दरबान सिंह नेगी (Darban Singh Negi)
दरबान सिंह नेगी (अंग्रेज़ी: Darwan Singh Negi, जन्म- 4 मार्च, 1883; मृत्यु- 24 जून, 1950) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन चंद भारतीय सैनिकों में से एक थे, जिन्हें ब्रिटिश राज का सबसे बड़ा युद्ध पुरस्कार "विक्टोरिया क्रॉस" मिला था। दरबान सिंह नेगी करीब 33 साल के थे और 39th गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन में नायक के पद पर तैनात थे। 23-24 नवंबर, 1914 को उनकी रेजिमेंट ने दुश्मन से फेस्टुबर्ट के करीब ब्रिटिश खदंकों पर फिर से क़ब्ज़ा करने की कोशिश की। इस युद्ध के दौरान उनकी भूमिका के लिए उनको 'विक्टोरिया क्रॉस' से सम्मानित किया गया।
दरबान सिंह नेगी परिचय
दरबान सिंह नेगी |
दरबान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च, 1883 को गढ़वाल के करबारतीर गांव में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध को समाप्त हुए कई वर्ष हो गए हैं। इस युद्ध में दुनिया भर की फौजें शामिल थीं, लेकिन इनमें भारतीय सैनिकों के साहस और वीरता ने पूरी दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी। यही वजह थी कि जब फ्रांस में ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों के बीच दीवार बनी जर्मन सेना को कोई हिला नहीं पा रहा था, तब गढ़वाल के नायक दरबान सिंह नेगी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश-भारतीय सेना ने रातों-रात इस दीवार को ढहा दिया। इस अप्रतिम विजय के लिए ब्रिटेन के किंग जॉर्ज ने स्वयं रणभूमि में जाकर दरबान सिंह नेगी को 'विक्टोरिया क्रॉस' दिया था। वह इस वीरता पुरस्कार को पाने वाले पहले भारतीय थे।
दरबान सिंह नेगी अपूर्व साहस
अगस्त 1914 में भारत से 1/39 गढ़वाल और 2/49 गढ़वाल राइफल्स की दो बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने भेजा गया। अक्टूबर 1914 में दोनो बटालियन फ्रांस पहुंची। वहां भीषण ठंड में दोनों बटालियन को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। इस इलाके में जर्मन सेनाओं के कब्जे के चलते ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व वाली दो सैन्य टुकड़ियां आपस में नहीं मिल पा रही थीं।
दरबान सिंह नेगी |
दरबान सिंह नेगीविक्टोरिया क्रॉस
नायक दरबान सिंह नेगी के नेतृत्व में 1/39 गढ़वाल राइफल्स ने 23 और 24 नवंबर 1914 की मध्य रात्रि हमला कर जर्मनी से सुबह होने तक पूरा इलाका मुक्त करा लिया। इस युद्ध में दरबान सिंह नेगी के अदम्य साहस से प्रभावित होकर किंग जार्ज पंचम ने 7 दिसंबर 1914 को जारी हुए गजट से दो दिन पहले 5 दिसंबर 1914 को ही युद्ध के मैदान में पहुंचकर नायक दरबान सिंह नेगी को 'विक्टोरिया क्रॉस' प्रदान किया था। नायक दरबान सिंह नेगी की वीरता के चलते गढ़वाल राइफल्स को बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस का खिताब दिया गया। इसकी याद में उत्तराखंड के लैंसडाउन में स्थापित मुख्यालय में एक संग्रहालय बनाया गया है। इसके बाद नायक दरबान सिंह 1915 में आफिसर बनाए गए। उनको जमादार पद मिला। साथ ही उनके कमीशंड होने का प्रमाणपत्र भी जारी किया गया। 1924 में उन्होंने समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।
दरबान सिंह नेगी मृत्यु
दरबान सिंह नेगी की मृत्यु 24 जून, 1950 को 70 वर्ष की आयु में हुई। उनके तीन बेटे थे। उनके बड़े बेटे पृथ्वी सिंह नेगी उत्तराखंड में एडीएम पद पर थे। उनका देहांत हो चुका है। जबकि, दूसरे बेटे डॉ. दलबीर सिंह नेगी अमेरिका के स्टेनफर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में हैं। जबकि छोटे बेटे कर्नल बीएस नेगी हैं। कर्नल नेगी को गढ़वाल राइफल्स में 1964 में कमीशन मिला था, जिसमें दरबान सिंह नेगी थे। वर्तमान में दरबान सिंह नेगी के पौत्र कर्नल नितिन नेगी को भी 1994 में गढ़वाल रेजीमेंट में कमीशंड किया गया।
दरबान सिंह नेगीअपने लिए कुछ नहीं मांगा
'विक्टोरिया क्रॉस' सम्मान मिलने के बाद जब अंग्रेजी प्रशासन ने दरबान सिंह नेगी से कुछ मांगने को कहा, तो उन्होंने गढ़वाल मंडल के कर्णप्रयाग में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछवाने की इच्छा जताई। उस वक्त गढ़वाल राइफल्स की दोनों बटालियन की 87 फीसद आबादी इन इलाकों से आती थी। इसके बाद 1918 में अंग्रेजों ने कर्णप्रयाग मिडल स्कूल की स्थापना की। उत्तराखंड सरकार ने अब इसे इंटर तक कर दिया है। इसका नाम वीरचक्र दरबान सिंह राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज रखा गया। वहीं, 1918 से 1924 तक रेलवे लाइन बिछाने का सर्वे भी अंग्रेजों द्वारा किया गया। हालांकि तब जमीन की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका।
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- 1970 के दशक में गढ़वाल राइफल्स भर्ती( Garhwal Rifles Recruitment in the 1970s)
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