोग किन्नर कहलाते थे। किन्नरों के पास सुख-सम्पत्ति, धन, वैभव सब कुछ था, किन्तु वे बहुत
कुरूप थे। किन्नरों का पूरा शरीर हृष्ट-पुष्ट और शक्तिशाली था, किन्तु उनका
चेहरा बड़ा कुरूप और वीभत्स था। कुछ किन्नरों के चेहरे तो इतने वीभत्स थे कि दूसरे
देशों के लोग उन्हें देखते ही अपना मुँह दूसरी ओर कर लेते थे। किन्नर देश के आसपास
के देशों के लोग किन्नर देश को अभिशप्त मानते थे और यहाँ के लोगों से घृणा करते
थे।
किन्नर देश का
राजा बड़ा साहसी और शक्तिशाली था। किन्तु वह भी कुरूप था। किन्नर राजा चाहता था कि
वह और उसकी प्रजा देवी-देवताओं के समान भव्य और सुन्दर दिखाई दे। इसके लिए उसने
अनेक उपाय किए। साधु-सन्तों की सेवा की, हवन-पूजन और यज्ञ कराए।
किन्तु कोई प्रभाव नहीं पड़ा। राजा ने भी अपनी और अपने राज्यवासियों की कुरूपता को
एक अभिशाप मान लिया।
किन्नर राजा को
शिकार का बहुत शौक था। उसके राज्य में घने जंगल थे, जहाँ बाघ, तेंदुआ, भालू, हिरन आदि सभी
प्रकार के वन्यजीव मिलते थे। वह प्रायः शिकार के लिए जाता रहता था। राजा आज तक कभी
भी खाली हाथ नहीं लौटा था। वह जब भी शिकार पर जाता तो कोई अच्छा शिकार लेकर ही
लौटता था।
एक बार किन्नर
राजा शिकार के लिए निकला। उसके साथ सेनापति और चार सेवक भी थे। राजा, सेनापति और चारों
सेवक प्रातःकाल होते ही शिकार पर निकल पड़े और दोपहर होने के पहले ही एक घने जंगल
में आ पहुँचे। किन्नर राजा प्रायः यहाँ आता रहता था। अतः किसी को किसी प्रकार का
डर अथवा परेशानी नहीं थी।
किन्नर राजा ने
एक घने वृक्ष के नीचे डेरा डाला। सभी लोगों को भूख लग रही थी। उन्होंने सबेरे से
कुछ खाया-पिया नहीं था। सबने पहले खाना खाया। इसके बाद कुछ समय आराम किया और फिर
अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर शिकार की तलाश में चल पड़े।
अचानक जंगल में
बड़ी तेज हवा चलने लगी और तूफान आ गया। तूफान इतना तेज था कि जंगल के वृक्ष
उखड़-उखड़कर गिरने लगे। राजा ने अपने जीवन में इतना तेज तूफान कभी नहीं देखा था।
तूफान को देखने से ऐसा लगता था, मानों वह अपने साथ पूरा जंगल उड़ा ले जाएगा।
तूफान के कारण कुछ ही देर में चारों ओर अँधेरा-सा छा गया। सेनापति और सेवकों ने
किन्नर राजा के साथ बने रहने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे अपने-अपने घोड़े
सँभाल नहीं पाए और एक-दूसरे से बिछुड़ गए।
कई घंटे बाद जब
तूफान शान्त हुआ तो शाम हो चुकी धी। किन्नर राजा ने अपने चारों ओर नजरें दौड़ाईं।
दूर-दूर तक किसी का पता नहीं था। वह इस घने जंगल में अकेला रह गया था। उसने तूफान
के समय अपना घोड़ा भी छोड़ दिया था। उसने कुछ समय तक तो अपने सेनापति और सेवकों को
खोजने का प्रयास किया। इसके बाद वह रात बिताने के लिए सुरक्षित स्थान की खोज में
जुट गया। किन्नर राजा अपने राज्य से बहुत दूर आ चुका था। उसके पास उसका घोड़ा भी
नहीं था। अतः वह रात में अपने महल नहीं पहुँच सकता था।
धीरे-धीरे रात का
अँधेरा बढ़ने लगा। किन्नर राजा यह निश्चित नहीं कर पा रहा था कि वह किसी वृक्ष पर
रात बिताए या किसी पहाड़ी गुफा की खोज करे। वृक्ष पर तेंदुए का खतरा था और पहाड़ी
गुफा में बाघ और भालू का। अन्त में राजा ने इन दोनों स्थानों पर रात बिताने का
विचार छोड़ा और रात भर न सोने का निर्णय लिया। किन्नर राजा अभी तक एक घने वृक्ष के
नीचे खड़ा था। वह वृक्ष के नीचे से खुले स्थान पर आ गया। यहाँ एक ऊँची चट्टान थी।
यह चट्टान इतनी चौड़ी थी कि इस पर सरलता से रात बिताई जा सकती थी।
पूर्णिमा की रात
थी। चन्द्रमा की चाँदनी में पूरा जंगल साफ दिखाई दे रहा था।
किन्नर राजा
चट्टान पर चढ़ गया। वह बहुत थक गया था,
अतः लेट गया। राजा सोना
नहीं चाहता था, लेकिन वह इतना थक गया था कि उसे नींद आ गई। राजा को सोते
हुए अभी कुछ ही समय बीता था कि अचानक एक चीख सुनकर उसकी आँख खुल गई।
यह किसी स्त्री
की चीख थी।
किन्नर राजा
सावधान हो गया। वह उठकर खड़ा हो गया और चारों तरफ नजरें दौड़ाने लगा। उसकी तलवार
उसके पास ही थी। इसी समय स्त्री दुबारा चीखी। चीख किन्नर राजा के पास से ही आई थी।
किन्नर राजा को दिखाई तो कुछ नहीं दिया। फिर भी वह उसी ओर तेजी से आगे बढ़ा, जिधर से चीख आई
थी।
अचानक किन्नर
राजा ने जो कुछ भी देखा तो देखता ही रह गया। उससे कुछ दूरी पर एक लम्बा-चौड़ा दानव
था। दानव के सामने एक बहुत सुन्दर स्त्री हाथ जोड़े खड़ी गिड़गिड़ा रही थी। दानव
की आँखों में वासना थी। वह जब उस स्त्री की ओर बढ़ता तो वह भय से चीख पड़ती और
इधर-उधर भागकर अपने को बचाने का प्रयास करती।
किन्नर राजा बड़ा
साहसी और शक्तिशाली था। उसने कुछ पल तो यह दृश्य देखा और फिर बिना समय नष्ट किए
दुष्ट दानव को ललकारा।
दानव ने इसकी
कल्पना भी नहीं की थी। उसने किन्नर राजा की ललकार सुनी तो सुन्दर स्त्री को छोड़कर
राजा की ओर बढ़ा।
कुछ ही पलों में
दोनों आमने-सामने थे।
दुष्ट दानव ने
पहले तो डरा-धमकाकर किन्नर राजा को भगाने की कोशिश की, किन्तु जब किन्नर
राजा तलवार लेकर उसकी ओर बढ़ा तो वह भी लड़ने को तैयार हो गया।
दुष्ट दानव के
पास कोई शस्त्र नहीं था, किन्तु वह महाबली था। उसने पास के एक वृक्ष की
मोटी-सी डाल तोड़ी और उससे किन्नर राजा पर प्रहार किया। राजा ने प्रहार बचा लिया
और दानव के पीछे आ गया। दुष्ट दानव को यह लग गया कि सामने खड़ा व्यक्ति भी बहुत
साहसी और शक्तिशाली है। उसने इस बार एक पूरा का पूरा वृक्ष उख़ाड़ा और किन्नर राजा
पर फेंका। राजा इस वार को भी बचा गया।
इस प्रकार दोनों
के मध्य प्रातःकाल तक युद्ध होता रहा। दानव बार-बार किसी वृक्ष की मोटी डाल तोड़कर
अथवा पूरा वृक्ष उख़ाइकर किन्नर राजा पर प्रहार करता और किन्नर राजा अपनी चालाकी
और फुर्ती से उसका वार बचा जाता । लेकिन किन्नर राजा को दानव पर वार करने का एक भी
अवसर नहीं मिल पा रहा था। दुष्ट दानव किन्नर राजा पर इतनी तेजी से प्रहार कर रहा
था कि राजा का पूरा ध्यान उसके वार बचाने में लगा हुआ था।
सुन्दर स्त्री
दूर खड़ी किन्नर राजा और दुष्ट दानव की लड़ाई देख रही थी। उसके सामने खड़े दोनों
महाबली बहुत कुरूप, किन्तु शक्तिशाली थे। लेकिन दोनों में जमीन
आसमान का अन्तर था। एक स्त्री को अपमानित करने के लिए प्रहार पर प्रहार कर रहा था
और दूसरा स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए अपनी जान पर खेलकर उसका सामना कर रहा
था।
अचानक किन्नर
राजा को एक अवसर मिल गया। दुष्ट दानव एक मजबूत पेड़ को उखाड़कर उस पर प्रहार करना
चाहता था। लेकिन वृक्ष की जड़ें इतनी गहरी थीं कि वह सरलता से नहीं उखड़ रहा था।
किन्नर राजा ने
इस अवसर का लाभ उठाया और अपनी तलवार से दुष्ट दानव के पैरों पर भरपूर वार किया।
दुष्ट दानव यह
वार सहन नहीं कर सका। उसका एक पैर कट गया। अब वह राजा की ओर दूसरे पैर से लँगड़ाते
हुए आगे बढ़ा।
दुष्ट दानव का एक
पैर कटने से किन्नर राजा का साहस बढ़ा। उसने उसके दूसरे पैर पर भी तलवार से वार
किया।
दुष्ट दानव का दूसरा
पैर भी कट गया। वह बहुत जोर से चीखा और अपने हाथों के बल राजा की ओर बढ़ा।
किन्नर राजा पहले
से ही सावधान था। उसने एक-एक करके दुष्ट दानव के दोनों हाथ काट डाले और अन्त में
उसका सिर काटकर उसे मार डाला।
सुन्दर युवती ने
राक्षस को मरते हुए देखा तो उसकी जान में जान आई। उसे अपने सामने खड़ा कुरूप
व्यक्ति बड़ा सुन्दर लगा। किन्नर राजा अभी तक दुष्ट दानव से युद्ध करने में लगा
था। उसने इस रूपसी को ठीक से देखा भी नहीं था। दानव के मरने के बाद उसने युवती को
ठीक से नीचे से ऊपर तक देखा। युवती बड़ी सुन्दर थी और उसे मोहक नजरों से देख रही
थी। किन्नर राजा उसे देखकर मुस्कराया और उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाए। सुन्दर
युवती सम्भवतः इसी क्षण की प्रतीक्षा में थी। वह आगे बढ़ी और किन्नर राजा के हृदय
से लग गई।
किन्नर राजा बड़ी
देर तक युवती के सिर पर हाथ फेरता रहा। इसके बाद दोनों में बातें होने लगीं।
इन्हीं बातों में युवती ने उसे बताया कि वह एक ऋषि कन्या है। उसके पिता परम तपस्वी
ऋषि हैं और यहीं पास में ही उनका आश्रम है। युवती ने किन्नर राजा को अपने पिता के
पास ले चलने की इच्छा भी व्यक्त की । उसने किन्नर राजा को यह भी बताया कि उसके पिता
बड़े क्रोधी हैं, किन्तु इसमें घबराने या परेशान होने की कोई बात
नहीं है।
किन्नर राजा को
युवती बहुत अच्छी लगी। वह उसकी सुन्दरता पर मोहित हो चुका था और उससे विवाह करना
चाहता था। अतः वह ऋषि के पास जाने के लिए सहर्ष तैयार हो गया।
अचानक ऋषि स्वयं
प्रकट हो गए। वह अपनी कन्या को ढूँढ़ते हुए यहाँ पहुँचे थे। युवती ने अपने पिता को
देखा तो शरमाते हुए, किन्नर राजा के पास से हटी और अपने पिता के पास
जाकर खड़ी हो गई। उसने अपने पिता को बताया कि पिछली शाम वह उनके लिए जंगल से
फल-फूल लेने निकली तो एक दानव उसके पीछे पड़ गया। दानव उसे अपमानित करना चाहता था।
इसके साथ ही उसने पिता को यह भी बताया कि किन्नर राजा ने किस प्रकार दानव को मारा
और उसकी रक्षा की । उसने पास पड़ा दानव का क्षत-विक्षत शरीर भी उन्हें दिखाया।
ऋषि किन्नर राजा
से बहुत प्रभावित हुए और उसे अपने आश्रम ले गए। ऋषि ने राजा को जलपान कराया और
विस्तार से बातें कीं। इन्हीं बातों से किन्नर राजा को यह पता चला कि ये ही वह ऋषि
हैं, जिनके शाप से किन्नर देश के सभी लोग कुरूप हो गए। ऋषि को भी
यह मालूम होने पर बहुत दुख हुआ, किन्तु वह अपना दिया हुआ शाप वापस नहीं ले सकते
थे।
ऋषि ने बहुत
सोच-विचार किया और फिर किन्नर राजा को लेकर आश्रम के बाहर आ गए। उन्होंने अपने
कमंडल से थोड़ा-सा जल निकाला और चारों दिशाओं में छिड़क दिया। ऋषि के ऐसा करते ही
चारों और नए-नए वृक्ष निकल आए। ये वृक्ष लाल रंग के फूलों से लदे थे। ऋषि कन्या और
किन्नर राजा दोनों यह सब बड़े आश्चर्य से देख रहे थे।
ऋषि ने अपने
द्वारा उत्पन्न किए वृक्षों और फूलों को देखा और फिर धन्वन्तरि का आह्वान किया।
कुछ ही पलों में
धन्वन्तरि प्रकट हो गए।
ऋषि ने धन्वन्तरि
को अपने शाप, किन्नर राजा और अपनी कन्या के विषय में विस्तार से बताया और
उनसे यह अनुरोध किया कि वह इन फूलों से एक औषधि तैयार करें, जिसके सेवन से
व्यक्ति सुन्दर और आकर्षक बने तथा उसे चिर-यौवन प्राप्त हो।
धन्वन्तरि ने ऋषि
का अनुरोध स्वीकार कर लिया। उन्होंने इन नए-नए लाल फूलों से ऋषि के आश्रम में ही
एक अलौकिक औषधि तैयार कर दी तथा किन्नर राजा से इसे खाने के लिए कहा।
किन्नर राजा ने
ऋषि और धन्वन्तरि दोनों को प्रणाम किया और औषधि ग्रहण कर ली।
किन्नर राजा के
औषधि खाते ही एक चमत्कार हुआ। उसका साँवला शरीर गोरा हो गया और उसका कुरूप चेहरा
रूपवान हो गया। देखते ही देखते उसका चेहरा देवताओं के समान सुन्दर और आभामय दिखने
लगा।
ऋषि कन्या ने
अपने प्रेमी को इस रूप में देखा तो वह प्रसन्नता से भर उठी। उसने धन्वन्तरि को
प्रणाम किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया।
धन्वन्तरि का
कार्य पूरा हो चुका था। उन्होंने ऋषि से आज्ञा ली और अन्तर्धान हो गए। वह जाते-जाते
लाल फूलों से तैयार की गई शेष औषधि किन्नर राजा को दे गए।
ऋषि को भी किन्नर
राजा का नया रूप-रंग अच्छा लगा। उन्होंने उसके साथ अपनी कन्या का विवाह करके विदा
किया और अपनी तपस्या में लीन हो गए।
किन्नर राजा ऋषि
कन्या के साथ अपने राजमहल में आ गया। उसने अगले दिन अपने राज्य के सभी लोगों को
धन्वन्तरि द्वारा तैयार की गई औषधि दी। इससे उसके राज्य के सभी किन्नर पहले के
समान सुन्दर हो गए।
हिमाचल प्रदेश राज्य प्रतीक चिह्न |
ऋषि के चमत्कार
से उत्पन्न जिन फूलों से धन्वन्तरि ने सुन्दरता और चिर-यौवन की औषधि तैयार की थी
वे आगे चलकर बुरांश के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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