उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं हंसा मनराल शर्मा Famous Women of Uttarakhand "Hansa Manral Sharma"

 हंसा मनराल शर्मा

उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं  "हंसा मनराल शर्मा"

Famous Women of Uttarakhand "Hansa Manral Sharma"
भूमिकाभारत की पहली वेटलिफ्टर महिला कोच श्रीमती। हंसा मनराल शर्मा ने गुरु की महिमा के अनुरूप कार्यों का संपादन किया और भारत के खेल जगत में अपनी अलग पहचान बनाकर सर्व सीसी द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त किया। उत्तराँचल में जब भी किसी महिला खिलाड़ी का जिक्र होता है तो हंसा मनराल का नाम अपने आप याद आ जाता है। हंसा मनराल का जन्म 17 मई, 1957 को देवलोला भाटकोट में एक सज्जन व्यक्ति श्री महेंद्र सिंह मनराल और माता लक्ष्मी देवी के घर में हुआ था। उनके चार भाई बहन चतुर सिंह, भगवान सिंह, विक्रम सिंह, कमला देवी हंसा परिवार में सबसे छोटे थे। प्रारंभिक शिक्षा भाटकोट से प्राप्त करने के बाद उन्होंने राजकुमार इंटरमीडिएट इंटर कॉलेज से कक्षा 7 से 12 तक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने रसना कॉलेज से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। मंडलीय एथलेटिक्स में उन्होंने निशानेबाजी एवं भाला फेंक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर कुमू चैंपियन का खिताब प्राप्त किया तथा रूड़की में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में "गोला फेंक" में रजत पदक प्राप्त कर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया। हंसा में बचपन से ही साहस और कड़ी मेहनत कूट-कूट कर भरी थी। गेंद फेंकने का अभ्यास उनके बड़े भाई (सुक्ति) चतुर सिंह की मदद से किया जाता था, जिसमें पत्थरों को गेंद का रूप दिया जाता था। 1979 से 1985 तक राष्ट्रीय खेलों में स्पे्रल, फ्लाईव्हील एवं भाला स्पर्धाओं में हंसा मनराल ने 12 स्वर्ण, 4 रजत एवं 5 कांस्य पदक प्राप्त कर भारत की कुशल खिलाड़ी होने का गौरव प्राप्त किया। इसी बीच 15 मार्च 1980 को स्पोर्ट्स कोटेशन से एफसीआई में नौकरी मिल गयी। राष्ट्रीय खेल के इस मुकाम तक पहुंचने में वे एथलेटिक्स कोच श्री दीवान सिंह का विशेष हाथ मानते हैं। 1983 में गंभीर चोट और अन्य शारीरिक समस्याओं के कारण एथलेटिक्स छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसी बीच खुद को स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने लखनऊ के गुरु गोबिंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज के मैदान में जाना शुरू कर दिया. सौभाग्य से यहीं उनकी मुलाकात राष्ट्रीय कोच श्री गोविंद प्रसाद शर्मा से हुई। श्री शर्मा के निर्देशन में हंसा ने भारोत्तोलन की ललित कलाओं को सीखने के कुछ ही समय बाद वह कार्य किया जिसका उदाहरण नहीं मिलता। 1985 में पहली बार 80 से 90 किलोग्राम वजन उठाकर वेटलिफ्टिंग में जीत हासिल की और 1988 में भी लगातार जीत हासिल की।

उपलब्धि श्रीमती हना की खेल उपलब्धियों पर एक नजर:

29 सितम्बर 2001 को भारत के माननीय राष्ट्रपति के.आर.नारायण द्वारा द्रोणाचार्य पुरस्कार। श्रीमती हंसा मनराल शर्मा का मानना ​​है कि उत्तराँचल में असंख्य प्रतिभाएँ छिपी हुई हैं। गरीबी, अशिक्षा के कारण उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता। आज उत्तरांचल के कई खिलाड़ियों ने खेल जगत में देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से खेल के मैदान का सर्वोच्च लक्ष्य हासिल किया। जिन लोगों को बचपन से ही खेतों और जंगलों में काम करने की आदत होती है, वे शारीरिक रूप से अधिक समृद्ध होते हैं। अगर आप इस प्रतिभा को पहचानेंगे और सही दिशा देंगे तो वेट लिफ्टिंग के क्षेत्र में पहाड़ खड़ा होगा और एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगा। वर्तमान में हंसा मनराल शर्मा लखनऊ में वेटलिफ्टिंग कोच के रूप में कार्यरत हैं। यहां नए खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने का काम पूरी प्रतिबद्धता के साथ किया जाता है. उनकी उपलब्धियों और आदतों पर सभी भारतीयों, विशेषकर उत्तराँचल के निवासियों को गर्व है। 
हंसा मनराल को द्रोणाचार्य पुरस्कार कब मिला था?
साल 2001 में हंसा मनराल को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच पिथौरागढ़ की हंसा मनराल
हंसा मनराल भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच रही हैं. रोमा देवी, कर्णम मल्लेश्वरी, ज्योत्सना दत्ता छाया अनीता चानू आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो हंसा मनराल के प्रशिक्षणार्थी रहे. हंसा मनराल के दिशा निर्देशन में पहली बार भारतीय भारत्तोलक महिलाओं ने विश्व भारोत्तोलन प्रतियोगिता में 5 रजत और 2 कांस्य पदक जीते. चीन में आयोजित एशियाड चैम्पियनशिप में भारतीय महिला टीम ने 3 स्वर्ण, 4 सिल्वर और 14 कांस्य पदक प्राप्त किये. 29 सितम्बर 2001 को द्रोणाचार्य पुरूस्कार से हंसा मनराल को सम्मानित किया गया.

पिथौरागढ़ के भाटकोट में जन्मी हंसा मनराल का परिवार एक सामान्य परिवार था. अपने चार भाई बहिनों में वह सबसे छोटी थी. प्राथमिक शिक्षा भाटकोट के प्राइमरी स्कूल से पास करने के बाद इंटर की परीक्षा उन्होंने राजकीय बालिका इंटर कालेज ( जी.जी.आई.सी.) पिथौरागढ़ से ही किया. पिथौरागढ़ डिग्री कालेज से ही हंसा मनराल ने बी.ए की परीक्षा पास की.

इसी दौरान गोला, चक्का और भाला फेंक तीनों में पहला स्थान प्राप्त कर हंसा मनराल ने कुमाऊं चैम्पियन का खिताब जीता. संसाधनों की कमी के कारण हंसा मनराल गोला फेंक की प्रेक्टिस के लिये गोल पत्थरों से प्रेक्टिस किया करती थी. 1979 से 1985 तक राष्ट्रीय खेलों में गोला, चक्का और भाला फेंक प्रतियोगिताओं में हंसा मनराल ने 12 स्वर्ण, 4 रजत और 5 कांस्य पदक प्राप्त किये. 1983 में भाला फेंक की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हंसा मनराल के पैर में गंभीर चोट आ गयी जिसके बाद कुछ समय के लिये वह खेल से दूर रही. 1985 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता कोयंबटूर में हंसा मनराल ने स्वर्ण पदक जीता लेकिन लगातार पैर दर्द के कारण उन्हें एथलेटिक्स छोड़ना पड़ा.
इसके बाद लखनऊ में हंसा मनराल की मुलाक़ात भारत्तोलन के राष्ट्रीय कोच गोविन्द प्रसाद शर्मा से हुई. गोविन्द प्रसाद शर्मा ने हंसा मनराल को भारोत्तोलन के लिये प्रेरित किया. 1985 में हंसा मनराल ने पहली बार में ही 80 से 90 किलोग्राम वजन उठाकर उ.प्र. भारोत्तोलन प्रतियोगिता जीत ली. 1986 से 1988 के बीच हंसा मनराल ने 7 नये राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किये. इसके बाद हंसा मनराल बतौर खेल प्रशिक्षक मैदान पर रही जो अब तक जारी है.
यहां हंसा मनराल की बेटी भूमिका शर्मा का जिक्र भी जरुरी रह जाता है. भूमिका शर्मा एक अन्तराष्ट्रीय स्तर की महिला बॉडी बिल्डर हैं. 2017 में महज 21 साल की उम्र में भूमिका शर्मा ने बॉडी बिल्डिंग मिस वर्ल्ड का ख़िताब जीत लिया था. बॉडी बिल्डिंग मिस वर्ल्ड का ख़िताब जीतने वाली भूमिका शर्मा भारत की पहली महिला हैं.
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 पिथौरागढ़ के भाटकोट में जन्मी हंसा मनराल भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच रही है. इनके दिशा-निर्देश में पहली बार भारतीय भारत्तोलक महिलाओं ने विश्व भारोत्तोलन प्रतियोगिता में पांच रजत और दो कांस्य पदक जीते थे.
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