कबूतरी देवी (Kabutari Devi: A journey from a mountain village to a radio studio)

कबूतरी देवी(Kabutari Devi) कबूतरी देवी: पहाड़ के गांव से रेडियो स्टूडियो तक का सफर Kabutari Devi: A journey from a mountain village to a radio studio 

उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं  "कबूतरी देवी" Famous Women of Uttarakhand "Kabutari Devi"

पहाड़ी लोकगीतों के जरिए कानों में मिश्री घोलने वालीं लोकगायिका कबूतरी देवी ने उस जमाने में संगीत में करियर शुरू किया जब महिलाएं घरों से निकलती नहीं थीं। 70-80 के दशक में आकाशवाणी के नजीबाबाद और लखनऊ केंद्र से कबूतरी देवी गढ़वाली लोक गीतों को घर-घर तक पहुंचाती थीं।
आकाशवाणी के नजीबाबाद और लखनऊ केंद्र से कबूतरी देवी गढ़वाली लोक गीतों को घर-घर तक पहुंचाती थीं
पांच जुलाई 2018 को अस्थमा व हार्ट की दिक्कत के बाद रात्रि एक बजे कबूतरी देवी को पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। उनकी बिगड़ती हालत को देखकर 6 जुलाई को डॉक्टरों ने देहरादून हायर सेंटर रेफर किया था। लेकिन धारचूला से हवाई पट्टी पर हेलीकॉप्टर के न पहुंच पाने के कारण वह इलाज के लिए हायर सेंटर नहीं जा पाई पहाड़ी लोकगीतों के जरिए कानों में मिश्री घोलने वालीं लोकगायिका कबूतरी देवी ने उस जमाने में संगीत में करियर शुरू किया जब महिलाएं घरों से निकलती नहीं थीं। 70-80 के दशक में आकाशवाणी के नजीबाबाद और लखनऊ केंद्र से कबूतरी देवी गढ़वाली लोक गीतों को घर-घर तक पहुंचाती थीं। बता दें कि शनिवार सुबह उत्तराखंड की मशहूर फनकार कबूतरी देवी का निधन हो गया।उन्हें सांस की समस्या थी और पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में भर्ती थी। उन्हें देहरादून ले जाने के लिए शुक्रवार शाम से हेलिकॉप्टर का इंतजार होता रहा। हेलिकॉप्टर की व्यवस्था नहीं होने से और बेहतर इलाज के अभाव में शनिवार को उन्होंने दम तोड़ दिया। 

उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं  "कबूतरी देवी" Famous Women of Uttarakhand "Kabutari Devi"

थौरागढ़ के नवोदय पर्वतीय कला केन्द्र ने उन्हें छोलिया महोत्सव में बुलाकर सम्मानित किया था।
कई पुरस्कार से हुईं सम्मानित बाद में पति की मौत हो गई तो उन्होंने आकाशवाणी और कार्यक्रमों में गाना बंद कर दिया था। उन्होंने अपने जीवन के कई साल अभावों में गुजारे। साल 2002 में , पिथौरागढ़ के नवोदय पर्वतीय कला केन्द्र ने उन्हें छोलिया महोत्सव में बुलाकर सम्मानित किया था। अल्मोड़ा के लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति ने भी उन्हें सम्मानित किया

  1. कबूतरी देवी गीत - दादी-नानी से विरासत में मिले प्रकृति से संबंधित लोकगीत थे
  2. कबूतरी देवी  आकाशवाणी के लिये लगभग 100 से अधिक गीत गाये,
  3. कबूतरी देवी के गीत आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, नजीबाबाद और चर्चगेट, मुंबई के केन्द्रों से प्रसारित हुये।
  4. कबूतरी देवी अपने पति की मृत्यु की बाद इन्होंने आकाशवाणी के लिये और समारोहों के लिये गाना बन्द कर दिया था। 
  5. कबूतरी देवी लेकिन पहाड़ को मन में बसाये कबूतरी जी को पहाड से बाहर जाना गवारा नहीं था।
  6. 13 साल की उम्र में कबूतरी देवी का विवाह पिथौरागढ़ ज़िले के ग्राम क्वीतड़ निवासी दीवानीराम से हुआ. वह दस तक पढे़ थे. नेतागिरी का शौक था,
  7. ज़मीन जायदाद कुछ नहीं था. गाय-भैंस पालते और मज़दूरी करते थे

कबूतरी देवी जी ने जो भी गीत गाये वे दादी-नानी से विरासत में मिले प्रकृति से संबंधित लोकगीत थे। अर्थात पहाड के आम जनमानस में बसे लोकगीतॊं को पहली बार उन्होंने बाहर निकाला। उन्होंने आकाशवाणी के लिये लगभग 100 से अधिक गीत गाये, उनके गीत आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, नजीबाबाद और चर्चगेट, मुंबई के केन्द्रों से प्रसारित हुये। उन दिनों उन्हें इन केन्द्रों तक उनके पति लेकर जाते थे, जिन्हें वे नेताजी कहकर पुकारती हैं और एक गीत की रिकार्डिंग के उन्हें २५ से ५० रुपये मिलते थे। इस बीच इनका एक मात्र पुत्र पहाड़ की नियतिनुसार पलायन कर गया और शहर का ही होकर रह गया। लेकिन पहाड़ को मन में बसाये कबूतरी जी को पहाड से बाहर जाना गवारा नहीं था।

इस कारण उन्होंने अपने २० साल अभावों में गुजारें, वर्ष २००२ में नवोदय पर्वतीय कला केन्द्र, पिथौरागढ़ ने उन्हें छोलिया महोत्सव में बुलाकर सम्मानित किया तथा लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति ने अल्मोड़ा में सम्मानित किया। इसके अलावा इन्हें पहाड संस्था ने सम्मानित किया। अब उत्तराखण्ड का संस्कृति विभाग भी उन्हें 1000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दे रहा है। कबूतरी जी वर्तमान में पिथौरागढ़ में अपनी पुत्री के साथ रह रहीं है।

इस दौरान उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें वापस जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिसके बाद अगले दिन सुबह 10:24 बजे उनका निधन हो गया। 8 जुलाई 2018 को रामेश्वर घाट में सरयू नदी के किनारे उनकी अंत्येष्टि की गई।

साज बजाने हाथों से तोड़े पत्थर

13 साल की उम्र में कबूतरी देवी का विवाह पिथौरागढ़ ज़िले के ग्राम क्वीतड़ निवासी दीवानीराम से हुआ. वह दस तक पढे़ थे. नेतागिरी का शौक था, फक्कड़ किस्म के आदमी थे, ज़मीन जायदाद कुछ नहीं था. गाय-भैंस पालते और मज़दूरी करते थे. कभी भूखे रह कर भी दिन काटते. पति ने कबूतरी देवी की संगीत प्रतिभा को आगे बढ़ाया. वे उनके साथ गीत लिखकर तैयार करते थे. वही कबूतरी देवी को आकाशवाणी की दहलीज़ तक ले गये. कबूतरी देवी की आवाज़ का जादू छाने लगा, प्रसिद्धि भी मिली. वे सच्चे स्वर लगाती थीं. उनकी आवाज़ का जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा.

    कबूतरी देवी का संगीत परवान चढ़ ही रहा था कि पति की मृत्यु हो गई. सारा शीराज़ा बिखर गया. कबूतरी देवी बीमार रहने लगीं. परिवार का बोझ सिर पर था. उन्होंने मेहनत मजदूरी की, खेतों में काम किया , पत्थर तोड़े फिर भी कभी खाना मिलता था कभी नहीं. बीमारी सिर उठा रही थी. दुबली- पतली काया, पित्त में पथरी , साँस की परेशानी, हाथ-पैर में गठिया, पर हिम्मत नहीं हारी और तीन बच्चों की शादी भी की.

    एक गायिका के रुप में पति की मौत के बाद कबूतरी देवी के संगीत का सफ़र ख़त्म हो गया था. आकाशवाणी भी उन्हें कौन ले जाता. एक प्रतिभा गुमनामी के अंधेरों में खो गई. पर मेहनतकश और जुझारु कबूतरी देवी ने हार नहीं मानी और स्थितियों से लड़ती रहीं.

    कई सालों तक गुमनामी में रहने के बाद कबूतरी देवी फिर मंज़रेआम पर आईं. संस्कृति कर्मी हेमराज बिष्ट उन्हें अपनी टीम के साथ कई मेलों में ले गये. फिर कबूतरी देवी ने स्वर लहरियां छेड़ीं और लोगों की वाह वाही लूटी. अखबारों में भी यह ख़बर दूर तक पहुँची. इसी बीच उत्तरा महिला पत्रिका की सम्पादक और मैत्री संगठन की कर्ता-धर्ता डा. उमा भटट् उनसे मिलने उनके गाँव जा पहुँची. उनके गीत रिकार्ड कर के नैनीताल लाईं और हम सभी को उनकी दर्दभरी आवाज़ से रुबरु होने का मौका मिला. फिर उन्हें महिला समाख्या के कार्यक्रम में नैनीताल बुलाया गया. उनकी सुरीली आवाज से सभी भाव विभोर थे. तय किया गया कि युगमंच और उत्तरा की पहल पर नैनीताल की सभी सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्थायें जिसमें पहाड़ व नैनीताल समाचार शामिल थी, एक बड़ा कार्यक्रम करेंगी और कबूतरी देवी को बडे़ स्तर पर रीलांच किया जाएगा और उनकी अर्थिक सहायता के लिए राशि भी एकत्र की जाएगी.

    ‘एक विरासत को सुनें’ नाम से 20 सितम्बर 2004 को एक बड़ा आयोजन हुआ. नैनीताल के शैले हाल में लोग कबूतरी देवी को सुनने के लिए टूट पड़े थे. प्रेक्षागृह में जितने लोग कुर्सियों पर बैठे थे उससे ज्यादा खड़े थे. कई घंटे गायन का यह कार्यक्रम चला. कबूतरी देवी ने भी बेटी हेमंती के साथ दिल खोलकर गाया और श्रोताओं को तर कर दिया. इस कार्यक्रम को लोग आजतक याद करते हैं. इस कार्यक्रम का संचालन गिरीश तिवाड़ी गिरदा ने स्वयं किया था. कार्यक्रम से ठीक-ठाक राशि इक्ट्ठा हो गई. वीरेनदा (प्रख्यात कवि वीरेन डंगवाल) ने भी अमर उजाला बरेली से दस हजार की रक़म भिजवाई थी.

    इस कार्यक्रम से एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि मीडिया ने भी कार्यक्रम को ठीक ठाक कवर किया था. बात दूर तक पहुँची. और फिर क्या था देहरादून, दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, हल्द्वानी, गाज़ियाबाद, चन्डीगढ़ आदि तमाम जगहों से कबूतरी देवी को बुलावे आने लगे. बेटी हेमंती जहाँ सम्भव हुआ और तबियत ने साथ दिया वहाँ वहाँ ले गईं. अगले वर्ष नैनीताल में 6 व 7 अगस्त 2005 को एक बड़ा कार्यक्रम हुआ.

    युगमंच के इस कार्यक्रम ‘हमारी लोक विरासत’ में कबूतरी देवी सहित उत्तराखण्ड के सभी नामचीन लोकगायक और लोककवि इकठ्ठा हुए थे. इस कार्यक्रम में भी कबूतरी देवी ने श्रोताओं को अपनी गायकी के जादू से भाव विभोर कर मुद्दतों याद रहने वाली प्रस्तुति दी थी. कार्यक्रम का संचालन गिरदा और शेखर पाठक ने किया था.

        डा. उमा भटट् के कबूतरी देवी से बिल्कुल घरेलू सम्बन्ध बन गये थे और वह उनका बहुत ख़्याल भी रखती थी. कबूतरी देवी पर अक्सर वे हम सभी साथियों से चर्चा भी करतीं. तभी उन्होंने एक विचार दिया कि कबूतरी देवी हमारे समाज की निधि हैं और इस बड़ी शख़्सियत की जिन्दगी पर एक डाक्यूमेन्टरी फिल्म बननी चाहिए. नैनीताल फिल्म फेस्टीवल की वजह से जनसंस्कृति मंच फिल्म ग्रुप के संजय जोशी सहित कई मित्र हमसे जुड़े थे. उमा दी के इनीशिएटिव पर फिल्म निर्माण की तैयारी शुरु हुई. संजय जोशी, संजय मटटू और अपल सिंह की टीम उमा दी के साथ कबूतरी देवी के गाँव जा पहुँची और कबूतरी देवी की उतार-चढ़ाव भरी ज़िन्दगी को शूट किया गया, एडिटिंग वगैरह के बाद कबूतरी देवी पर एक शानदार फिल्म बनकर तैयार हो गई है. कबूतरी देवी के सानिध्य में उसे भव्य तरीके से लोकार्पित करने पर विचार चल ही रहा था कि अचानक खबर आई कि कबूतरी देवी इस दुनिया ए फ़ानी से कूच कर चुकी हैं. अफसोस वह अपनी फिल्म न देख सकीं.


शासन प्रशासन कितने ही घड़ियाली आंसू बहाए पर संस्कृति कर्मियों के साथ उसने हमेशा मज़ाक ही किया है. कबूतरी देवी के मामले में भी सरकार ने ऐसा ही किया. पिथैरागढ़ में उनकी गम्भीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें हायर सेन्टर के लिए रेफर किया. सरकारी हेलीकाप्टर के लिए गुहार लगाई गई मगर वाह री सरकार! नैनी सैनी हवाई पट्टी तक कबूतरी देवी के आशक्त शरीर को कई चक्कर लगवाए गये मगर हेलीकाप्टर को न उड़ना था न उड़ा, और इसी बीच कबूतरी देवी के प्राण पखेरु उड़ गये. परिवार और संस्कृति कर्मी बहुत क्षुब्ध हैं. कई जगह विरेाध में नारे बाज़ी भी हुई. उनकी बेटी हेमंती हमेशा साय की तरह उनके साथ रहीं. मिथक तोड़ते हुए हेमंती ने उन्हें कन्धा देते हुए विदा किया और रामेश्वर के घाट पर अन्तिम विदा और मुखाग्नि दी. कबूतरी देवी विदा हो गईं पर उनके मीठे स्वर हमेशा आने वाले वक्तों तक फिज़ाओं में गूंजते रहेंगे.

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