गढ़वाल राइफल... - Garhwal Rifle...
गढ़वाल राइफल्स |
पहाड़ों से भी मजबूत हौसला, संमदर की लहरों को चीर देने की ताकत रखने वाले, दिन में 14 घंटे सिर्फ युद्धस्तर की तैयारी करने वाले, आंखों में उबाल मारता खून और देशभक्ति का कभी ना खत्म होने वाला जुनून, ये है गढ़वाल राइफल, जिसे देश की सबसे ताकतवर और तेज तर्रार सेना कहा जाता है।
अफगान युद्ध में सूबेदार बलभद्र सिंह के साहस को देखकर तत्कालीन कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल सर एफएस रॉबर्टस् ने कहा था कि एक कौम जो बलभद्र जैसा आदमी पैदा कर सकती है, उनकी अपनी अलग बटालयिन होनी ही चाहिए। 1887 में इसकी स्थापना हुई और 1892 में अधिकारिक तौर पर इसे गढ़वाल राइफल्स की उपाधि मिली। इसके बाद प्रथम विश्वयुद्ध और दूसरे विश्व युद्ध में इस राइफल के जवानों ने अपनी वीरता का परिचय दुनिया को दिया था। तबसे इन्हें वीर गढ़वाली कहा जाता है।
1941-42 में द्वितीय विश्वयुद्ध की घोषणा पर लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स की 7 नई बटालियन बनाई गई थी। इन सात बटालियनों ने ना जितने कितने वीरता पुरस्कार और सम्मान अपने नाम किए हैं। गढ़वाल राइफल को रॉयल रस्सी दी गई है, जिसे जवान अपने कंधे पर पहनते हैं। ये रस्सी वीरता, साहस और शौर्य का सूचक है। इनका घोष वाक्य है "जय बद्री विशाल"।
1947-48 में जम्मू कश्मीर में ऑपरेशन, 1948 में टिथवाल का युद्ध, 1962 में भारत चीन युद्ध, 1965 में भारत पाक युद्ध, 1965 में ही सियालकोट सेक्टर में फिलौरा की लड़ाई, 1965 में ही बुटर डोगरांडी की लड़ाई, 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध, 1971 में ही रायपुर क्रासिंग का युद्ध, 1984 में ऑप्रेशन ब्लू स्टार और इसके बाद करगिल के युद्ध में गढ़वाली वीरों ने अपनी हुंकार से दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
ऐसे ना जाने कितने ही पल हैं जब इस गढ़वाल राइफल ने देश का सीना फक्र से ऊंचा किया है। हर बार अपनी हुंकार से ये जवान दुश्मन को रौंदकर आगे बढ़े। गढ़वाल राइफल को आज उसकी तेजी, फुर्ती और वीरता के लिए देश की सबसे ताकतवर राइफल्स में शुमार किया जाता है। ना जाने कितने ऐसे वीर इस राइफल ने देश को दिए, जो सीमा पर लड़ते लड़ते अपने प्राणों को न्यौछावर कर गए। हर बार दुश्मन के लिए ये और ज्यादा घातक बने। आज कहीं भी युद्ध छिड़ता है तो सबसे पहले गढ़वाल राइफल को सीमा पर भेजा जाता है। गढ़वाल के युवाओं को गढ़वाल राइफल्स में शामिल किया जाता है।
आप भी दिल से सल्यूट करें गढ़वाल राइफल के इन वीर जवानों को।
- गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना की एक थलसेना रेजिमेंट -
- गढ़वाल राइफल्स क्या है?
- वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली जीवनी
- वीर चंद्र सिंह
- आजाद हिन्द फौज के सेनानी लेफ्टिनेंट ज्ञानसिंह बिष्ट
- 1970 के दशक में गढ़वाल राइफल्स भर्ती
- 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लड़ने वाले उत्तराखंडी ( जसवंत सिंह रावत )
- शहीद जसंवत सिंह रावत
- गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना की एक थलसेना रेजिमेंट
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