पलेठी का प्राचीन सूर्य मंदिर समूह
कोणार्क के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर का नाम आपने सुना ही होगा अल्मोड़ा के कटारमल सूर्य मंदिर से भी आप परिचित होंगे, लेकिन देवप्रयाग के पलेठी गांव में स्थित सूर्य मंदिर समूह के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आइये जानते हैं एतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के इस मंदिर समूह के बारे में।------- सूर्य मंदिर समूह की स्थिति------
देवप्रयाग से चंद्रबदनी मंदिर मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर हिंडोलाखाल नामक स्थान है यहां से 5 किलोमीटर दूर लुलेरा गुलेरा घाटी में स्थित है पलेठी गांव। यह गांव प्राकृतिक छटा से भरपूर है। यहीं पर प्राचीन सूर्य मंदिर समूह स्थित है। स्कंद पुराण के केदारखंड (148) में भागीरथी नदी के इस बायें तटवर्ती तथा पर्वत स्कंध क्षेत्र को भास्कर क्षेत्र कहा गया है जहां सूर्य पूजा प्रमुख रूप से होती है।इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी में बनाया गया था।
बताया जाता है कि यहां खुदाई में मंदिरों का समूह प्राप्त हुआ था जिसमें सूर्य मंदिर, शिव मंदिर, दुर्गा मंदिर व गणेश मंदिर थे। स्थानीय जनधारणा के अनुसार पहले यहाँ पर 11मन्दिरों का समूह था।जिनमें अधिकांश प्राकृतिक प्रकोपों से ध्वस्त हो गए। यह मंदिर वास्तुकला व शिल्प कला की दृष्टि से अद्भुत है। मंदिर फांसणा शैली में बना है और इसके प्रवेश द्वार के ऊपर सात घोड़ों के रथ पर सवार सूर्यदेव की पत्थर से निर्मित भव्य प्रतिमा विराजमान है। मंदिर की कुल ऊंचाई 7.50 मीटर है। मंदिर के शिखर का निर्माण 12 क्षैतिज पत्थर की पट्टियों से हुआ है । मंदिर में सूर्यदेव की पत्थर से बनी 1.2 मीटर ऊंची दो अद्भुत प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुख है, जो कि अंग्रेजी के 'टी' के आकार में बना है। इसी तरह के द्वार नचना व देवलगढ़ मंदिरों में भी हैं। इसके आधार पर मंदिर की प्राचीनता गुप्तोत्तर काल मानी जाती है।
1) सूर्य मन्दिर---- मन्दिरों मे सर्वप्रथम सूर्य मन्दिर की स्थिति है, जिसका गर्भगृह वर्गाकार है। इसकी भीतरी दीवारें वितान सज्जाहीन हैं।मन्दिर का त्रिशाखा प्रवेशद्वार पूर्वाभिमुख है, इसकी सज्जा के आधार पर इसे गुप्तकालीन देवालयों के प्रवेश द्वारों से तुलनीय किया गया है। मन्दिर पर फांसणा अथवा पीढा देवल शैली का शिखर है। वर्तमान में शुकनास के ऊपर 66*77सेमी.के प्रस्तर पट्ट पर निरूपित रथारूढ सूर्य की प्रतिमा शोभित है। द्वारशाखाओं के निचले पार्श्वों मे क्रमशः मकरवाहिनी गंगा और कच्छपारूढ यमुना शोभित है। सूर्य मन्दिर की भीतरी पश्चिमी दीवार से लगी हुई 130*0.70मीटर माप की 5.2सेमी. ऊँची पीढिका पर बूटधारी सूर्य की 122मीटर ऊँची, 62सेमी.चौड़ी और 18सेमी मोटी प्रतिमा स्थापित है। मूर्ति मे सूर्य विशाल चोलाधारी हैं। उनकी दोनों भुजाओं मे कमलदण्ड है, घुटनों के नीचे कुंचुके हैं, सिर के चारों ओर प्रभामंडल है, घुंघराली अलकें कंधों मे बिखरी हुई हैं एवं बाहों मे उत्तरीय लहरा रहा है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की बूटधारी मूर्तियाँ मूलतः शक देवता के रूप मे पूजी जाती रही हैं, एवं इन्हें शक मूर्तियों का उत्तरी भारतीय रूप कहा गया है, जिसे कुषाणों द्वारा प्रचलित किया गया था।देश की यह भारतीय रूप, शीतप्रधान प्रथा पर ईरानी ढंग विकसित हुआ और ईस्वी सन् के कुछ ही पूर्व भारत मे प्रचलित हुआ, ऐसा माना जाता है। सूर्य मन्दिर मे वैकुण्ठ विष्णु और शेषयायी विष्णु की प्रतिमा भी रखी हैं।
2) शिव मंदिर----- सूर्य मन्दिर के ठीक पीछे पूर्वाभिमुख शिव मन्दिर स्थित है। इसका गर्भगृह वर्गाकार और सामने आयताकार अन्तराल बनाया गया है।गर्भगृह की भीतरी दीवारें सादी हैं, इसकी भीतरी माप 1.34*1.34मी.एवं बाहरी माप 2.57*2.57मी.है। मन्दिर फांसणा या देवल शैली शिखर का है। शिवमन्दिर का द्वार तीन शाखाओं द्वारा सज्जित है। इनमें क्रमशः पत्रवल्ली, फुल्लचट्टी और श्रीवृक्ष निरूपित हैं।प्रथम शाखा शैली की दृष्टि से रोचक है, पत्रवल्ली को नीचे बैठे मानव की नाभि से प्रस्फुटित होते दर्शाया गया है। ऐसी ही लतापर्ण मध्यप्रदेश मे नचना भूमरा के गुप्तकालीन प्रवेश द्वारों पर भी उत्कीर्ण मिलती है।मन्दिर के गर्भगृह के मध्य में शिवलिंग स्थापित है।
3) गणेश एवं पार्वती मन्दिर---- शिवमन्दिर के दायें पार्श्व भाग मे भग्न गणेश मन्दिर हैं।इसके गर्भगृह में पार्वती, महिषमर्दिनी दुर्गा और गणेश आदि देवताओं की खण्डित प्रतिमाएँ हैं। शिवमन्दिर के वाम पार्श्व मे पार्वती मन्दिर पूर्णतः भूमि में दबा है। केवल दांयां भाग ही खनन के बाद प्रकाश में आया है। यहीं पर एक विशाल आम्रवृक्ष की स्थिति है। शैली की दृष्टि से पलेठी मन्दिर समूह की कुछ मूर्तियों को छोड़कर अन्य सभी मन्दिरों एवं मूर्तियों को 7वीं सदी ईस्वी के उत्तरार्द्ध मे रखा गया है।मन्दिरों की स्थिति और केदारखण्ड मे इसके महत्व को देखकर आज भी लोग सैकड़ों की संख्या मे बैकुण्ठ चतुर्दशी को यहाँ सूर्य एवं शिव पूजन हेतु आते हैं।
पौराणिक उल्लेख
केदारखण्ड(148/2-11)में सूर्य मन्दिर समूह को नवला नदी के तट पर बताया गया है, जिसे कलियुग मे पुण्यप्रदायिनी माना गया है। इस स्थान पर दान से सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। यहाँ पर सूर्य ने सहस्त्र वर्ष तक शिव का तप किया था। तप से शिव ने प्रसन्न होकर सूर्य को अपने नेत्र मे स्थान दिया और जनकल्याण के लिए भास्करेश्वर/ चमनेश्वर नाम से यहाँ विराजमान हुए। नवला नदी के दायें किनारे एक पानी का स्त्रोत है,जिसे स्थानीय लोग चमन नदी कहते हैं, एवं इसका संबंध सूर्य पुत्र अश्विनीकुमार से जोड़ते हैं।
पवित्र कुण्ड
पलेठी में भास्कर कुण्ड, विष्णु कुण्ड और ब्रह्मकुण्ड की भी स्थिति मानी जाती है। केदारखण्ड(148/3)के अनुसार भास्कर कुण्ड भास्कर क्षेत्र मे स्थित है, जिसका निर्माण नवला नदी के जल अवरोध से हुआ।इसमें स्नान का विशेष महत्व है। केदारखण्ड(148/7-8) के अनुसार विष्णुकुण्ड,भास्कर कुण्ड से 10फीट दक्षिण में है, एवं नवला नदी से ही इसका निर्माण भी है, जिसके स्नान से वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति और सम्पूर्ण पापों का नाश होता है। केदारखण्ड(148/9)के अनुसार ब्रह्मकुण्ड की स्थिति भास्करकुण्ड से100फीट दूरी पर है, जिसके स्नान से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
एतिहासिक महत्त्व के शिलालेख
यहां एतिहासिक महत्व के शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं जिनमें एक पूर्ण 53.5इंच लम्बा और 27.1इंच चौड़ा और एक खण्डित (46इंच लम्बा तथा 22.2इंच चौड़ा)शिलालेख है। मंदिर में शिलापट पर राजा कल्याण बर्मन व आदि बर्मन का लेख भी मौजूद हैं। जिन्हें उत्तर गुप्त (ब्राह्मी) लिपि में लिखा गया है। यह लिपि छठी-सातवीं शताब्दी में प्रचलित थी। कालसी (देहरादून) के बाद पलेठी का यह शिलालेख उत्तराखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
सरकारी उपेक्षा की शिकार यह ऐतिहासिक पुरातात्विक धरोहर
भले ही यह स्थल ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है लेकिन फिर भी पलेठी का यह सूर्य मंदिर उत्तराखंड पुरातत्व विभाग के संरक्षण में होने के बावजूद उपेक्षित पड़ा है। इसकी सुरक्षा को लेकर भी पुरातत्व विभाग गंभीर नहीं है। यही वजह है कि रखरखाव के अभाव में यहां स्थित गणेश मंदिर और दुर्गा मंदिर ध्वस्त हो चुके हैं। सिर्फ सूर्य व शिव के मंदिर ही कुछ ठीक स्थिति में हैं। इसके अलावा सूर्य, गंगा, यमुना, पार्वती व गणेश की मूर्तियां खुले में पड़ी हैं।
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