शहीद जसंवत सिंह रावत / Shaheed Jaswant Singh Rawat

 महावीर चक्र विजेता शहीद जसंवत सिंह रावत

ख़त्म हो जाने के बाद उसने जसवंत सिंह का सिर तो लौटाया ही, उनकी प्रतिमा बनवाकर भारतीय सैनिकों को भेंट 
की, जो आज भी उनके स्मारक में लगी हुई है।
शहीद जसंवत सिंह रावत

जसवंत सिंह रावत ने जिस स्थान पर मोर्चा संभाला था वहां पर उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है। उस पूरे इलाके को जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाता है। सेना की एक टुकडी वहां 12 महीने तैनात रहती है जो हर पहर उनके खाने, कपने और सोने का प्रबंध करती है। हर साल 17 नवम्बर को वहां पर कार्यक्रम किया जाता है। उनका स्मारक गुवाहाटी से तवांग जाने के रास्ते में 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बना है। यहां चीनी सैनिक भी सिर झुकाते हैं। इस मंदिर के रास्ते से गुजरने वाला कोई जनरल हो या जवान उन्हें श्रद्धांजली दिए बिना आगे नहीं बढ़ता। यही नहीं, उनके शहीद होने के बाद भी उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता है।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, जिस इलाके का मोर्चा उन्होंने संभाला था, उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं। हर दिन उनकी वर्दी प्रेस की जाती है और उनका जूता पोलिश किया जाता है लेकिन हर दिन ऐसा लगता है जैसे कोई जूता पहनकर कहीं गया था। यही नहीं, इस जाबांज को आज भी सेना से छुट्टी दी जाती है। जसवंत सिंह के परिवार वाले जब जरूरत होती है उनकी तरफ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं और छुट्टी मंजूर होने पर उनकी प्रतिमा को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उतराखंड के उनके पुश्तैनी गांव ले जाते हैं। फिर छुट्टी समाप्त होने पर उतने ही सम्मान के साथ उन्हें वापस लाया जाता है। सेना में ऐसी मान्यता है कि, जिन सैनिकों को सीमा पर झपकी लग जाती है उनको जसवंत की आत्मा चांटा मारकर चौकन्ना कर देती है। अरुणाचल प्रदेश में नूरानंग की लड़ाई में मरणोपरांत जसवंत सिंह को महा वीर चक्र मिला था। गढ़वाल राइफल के वीर जांबाजों में से एक जसवंत सिंह की वीरता याद कर आज भी इस रेंजीमेंट के जवानों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

पिछले साल आज के दिन रिलीज हुई शहीद जसवंत सिंह की बायोपिक जेएसआर प्रोडक्शन द्वारा बनाई गई है और इसके स्क्रिप्ट राइटर अविनाश ध्यानी हैं। श्रीनगर निवासी ऋषि भट्ट ने इस फिल्म के संवाद लिखे हैं और फिल्म में अभिनय भी किया है। फिल्म में अस्सी प्रतिशत कलाकार उत्तराखंड से हैं। फिल्म के गीत सुखविंदर, शान, मोहित चौहान व श्रेया घोषाल ने गाए हैं। ऋषि भट्ट ने बताया कि, फिल्म की वास्तविकता को दिखाने के लिए इसकी शूटिंग सात हजार फिट की उंचाई पर की गयी है और इस फिल्म की शूटिंग करीब एक साल तक चली है।

फिल्म की शूटिंग चकराता, गंगोत्री, हर्सिल और हरियाणा के रेवाड़ी में हुई है। वहीं अधिकतर शूटिंग उत्तराखंड में की गई है। अविनाश ध्यानी कहते हैं, “जसवंत सिंह रावत की कहानी को अभी तक बड़े पर्दे पर नहीं दिखाना बॉलीवुड की एक नाकामी है। उन्होंने अकेले के दम पर चीनी सैनिकों को 3 दिन तक रोके रखा था। उनकी सूझबूझ और चपलता के कारण उन्होंने अकेले के दम पर 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। खास बात यह है कि वह 3 दिन तक अकेले ही युद्ध करते रहे।” वहीं फिल्म के निर्माता प्रशील रावत का कहना है कि, यह फिल्म उनके लिए एक फिल्म नहीं बल्कि एक सोच है। वह चाहते हैं 

कि जसवंत सिंह रावत लोगों के घरों तक पहुंचे और उनकी शौर्य गाथा को सभी नमन करें। अविनाश ने बताया कि, तीन साल की रिसर्च के बाद फिल्म की पटकथा लिखी गई। इस दौरान वह महावीर चक्र विजेता शहीद जसंवत सिंह रावत के पौड़ी जिले में स्थित बाडिय़ूं गांव भी गए, जहां उनके रिश्तेदारों से बातचीत कर उनके जीवन से जुड़े कई पहलुओं को जाना। इसके अलवा उन्होंने उनके युद्ध के दौरान के साथी कीर्ति चक्र विजेता गोपाल सिंह गुसाईं से भी मुलाकात की, जिनसे उन्हें काफी जानकारी मिली। अविनाश के अनुसार, कहानी लिखने के दौरान मैंने शहीद की आत्मा को अपने आसपास महसूस किया।
शत-शत नमन करूँ मैं महावीर चक्र विजेता अमर शहीद जसंवत सिंह रावत जी को 

टिप्पणियाँ

upcoming to download post