06 वीं सदी का महान सूर्य मंदिर - 06th century Great Sun Temple

 06 वीं सदी का महान सूर्य मंदिर

(पलेठी का भानु सूर्य मंदिर) - देवभूमि उत्तराखंड के इस मंदिर की जानकारी बहुत कम लोगों को है। पुरातत्वविद इस मंदिर को लगभग 1400 साल पुराना मंदिर बताते हैं जो 06/07 वीं सदी के आस पास स्थापित हुआ। यह मंदिर टिहरी जिले के हिंडोलाखाल विकासखंड से कुछ दूर वनगढ़ क्षेत्र के पलेठी गांव में स्थित है। यह मंदिर उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर और अल्मोड़ा के कटारमल सूर्य मंदिर से भी प्राचीन बताया गया है। पुरातत्वविद कोणार्क और कटार मल मंदिर की स्थापना 12 वीं शताब्दी का बताते हैं। पलेटी का सूर्य मंदिर उत्तराखंड के अन्य मंदिरों में सबसे प्राचीन बताया गया है। इस मंदिर के शिलापट पर राजा कल्याण बर्मन और आदि बर्मन का लेख भी मौजूद हैं, जो गुप्तोत्तर काल के बताएं गए हैं यह लेख ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है।
ब्राम्ही लिपि छठी-सातवीं शताब्दी में अत्यधिक प्रचलित रही थी। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड कहे जाने वाले श्रद्धेय शिवप्रसाद डबराल जी "चारण" अपनी पुस्तक में पलेठी के भानु मंदिर के निर्माण कर्ता कल्याण वर्मन को बताते हैं। डॉ यशवंत सिंह कटोच ने देवप्रयाग के आसपास गंगा के तटवर्ती प्रदेश में पलेठी के कल्याण बर्मन के वंश को संभवतया एक स्वतंत्र राज्य कहा है, किंतु कौमुदी महोत्सव नाटक के कल्याण बर्मन से परस्पर कोई संबंध नहीं है (वंश मोखरी)। यह मंदिर फांसणा शैली में बना है और इसके प्रवेश द्वार के ऊपर 07 घोड़ों के रथ पर सवार सूर्य भगवान की पत्थर से बनी प्रतिमा है। पलेठी के सूर्य मंदिर के अलावा गुजरात के पाटन का मोढेरा सूर्य मंदिर भी इसी समयकाल या छठी-सातवीं शताब्दी के आसपास माना जाता है।
यह पुरातनकाल का गौरवमयी स्थान है। इसका संरक्षण और संवर्धन करना अति आवश्यक है। इस मंदिर के अतिरिक्त उत्तराखंड में सूर्य भगवान को समर्पित मढ़ का सूर्य मन्दिर , चौपाता सूर्य मन्दिर, भौनादित्य सूर्य मन्दिर पिथौरागढ़, कुलसारी का सूर्य मंदिर चमोली, खेतीखान सूर्य मन्दिर लोहाघाट, रमकादित्य सूर्य मन्दिर व सूई सूर्य मन्दिर चम्पावत, भटवाड़ी का सूर्य मन्दिर उत्तरकाशी, क्यार्क का सूर्य मन्दिर पौड़ी, कटारमल्ल का (बड़ादित्य/गुडादित्य) सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा, घोड़ाखाल का सूर्य मन्दिर नैनीताल आदि हैं।



आइए जानते हैं इस मंदिर की कुछ प्रमुख विशेषताएं

  • यह मंदिर उत्तराखंड में उपस्थित सबसे प्राचीनतम मंदिर है, इतिहासकारों ने मंदिर में मिले लेखों के आधार पर इसका निर्माण काल 675 से 700 ईसवी के मध्य में माना है।
  • मंदिर में उपस्थित भगवान सूर्य की सवा एक मीटर ऊंची मूर्ति विरजमान है।
  • यहाँ कालसी (देहरादून) के बाद उत्तराखंड में उपस्थित सबसे प्राचीनतम शिलालेख मौजूद हैं यहाँ राजा कल्याण बर्मन और राजा आदि बर्मन के लेख मौजूद हैं जिन्हें उत्तर गुप्त ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है जिसे इतिहासकार छटवीं शताब्दी की लिपि मानते हैं।
  • मंदिर फांसाण शैली का बना है जिसका प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुखी हैं, जो कि अंग्रेज़ी के 'टी' आकार का बना हुआ है प्रवेश द्वार के ऊपर सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा विराजित है, कुछ इसी तरह के द्वार देवलगढ़ और नाचन मंदिरों में भी मौजूद हैं इससे इतिहासकार इस मंदिर की प्राचिनता गुप्तोत्तर काल मानते हैं।
  • यह मंदिर विश्व में उपस्थित बेहद कम सूर्य मंदिरों में से एक है गुजरात के पाटन में उपस्थित मोढेरा सूर्य मंदिर भी इसी शताब्दी का माना जाता है जब कि ओड़िशा का सुप्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर बारवीं शताब्दी के बीच का माना जाता है, उत्तराखंड के अलमोड़ा के कटारमल सूर्य मंदिर भी इसी शताब्दी के मध्य का माना जाता है।
विडंबना कहें या सच विश्व के सबसे प्राचीनतम सूर्य मंदिरों में सम्मिलित टिहरी जिले का पलेठी सूर्य मंदिर आज खराब रखरखाव के कारण जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है।
  • उत्तराखंड में मौजूद सबसे प्राचीनतम शिलालेखों में से एक(कालसी, देहरादून के बाद उत्तराखंड का सबसे प्राचीनतम शिलालेख) आज जिर्ण स्थिति में है।
  • यह मंदिर लगभग साढ़े सात मीटर ऊंचा है जिसके साथ समूह के अन्य मंदिर भी मौजूद हैं इन समहों में श्री गणेश जी का मंदिर लगभग पूरी तरह से जिर्ण हो गया है जबकि यही हाल पार्वती माता मंदिर का भी है।
  • दिलचस्प बात यह है की मंदिर उत्तराखंड पुरातत्व विभाग के अधीन है जबकि मंदिर में देवी-देवाताओं की मूर्तियाँ खुले  में पड़ी हैं जोकि बेहद चौंकाने वाला दृश्य है।

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