श्रीखंड महादेव, हिमाचल प्रदेश - Shrikhand Mahadev, Himachal Pradesh

श्रीखंड महादेव, हिमाचल प्रदेश  

नाम: श्रीखंड कैलाश या श्री खंड महादेव शिखर

श्रीखंड महादेव, हिमाचल प्रदेश  

श्रीखंड महादेव यात्रा 

श्रीखंड महादेव, भारत के सबसे कठिन तीर्थस्थलों में से एक, हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान शिव के लिए जाना जाता है। यह हिन्दूओं का तीर्थ स्थान है। इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यह हिमाचल में एक रोमांचकारी और साहसिक ट्रेक भी बनाता है। हिमाचल प्रदेश की भूमि के प्राकृतिक परिदृश्य की मनमोहक सुंदरता और आत्मा - हिमालय पर्वत श्रृंखला की बर्फ से ढकी चोटियों की सुखदायक दृष्टि और ईश्वर में प्रबल आस्था दुनिया भर के हजारों हिंदू तीर्थयात्रियों को इस कठिन यात्रा को बिना किसी हिचकिचाहट के करने के लिए मजबूर करती है। और शिकायत का एक शब्द. यह आपको विशाल हिमालय की भव्य और सुंदर संरचना के बीच लगभग ऊंचाई पर स्थित श्रीकंड महादेव शिखर तक ले जाता है। समुद्र तल से 17000 फीट ऊपर। यह पवित्र स्थल हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है।

आपको ट्रेक/तीर्थयात्रा के बारे में क्या जानना चाहिए

यात्रा का आयोजन जिला प्रशासन कुल्लू द्वारा किया जाता है और श्रीखंड महादेव यात्रा ट्रस्ट निरमंड द्वारा जुलाई के महीने में 10-12 दिनों के लिए प्रबंधित किया जाता है। हालाँकि यह गर्मी का समय है, व्यक्ति को असामयिक बारिश और यहाँ तक कि बर्फबारी का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। चरम तीर्थयात्रा के समय में, भोजन, पानी और स्लीपिंग बैग ढूंढना बहुत आसान है। फिर भी यह सलाह दी जाती है कि आप अपना स्लीपिंग बैग और कुछ अन्य दैनिक जरूरत का सामान अपने साथ ले जाएं, लेकिन साथ ही अपने सामान को बहुत हल्का रखने की कोशिश करें। जरूरत से ज्यादा सामान न पैक करें, लेकिन सुनिश्चित करें कि आप पानी की बोतलें, ग्लूकोज पाउच, गर्म कपड़े, बरसाती कपड़े, फ्लैशलाइट और सूखे मेवे ले जाएं। चिकित्सकीय रूप से अयोग्य लोगों को यात्रा/ट्रेक का प्रयास करने की सलाह नहीं दी जाती है। यह ट्रेक करने के लिए 35 किमी का कठिन ट्रैक है और शारीरिक रूप से बीमार और कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है। यह ट्रेक अल्पाइन घास के मैदानों से होते हुए 72 फीट ऊंची चट्टान के शिखर तक चढ़ता है जिसे शिवलिंग कहा जाता है। यात्रा को पूरा होने में 4-5 दिन लगते हैं और इसका आयोजन जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है। प्रशासन कुल्लू. इसलिए अपनी यात्रा शुरू करने से पहले, पंजीकरण अनिवार्य हो जाता है।
श्रीखंड महादेव

क्या किन्नर कैलाश और श्रीखंड महादेव एक ही हैं?

संक्षेप में, जबकि श्रीखंड महादेव और किन्नर कैलाश दोनों हिमाचल प्रदेश में हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं, वे अलग-अलग जिलों में स्थित हैं और उनकी ऊंचाई अलग-अलग है ।

श्रीखंड महादेव क्यों प्रसिद्ध है?
इतिहास देवों के देव महादेव से जुड़ा हुआ है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के रहने वाले लोग बताते हैं कि भस्मासुर ने तपस्या की, जिसके बाद उसे भगवान शिव से वरदान प्राप्त हुआ। वरदान प्राप्त कर भस्मासुर शिव जी को भी भस्म करना चाहता था। तब शिव जी इस जगह (श्रीखंड महादेव) आकर छिपे थे।

श्रीखंड महादेव की हाइट कितनी है?
श्रीखंड महादेव 18570 फीट ऊंचाई पर स्थित है, यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 32 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा को अमरनाथ यात्रा से भी कठिन माना जाता है।
श्री खंड कैलाश समुद्र तल से 18500 फीट की ऊंचाई

विश्व का अद्भुत स्वयंभू श्रीखंड भस्मासुर शिवलिंग....

  • श्रीखंड केलाश मानसरोवर, आदि केलाश आदि पंचतत्व का प्रतीक है।
  • तीर्थंन वैली मनाली से लगा हुआ ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क के पास से एक रास्ता रामपुर शहर सेवनिरमण्ड,बागीपुर से होकर चाव पहुच कर यहां से श्रीखंड महादेव की यात्र आंरभ करें।यहां खीरगंगा से भी जाया जा सकता है।  
  • 35 km की चढ़ाई 18000 फिट की ऊंचाई पर पहुँचकर इसके बाद करीब 80 फिट ऊँचें भस्मासुर शिवलिंग के दर्शन करे।
  • श्रीखंड महादेव का स्वयम्भू शिवलिंग पांच कैलाशों में से एक गिना जाता है। पहाड़ की आकृति जैसा यह शिवलिंग बहुत ही अद्भुत है। कहा जाता है कि भस्मासुर को यहीं भस्म किया था। यह शिवलिंग उनका प्रतिरूप है।
  • स्मासुर ने अपने ही सिर पर हाथ रख लिया और भस्म हो गया ।
  • यह स्थान आज भी भीम डुआरी में लाल रंग की धरती के रूप में देखा जा सकता है।
  • श्रीखंड महादेव एक 80 फीट ऊँचा खंडित शिवलिंग है। प्रत्येक साल यह यात्रा सावन मास में आधिकारिक तौर पर मात्र 2 हफ़्तों के लिए खुलती है।
  • श्रीखंड महादेव तक पहुंचने के लिए आपको 25 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी होगी। जो कि अपने आपमें सबसे बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि इसे अमरनाथ यात्रा से भी दुर्गम माना जाता है।
  • अति दुर्गम रास्ते पर चलते हुए श्रद्धालु समुन्द्र तल से 5140 मी. (16864 फुट) की ऊंचाई पर स्थित इस खंडित शिवलिंग तक पहुंचते हैं।
  • इस पर्वत के दायीं दिशा में स्थित है ‘किन्नर कैलाश’ और बायीं दिशा से यह ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ से जुड़ा है।
  • रास्‍ते में प्राकृतिक शिव गुफा, निरमंड में सात मंदिर, जावों में माता पार्वती सहित नौ देवियां, परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर अरसु, सिंहगाड़, जोतकाली, ढंकद्वार, बकासुर बध, ढंकद्वार व कुंषा आदि धार्मिक स्‍थल हैं।
  • खण्डधार, फंग्सी धार रखती ग्लेशियर को भी देखें।
  • दुर्लभ शिवालय श्रीखंड भस्मासुर महादेव के दर्शन के साथ ही मणियों, मणिधासरी नागों की भूमि मनाली का भी भ्रमण करें....
  • हम परिवार सहित श्रीखंड महादेव तो नहीं जा सके लेकिन मनाली के नजदीक स्पीति गाँव अच्छी तरह घुमा।
  • हिमाचल का अद्भुत गांव स्फीति पहुंचने का रास्ता कुल्लू जिले के रोहतांग से होकर जाता है। रोहतांग पहुंचने के लिए पहले मनाली आना पड़ता है, जो कुल्लू से लगभग चालीस किलोमीटर दूर है।
  • मणियों की घाटी 'बर्फीला रेगिस्तान', 'हिमाचल का साइबेरिया' और 'मणियों की घाटी' का खिताब भी इसे दिया जाता है।
  • स्पीति घाटी आसमान सी ऊंचाई पर बसे गांव और कहीं दुर्लभ जड़ी-बुटियों की भीनी-भीनी महक सचमुच प्रकृति का एक अजूबा है। ७,४५१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस स्फीति घाटी की पूर्वी सीमा तिब्बत और उत्तरी सीमा लद्दाख से जुड़ी है।
  • बर्फ का दर्प....
  • स्पीति घाटी में बर्फबारी के मायने हैं, दुनिया से बेखबर हो जाना। बारिश तो यहां होती नहीं, सिर्फ बर्फ पड़ती है और बर्फ भी इतनी कि कई-कई फुट मोटी तहें जम जाती हैं।
  • स्पीति में जब बर्फ पड़ती है, तो हिमाचल की यह सीमांत घाटी अपनी ही दुनिया में कैद होकर रह जाती है और गरमियों में जब धूप निकलती है, बर्फ पिघलती है, तो स्पीति घाटी सैलानियों की चहलकदमी का केंद्र बन जाती है।
  • गोंपाओं और मठों की इस घाटी में प्रकृति के विभिन्न रूप परिलक्षित होते दिखते हैं। कहीं सपाट बर्फीला रेगिस्तान, कहीं हिमशिखरों में चमचमाती झीलें। कहीं हिम पर्वतों पर शिवलिंग रूपी दृश्य।
कैसे जाएं स्पीति ....

मनाली से व्यास नदी के किनारे-किनारे चलकर १३०५० की ऊंचाई पर स्थित है, रोहतांग दर्रा।
स्पीति घाटी का समूचा रास्ता प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है और सर्पीली, बलखाती सड़कों से गुजरते हुए ५१ किलोमीटर का सफर कब खतम हो जाता है, पता ही नहीं चलता।
रोहतांग से ७ किलोमीटर नीचे उतरकर कई घुमावदार मोड़ों को तय करते हुए ‘ग्राम्फू’ नामक स्थल आता है। यहां से स्पीति घाटी के लिए दायीं ओर से और लाहौल घाटी के लिए बायीं ओर से रास्ता चला जाता है।

आगे जाकर कुंजम दर्रा आता है, जो लाहौल और स्पीति घाटियों को आपस में जोड़ता है । सरदियों में जब भारी हिमपात से यह दर्रा बंद हो जाता है, तो दोनों घाटियों का संपर्क आपस में कट जाता है।

कुंजम दरें को नापकर सैलानी स्पीति घाटी में दस्तक देते हैं। इसके बाद १२ किलोमीटर का रास्ता काफी दुरुह है, लेकिन फिर ज्यों ही लोसर गांव पहुंचते हैं, शरीर एक दम ताजा हो उठता है।

स्पीति नदी के बायीं ओर स्थित लोसर स्पीति घाटी का पहला गांव है। गांव में करीब ३०-३५ घर हैं और आबादी ढाई सौ आसपास।

स्पीति में पुराने ढर्रे के ज्यादातर घर दो मंजिले हैं और मिट्टी के बने हैं। हर घर की छत पर एक के विशालकाय डंडे में सफेद कपड़े का 'लंबा-चौड़ा झंडा लटका होता है, जिसमें मोटे अक्षरों में संस्कृत के श्लोक अंकित होते हैं।

स्थानीय लोगों की धारणा है कि इससे परिवार में खुशहाली आती है और दुष्ट आत्माओं से छुटकारा मिलता है।

भगवान बुद्ध करते हैं रक्षा....

लोसर गांव में मरुस्थल विकास परियोजना के तहत बैली के वृक्ष उगाये गये हैं, जो ईंधन और चारे दोनों का काम देते हैं।

गांव में पांच सौ वर्ष पुराना एक बौद्ध मठ है, जिसमें भगवान बुद्ध की कई प्रतिमाएं हैं। इस मठ का संचालन लामाओं द्वारा किया जाता है।

उत्सव और उत्साहियों का गांव...

लोसर उत्सव, ग्याल्टो उत्सव, नैप-गैप उत्सव, तीरों का उत्सव, थौन-थौन उत्सव, याग और नागमन उत्सव यहां के प्रमुख उत्सव हैं।
लोसर उत्सव नववर्ष के रूप में मनाया जाता है और तीन दिन तक चलता है।
नागमन उत्सव सितंबर में फसल की बुआई के सत्य मनाया जाता है और इस दौरान घोड़ों की दौड़ का भी आयोजन किया जाता है।
थौन-थौन उत्सव सरदियों के खतम होने पर, फसल से पहले और अप्रैल माह में आयोजित किया जाता है।
स्पीति उपमंडल का मुख्यालय काजा में है और लोसर से काजा की दूरी केवल ५६ किलोमीटर है।
रास्ते में हंसा, क्यारो, मुरंग, हैं। काजा से सात किलोमीटर दूर ग्राम्फू समलिंग, रंगरिक जैसे खूबसूरत गांव आते बातल किब्बर राजमार्ग पर आबाद रंगरिक गांव को सबसे बड़ा गांव होने का गौरव प्राप्त है।
गांव का नाम रंगरिक कैसे पड़ा...., इस बारे में यहां एक रोचक किंवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि यहां पर पहले एक बौद्ध भिक्षुणी रहती थी।
एक रात उसे सपना आया कि उसके गर्भ में उसने बेटे को जन्म दिया, तो गांव वालों ने उस किसी अवतार ने प्रवेश किया है। बाद में जब पर तरह-तरह के लांछन लगाकर उसे जलील किया और उसे गांव से बाहर निकाल दिया।
उस भिक्षुणी ने नवजात बेटे का नाम 'रंगरिक' रखा। गांव से दो किलोमीटर दूर एक गुफा में मां-बेटा रहने लगे। एक दिन दोनों वहां से पत्थर पर बैठकर उड़ गये।
जहां से ये उड़े, वहां आज भी पानी का चश्मा फूट रहा है। अलौकिक घटना की बदौलत गांववासियों ने गांव का नाम ही रंगरिक रख दिया और मां-बेटे की याद में एक मंदिर भी बनवाया। घाटी में आनेवाला सैलानी यहां भी आता है।
समुद्र तल से १२ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित काजा स्पीति नदी के किनारे दोनों ओर से पहाड़ी से घिरी समतल जगह पर बसा है।
कहा जाता है कि प्राचीनकाल में स्पीति का ठाकुर यहां अपनी राजधानी बनाकर रहता था। यहां स्थित 'की' गोंपा बहुत प्राचीन है।
काजा से २० किलोमीटर दूर १४८८५ फुट की ऊंचाई पर स्थित किब्बर सैलानियों का मन मोह लेता है।
लगभग ४५ घरों की आबादी वाला यह गांव चूंकि ऊंचाई पर स्थित है अतः यहां पेड़-पौधे बहुत कम पाये जाते हैं।
इस गांव की ऊंचाई कुंजम दरें से मेल खाती है। कभी इस गांव में जीवन की आधारभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं थों, लेकिन अब यह गांव, सड़क मार्ग द्वारा, देश के अन्य भागों से सीधे जुड़ गया है। बौद्ध मठ भी है, जहां भगवान बुद्ध की कई प्राचीन प्रतिमाएं और बौद्ध इतिहास की कई दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध हैं।
मठ में दिन-रात लामा लोग जप करते रहते हैं। किब्बर के लोग अलमस्त तबीयत के हैं। सरदियों में जब किब्बर का संपर्क शेष संसार से कट जाता है,
तब यहां के निवासी नाच-गाकर ही माहौल को  जीवंत रखते हैं।
ऐतिहासिक मेला 'लादरचा' स्पीति घाटी अपने सुरीले लोकगीतों और मोहक लोकनृत्यों के लिए भी मशहूर है।
यहां के लोकगीतों और लोकनृत्यों का लुत्फ यहां के प्रसिद्ध 'लादरचा' मेले में आकर उठाया जा सकता है।
'लादरचा' स्पीति घाटी में १६ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित ५-६ किलोमीटर लंबा-चौड़ा मैदान है। इस मैदान में हर साल ७ जुलाई के पहले सप्ताह में स्पीति घाटी का प्राचीनतम ऐतिहासिक, व्यापारिक मेला 'लादरचा' नाम से मनाया जाता है।  यह मेला भारत-चीन संबंधों का प्रतीक भी रहा है।
सन् १९६२ में चीन के आक्रमण के बाद यह बंद हो गया था।
जुलाई, १९७१ में १९ साल बाद शासकीय प्रयत्नों से इस मेले की शुरुआत हुई। इस मेले के दौरान आज भी चमूर्ति नस्ल के घोड़ों, लद्दाखी ऊन, काले चने, पश्मीना शाल, नमक तथा याक की खरीद-फरोख्त होती है। चमूर्ति नस्ल के घोड़ों का तो दमखम और चुस्ती-फुरती में कोई मुकाबला नहीं है और मुंहमांगी कीमत पर इन्हें खरीदने के लिए अश्वप्रेमी लालायित रहते हैं।
इन घोड़ों का रंग 'आयरन ग्रे' होता है और ऊंचाई १.२ मीटर से १.४ मीटर के आसपास होती है।
इन घोड़ों का मूल स्थल पश्चिम तिब्बत माना जाता है।

श्री खंड कैलाश भारत के हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में समुद्र तल से 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
सबसे अच्छे दो मार्ग हैं
शिमला - नारकंडा - रामपुर बुशहर - अरसु - बागीपुल।
और कुल्लू की ओर से: बठाड़ - बशलू दर्रा - कुल्लू सराहन।

स्थान:

श्री खंड कैलाश भारत के हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में समुद्र तल से 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
सबसे अच्छे दो मार्ग हैं
शिमला - नारकंडा - रामपुर बुशहर - अरसु - बागीपुल।
और कुल्लू की ओर से: बठाड़ - बशलू दर्रा - कुल्लू सराहन।

श्रीखंड कैलाश यात्रा: श्रीखंड कैलाश की ओर आगे बढ़ने के विचार का तथ्य ही भीतर से एक पुकार है। यह स्वयंभू लिंग है - स्वयं निर्मित। इस बिंदु को आध्यात्मिक पुनर्जागरण का बिंदु माना जाता है। संपूर्ण क्षेत्र आध्यात्मिक तरंगों से गूंज उठता है। आम धारणा यह है कि जो लोग नियुक्त हैं वे ही वहां पहुंच सकते हैं। जाँव इस ट्रेक का प्रारंभिक बिंदु है, जहाँ देवी शक्ति का मंदिर स्थित है। यह 70 किलोमीटर का दोतरफा ट्रैक है जो घने जंगलों, जलधाराओं, विशाल घास के मैदानों और ऊंचे पहाड़ों से होकर गुजरता है। चढ़ाई कठिन है और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। 2 कि.मी. जाओं से सिंह गढ़ नामक गांव है, जिसका नाम एक बहादुर आदमी के नाम पर रखा गया था जिसने वहां रहने का साहस किया और एक गांव की स्थापना की। सिंह गढ़ इस मार्ग पर सभ्यता का अंतिम निवास स्थान है और श्री खंड कैलाश इस स्थान से पूरे तीन दिनों की पैदल दूरी पर है। तस्वीरों के साथ विस्तृत यात्रा पवन ठाकुर द्वारा पोस्ट किए गए यात्रा वृतांत में मिलती है









विवरण:

ऐसा माना जाता है कि कुल सात कैलाश पर्वत हैं। तिब्बत में प्रसिद्ध मानसरोवर कैलाश , उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आदि कैलाश , जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ कैलाश , हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में किन्नर कैलाश , हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में मणिमहेश कैलाश , हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में श्री खंड कैलाश। माना जाता है कि सातवां बूरहा कैलाश है और अभी तक इसका पता नहीं चल पाया है।

हिमाचल प्रदेश में श्रीखंड पर्वत या श्रीखंड महादेव शिखर शिवलिंग जैसा दिखता है। मुख्य तीर्थयात्रा सीजन (जुलाई-अगस्त) के दौरान कई भगवान शिव भक्त पहाड़ की कठिन यात्रा करते हैं। पर्वत के ऊपर भगवान शिव का एक छोटा सा मंदिर है। यह तीर्थयात्रा निश्चित रूप से कमजोर लोगों के लिए नहीं है क्योंकि कभी-कभी एक ट्रैकर को एक विशेषज्ञ पर्वतारोही के सभी कौशल की आवश्यकता होती है।

यह आमतौर पर हिंदू विक्रम कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा (जून या जुलाई में पूर्णिमा का दिन) के साथ मनाया जाता है। यह अश्वनी माह की पूर्णिमा (सितंबर या अक्टूबर की पूर्णिमा) तक जारी रहता है।

श्रीखंड महादेव शिखर 5,155 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और माना जाता है कि भगवान शिव ने यहां मध्यस्थता की थी। यह भी माना जाता है कि पांडव इस चोटी पर आया करते थे।

यात्रा का प्रारंभिक चरण सुंदर फूलों और विशाल पेड़ों से भरे धुंध से भरे जंगलों से होकर गुजरता है। फिर यात्रा कठिन हिमालयी इलाके में प्रवेश करती है। श्रीखंड की भव्य चोटी तक पहुँचने से पहले कुछ ग्लेशियरों को भी पार करना पड़ता है, जहाँ तीर्थयात्री पूजा करते हैं। 5425 मीटर से दृश्य बहुत ही शानदार है - सचमुच ऐसा लगता है कि आप दुनिया के शीर्ष पर हैं। आसपास की बर्फ से ढकी चोटियाँ और पहाड़ इसकी भव्यता को बढ़ाते हैं। बड़ी संख्या में भगवान शिव के भक्त भी छड़ी यात्रा - पवित्र गदा ले जाने वाली यात्रा - के साथ मंदिर तक जाते हैं। कोई भी व्यक्ति अधिक समय तक शीर्ष पर नहीं रह सकता क्योंकि वहां हवाएं बहुत तेज़ और हाड़ कंपा देने वाली होती हैं। यहां के शिवलिंग के बारे में एक चमत्कार मशहूर है। यहां साल भर बर्फ गिरती है, लेकिन वह शिवलिंग पर नहीं टिकती और उसके तुरंत बाद पिघल जाती है। हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार जुलाई और अगस्त के महीने में तीर्थ यात्रा का आयोजन करती है। यात्रा में लगभग तीन से सात दिन लगते हैं और यह भक्त की सहनशक्ति और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यह यात्रा तब करना उचित है जब श्रीखंड प्रबंधन समिति जुलाई में विभिन्न स्थानों पर शिविर लगाती है जहां वे रात्रि आश्रय के अलावा भोजन, चाय और पानी प्रदान करते हैं। स्थानीय लोग तंबू भी लगाते हैं और भुगतान के आधार पर भोजन और रात रुकने की सुविधा भी देते हैं।

हिमाचल प्रदेश में महत्वपूर्ण 8 देवी दर्शन मंदिर ] [हिमाचल प्रदेश के बारे में कुछ रोचक तथ्य ] [ श्री नैना देवी जी मंदिर के दर्शन की जानकारी और पर्यटन स्थल ] [ हिडिम्बा देवी मंदिर का इतिहास, कहानी और रोचक तथ्य ] [ भाखड़ा नांगल बांध की जानकारी और प्रमुख पर्यटन स्थल ] [ मनाली के वशिष्ठ मंदिर के दर्शन और पर्यटन स्थल की जानकारी ] [भागसूनाग मंदिर मैक्लोडगंज हिमाचल प्रदेश ] [ काली बाड़ी मंदिर, शिमला ] [नाम: चामुंडा देवी मंदिर (चामुंडा नंदिकेश्वर धाम) ] [ एक प्रसिद्ध मंदिर जो मां चामुंडा (दुर्गा) को समर्पित है ] [ श्रीखंड महादेव, हिमाचल प्रदेश ] [ श्री भीमा काली जी मंदिर ]

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