शिमला का इतिहास (History of Shimla (Himachal Pradesh)
शिमला का इतिहास (History of Shimla (Himachal Pradesh) |
- जिले के रूप में गठन 1972 ई.
- जिला मुख्यालय शिमला
- जनसंख्या (2011 में) 8,13,384 (11.86%)
- जनसंख्या घनत्व (2011 में) 159
- कुल क्षेत्रफल 5,131 वर्ग कि.मी. (9.22%)
- साक्षरता दर (2011 में) 84.55%
- लिंग अनुपात (2011 में) 916
- शिशु लिंगानुपात (2011 में) 922
- कुल गाँव......... 2914 (आबाद गाँव - 2520)
- ग्राम पंचायतें 412
- विकास खंड 12
- उपखण्ड 11
- विधानसभा सीटें 8
- लोकसभा क्षेत्र शिमला
- ग्रामीण जनसंख्या (2011 में) 6,11,884 (75.23%)
- भाषा....... पहाड़ी, हिंदी और अंग्रेजी
- तहसील 17
- उप-तहसील 17
- नगर पालिकाएं 1 (नगर निगमः - शिमला)
शिमला का इतिहास और नामकरण History of Shimla District and its Name
शिमला पहले एक छोटा शहर था, जहाँ से वर्तमान शिमला को इसका नाम मिला। हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले का नाम हिंदू देवी देवताओं से जुड़ा हुआ है। शिमला में एक मंदिर का निर्माण हुआ था जिसका नाम श्यामला देवी था और इसी माता के नाम पर शिमला का नामकरण माना जाता है। ये मंदिर 1816 में बना था।
शिमला के खोज का श्रेय लेफ्टिनेंट रोज को जाता है उन्होंने 1819 में लगभग 28 रियासतों को इक्कठा करके शिमला नामक शहर की खोज की थी। लेफ्टिनेंट रोज ने सबसे पहले यहां लकड़ी के घर का निर्माण किया था।
शिमला में पक्के घर का निर्माण 1822 ई. में हुआ था। शिमला में 'पक्के घर' का निर्माण चार्ल्स पेटी कैनेडी ने करवाया था। ये घर अभी भी शिमला में मौजूद है जो केनेडी हॉउस के नाम से जाना जाता है।
शिमला गोरखाओं का इतिहास History of Shimla and Gorkha's
शिमला को अपने कब्जे में लेन के लिए ब्रिटिश और गोरखाओं के बीच युद्ध हुआ था। 1704 की काँगड़ा की लड़ाई भी शिमला के इतिहास से परे नहीं है। ये लड़ाई सिखों और गोरखाओं के बीच हुई। ये लड़ाई शिमला से लगभग 65 मील की दूरी पर हुई थी। जिसे काँगड़ा का किला कहा जाता था। गोरखाओं ने बहुत अत्याचार किये और हजारों लोगों की जान ली उन्होंने शिमला के आसपास की जितनी भी पहाड़ी रियासतें थी पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया।
गोरखाओं ने शिमला के आसपास अपने कई किले बनाने शुरू कर दिए। शिमला का जगतगढ़ का किला इनमें से एक है। ये किला जतोग नामक जगह पर बनाया गया था। हम आपको बता दें भारतीय सेना की छावनी आज भी वहाँ मौजूद है।
1808 की बात है जब गोरखाओं ने अपने हमलों में विस्तार किया और यमुना नदी और सतलुज नदी के बीच जितने भी किले थे उन पर सभी पर अपना कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा करके अर्की को अपनी राजधानी बनाया। अर्की आज सोलन जिले की तहसील है। गोरखाओं ने अर्की को राजधानी बना कर वहां पर क्क्रुर शासन शुरू कर दिया।
आखिरकार वहां के लोगों ने और पहाड़ी राज्यों ने गोरखाओं के अत्याचार से बचने के लिए ब्रिटिश शासन की ओर रूख किया और ब्रिटिश सेना ने गोरखाओं के अत्याचार को देखते मेजर जनरल सर डेविड ऑक्टरलोनी के नेतृत्व में एक छोटी ब्रिटिश सेना वहां भेजी। पहाड़ी राजाओं ने इसमें ब्रिटिश का साथ दिया। रामगढ की लड़ाई गोरखों और ब्रिटिश में खतरनाक लड़ाई थी जो नालागढ़ में लड़ी गई थी। नालागढ़ आज सोलन जिले की तहसील है।
आखिरकार ब्रिटिश सेना और गोरखाओं के बीच निर्णायक लड़ाई 15 मई, 1815 को माला की लड़ाई को माना जाता है। इसमें ब्रिटिश सेना ने तोपों का इस्तेमाल किया और गोरखों पर जबरदस्त हमला किया। लड़ाई ने गोरखों के सभी किलों का अंत कर दिया और शिमला के अधिकांश भागों को अपने शासन में मिला लिया।
संजोली की संधि
1815 की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने आखिरकार गोरखाओं को संधि के लिए मजबूर कर दिया ये संधि 28 नवम्बर 1815 को हुई।
शिमला जिला कब बना? When was Shimla district formed?
- 1 सितंबर 1972 को शिमला हिमाचल प्रदेश का जिला बना। 1972 में हिमाचल प्रदेश के अपने ही जिले थे उनका पुनर्गठन हुआ। इसमें शिमला में स्थित महासू जिले ने अपना अस्तित्व खो दिया और इस हिस्से का विलय शिमला जिला में कर दिया गया। एक जरूरी बात है की शिमला जिले को जब भारतीय संघ में मिलाया गया था। तब वहाँ का शासक दिग्विजय सिंह थे। शिमला का वर्तमान अस्तित्व 1 सितंबर 1972 से ही माना जाता है।
- शिमला जिले का मुख्यालय शिमला ही है। इस वक्त शिमला जिले के 11 उपखंड, 17- तहसील, 17 उप-तहसील और 12 ब्लॉक है।
शिमला जिला का संक्षिप्त भूगोल - Brief Geography of District Shimla
- भौगोलिक स्थिति - शिमला जिला हिमाचल प्रदेश के दक्षिण पूर्व में स्थित है। यह 30° 45' से 31° 44' उतरी अक्षांश तथा 77° 0' से 78° 19' पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। शिमला के पूर्व में किन्नौर और उतराखंड, दक्षिण में सिरमौर, दक्षिण पूर्व में उतराखंड, उतर में कुल्लू और मंडी, पश्चिम में सोलन जिला स्थित है।
- पर्वत श्रृंखला एवं चोटियाँ शिमला शहर जाखू पहाड़ी, प्रोस्पेक्ट पहाड़ी, ओब्जरवेटरी पहाड़ी, समर पहाड़ी और एल्सिज्म पहाड़ी स्थित है, जिसमें जाखू सबसे ऊँची पहाड़ी है। शिमला शहर की जाखू चोटी. चायल की सियाह चोटी, चौपाल तहसील की चुडधार, रोहणू तहसील की चांसल चोटी, सुन्नी तहसील की शाली चोटी और कुमारसेन तहसील की हाटु चोटी शिमला जिले की प्रसिद्ध चोटियाँ है।
- नदियाँ - शिमला जिले में सतलुज, गिरी और पब्बर प्रमुख नदियाँ है।
- सतलुज - सतलुज नदी भडाल से शिमला जिले में प्रवेश कर कुल्लू और मंडी जिले के करसोग के साथ सीमा बनाती है। सतलुज नदी की शिमला जिले में सहायक नदियाँ है - नोगली, मान्छ्दम, बैहरा, खेखर, छामदा और सावेरा।
- गिरी नदी - गिरी नदी कपूर चोटी जुब्बल से निकलती है। गिरी नदी की शिमला जिले में असनि प्रमुख सहायक नदी है।
- पब्बर नदी - पब्बर नदी चंद्रनाहन झील से निकलती है। पब्बर नदी उतराखंड में त्यूनी के पास टौंस नदी में मिलती है। पब्बर नदी की शिमला जिले में प्रमुख सहायक नदियाँ है।
- आंध्रा, पेजोर, हाटकोटी और शिकारी।
- झीलें - चन्द्रनाहन, तानुजुब्बल और गढ़कुफर।
- झरने/चश्मे - ज्योरी, चैडविक ।
शिमला जिला का इतिहास - History of Shimla District in Hindi
- शिमला जिले का इतिहास शिमला पहाड़ी रियासतों में बुशहर सबसे बड़ी और रतेश (2 वर्ग मील) सबसे छोटी रियासत है। शिमला जिले की पहाड़ी रियासतों का विवरण निम्नलिखित हैः -
- बलसन - बलसन रियासत की स्थापना सिरमौर रियासत के राठौर वंशज "अलक सिंह" ने 12वीं शताब्दी में की थी। यह रियासत 1805 ई. से पूर्व सिरमौर रियासत की जागीर थी। गोरखा आक्रमण के समय (1805 ई. में) यह रियासत कुमार सेन की जागीर थी और इस पर जोग राज सिंह का राज था। जोगराज सिंह ने गोरखा युद्ध में ब्रिटिश सरकार की सहायता की और नागन दुर्ग डेविड आक्टरलोनी को सौंप दिया था। बलसन के शासक ठाकुर जोगराज सिंह को स्वतंत्र सनद 1815 ई. में प्रदान की गई।
- बलसन रियासत ने 1857 ई. के विद्रोह में ब्रिटिश सरकार का साथ दिया और बहुत से यूरोपीय नागरिकों को अपने यहां शरण दी। बलसन के शासक जोगराज को ब्रिटिश सरकार ने 1858 ई. में "खिल्लत" और "राणा" का खिताब दिया। बलसन रियासत का वरीयता में शिमला पहाड़ी रियासतों में 11वाँ स्थान था। बलसन रियासत के अंतिम राणा रण भादुर सिंह थे। "हिस्ट्री ऑफ बल्सन स्टेट" उन्हीं की लिखी पुस्तक है। वर्तमान में बलसन 'ठियोग' तहसील का हिस्सा है।
- भज्जी - भज्जी रियासत की स्थापना कुटलेहर रियासत के वंशज "चारू" ने की थी जिसने बाद में अपना नाम बदलकर जयपाल रख लिया था। चारू की 29 वीं पीढ़ी के सोहनपाल ने सुन्नी शहर की स्थापना कर भज्जी रियासत की राजधानी भज्जी से सुन्नी स्थानांतरित की। भज्जी रियासत पर 1803 से 1815 ई. तक गोरखों का कब्जा रहा। गोरखों को 1815 में निकालने के बाद ब्रिटिश सरकार ने राणा रूद्रपाल को स्वतंत्र सनद प्रदान की। राणा रूद्रपाल 1842 ई. में राजगद्दी त्याग कर हरिद्वार आश्रम में रहने लगे। भज्जी रियासत के अन्तिम शासक राणा रामचन्द्र पाल थे। भज्जी को 1948 में तहसील बनाकर (महासू) हि.प्र. में विलय किया गया। वर्तमान में भज्जी सत्री तहसील का भाग है।
- कोटी - कोटी रियासत की स्थापना कुटलेहर रियासत के वंशज चारू के भाई 'चंद्र' ने की थी। कोटी रियासत की राजधानी कोटी थी, जिसे बाद में ताराचंद ठाकुर ने क्यार कोटी में स्थानांतरित किया। कोटी रियासत पर 1809 ई. में गोरखों ने कब्जा कर लिया। 1815 ई. में कोटी रियासत पुनः क्योंथल रियासत की जागीर बन गई। हरिचंद ने 1857 ई. में अंग्रेजों की मदद की जिसके बदले उन्हें 'राणा' का खिताब दिया गया। कोटी रियासत कुसुम्पटी तहसील का भाग बनकर 1948 ई. में (महासू जिला) हि. प्र. में मिल गई।
- दारकोटी - दारकोटी रियासत की स्थापना मारवाड़ (जयपुर) से आए दुर्गा चंद ने की थी। दारकोटी रियासत वर्तमान में कोटखाई तहसील में पड़ती है। दार कोटी 1948 ई. में महासू जिले में मिला दी गई।
- थरोच - थरोच रियासत की स्थापना उदयपुर के सिसोदिया वंश के राजकुमार किशन सिंह ने की थी जिन्हें थरोच जागीर उपहार स्वरूप सिरमौर रियासत से प्राप्त हुई थी। ठाकुर कर्म सिंह 1815 ई. में गोरखा आक्रमण के समय थरोच के शासक थे। ब्रिटिश सरकार ने 1843 ई. में थरोच से अपना नियंत्रण हटाकर रणजीत सिंह को गद्दी पर बैठाया। थरोच रियासत के अंतिम शासक ठाकुर सूरत सिंह को "राणा” की स्थायी उपाधि मिली। थरोच रियासत को 15 अप्रैल, 1948 ई. को चौपाल में मिलाकर (महासू जिला) हि.प्र. का भाग बनाया गया।
- टाटी - ढाढी रियासत थरोच की प्रशाखा थी जिस पर बाद में बुशहर का कब्जा हो गया। गोरखा आक्रमण के समय ढाटी रॉबिन गढ़ में मिला दी गई। वर्ष 1896 ई. में राबिनगढ़ और ढाढी को जुब्बल रियासत की जागीरें बना दिया गया। वर्ष 1948 में ढाढी जुब्बल तहसील (महासू जिला) का भाग बनकर हि. प्र. में मिली।
- कुमारसेन - कुमार सेन रियासत की स्थापना गया (बिहार) से आए किरात चंद (सिंह) ने की थी। अजमेर सिंह ने कुल्लू के राजा मान सिंह को हराकर 'सारी' और 'शांगरी' किले पर कब्जा किया था। गोरखा आक्रमण के समय कुमारसेन बुशहर रियासत की जागीर थी। कुमारसेन के राणा केहर सिंह ने गोरखा आक्रमण के समय कुल्लू रियासत में शरण ली थी। राणा प्रीतम चंद ने श्रीगढ़ दुर्ग की घेराबंदी में ब्रिटिश सरकार की मदद की थी। राणा विद्याधर सिंह कुमारसेन के अन्तिम शासक थे। कुमारसेन 15 अप्रैल 1948 को महासू जिले का भाग बना।
- खनेटी - खनेटी रियासत की स्थापना कुमारसेन रियासत के संस्थापक किरात चंद के पुत्र सबीर चंद ने की थी। गोरखों के बाद (1815 ई.) खनेटी बुशहर रियासत की जागीर बन गई जो 1890 ई. में लालचंद ठाकुर के शासन में स्वतंत्र हो गई।
- देलथ - देलथ रियासत की स्थापना किरात चंद के भाई पृथ्वी सिंह ने की थी। यह भी 1815 ई. में बुशहर रियासत की जागीर थी। देलथ को 15 अप्रैल, 1948 ई. में बुशहर रियासत में मिलाकर महासू जिले का हिस्सा बनाया गया। वर्तमान में यह रामपुर बुशहर तहसील का भाग था।
- धामी - धामी रियासत की स्थापना पृथ्वीराज चौहान के वंशज गोविंद पाल ने की थी जो राजपुरा (पटियाला) से धापी जाया था। धामी रियासत के राजा राज सिंह ने 'पाल' के स्थान पर सिंह 'प्रत्यय' लगाना शुरू किया। गोरखा आक्रमण (1805 ई.) से पूर्व धामी बिलासपुर (कहलूर) रियासत की जागीर थी। धामी पर 1805 से 1815 तक गोरखों का कब्जा रहा।
- अंग्रेज-गोरखा युद्ध (1815) में धामी के राणा गोवर्धन ने अंग्रेजों का साथ दिया जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें स्वतंत्र सनद प्रदान की। राणा गोवर्धन सिंह ने 1857 ई. के विद्रोह में भी अंग्रेजों की सहायता की थी। धामी रियासत की राजधानी 'हलोग' थी। धामी को 15 अप्रैल, 1948 ई. में कुसुम पट्टी तहसील का. भागं बनाकर महासू जिले में मिलाया गया।
- जुब्बल - जुब्बल रियासत की स्थापना उग्र चंद के पुत्र और शुभश प्रकाश के भाई करमचंद ने 1195 ई. में की थी। रियासत शुरू में सिरमौर रियासत की जागीर थी जो कि गोरखा-ब्रिटिश युद्ध के बाद स्वतंत्र हो गई। कर्मचंद ने जुब्बल रियासत के राजधानी सुनपुर में स्थापित की जिसे बाद में उन्होंने पुराना जुब्बल में स्थानांतरित किया। जुब्बल रियासत की राजधानी पुराना जुज्यल से देवरा (वर्तमान जुब्बल) राणा गौर चन्द ने स्थानांतरित की। गोरखा आक्रमण के समय पूर्ण चंद जुब्बल रियासत के शासक थे। जुब्बल रियासत 1815 ई. को स्वतंत्र रियासत बनी। राणा पूर्णचंद को ब्रिटिश सरकार ने 'राणा' की उपाधि प्रदान कर (1815 ई. में) स्वतंत्र सनद प्रदान की। जुब्बल रियासत में 1841 ई. में थरोच, 1896 ई. में रावीं और ढाटी को मिलाया गया। पूर्णचंद के बाद राणा कर्मचंद शासक बने जो कला प्रेमी होने के साथ-साथ कठोर और क्रूर शासक थे। जुब्बल रियासत के शासक भक्तचंद को 1918 ई. में "राजा" का खिताब प्रदान किया गया था। जुब्बल रियासत के अंतिम शासक दिग्विजय चन्द थे। जुब्बल 15 अप्रैल, 1948 ई. में महासू जिले जुब्बल में मिलाया गया।
- रावीनगढ़ (रावी) - रावीनगढ़ रियासत की स्थापना सिरमौरी राजा उग्र चंद के तीसरे पुत्र दुनीचंद ने की थी। सिरमौर के राजा वीर प्रकाश ने रावीगढ़ दुर्ग की स्थापना की। रावींनगढ़ रियासत के अंतिम शासक टिक्का फतेह सिंह थे। रावीनगढ़ वर्तमान में जुब्बल तहसील का भाग है।
- रतेश - रतेश रियासत की स्थापना कर्म प्रकाश (सिरमौर) के भाई राय सिंह ने की थी। राजा सोमर प्रकाश ने रतेश को रियासत की राजधानी बनाया। रतेश सबसे छोटी पहाड़ी रियासत (2 वर्ग मील) थी। रतेश सिरमौर और क्योंथल की जागीर थी। गोरखा आक्रमण के समय किशन सिंह (7 वर्ष आयु) ने सिरमौर में भागकर अपनी जान बचाई। ठाकुर शमशेर सिंह रतेश के आखिरी शासक थे।
- शांगरी - शांगरी रियासत पहले बुशहर के अधीन थी जिस पर कुल्लू के राजा मान सिंह ने कब्जा कर लिया। गोरखा-ब्रिटिश युद्ध (1815 ई.) के बाद विक्रम सिंह शांगरी के शासक बने। शांगरी रियासत 1815 ई. में कुल्लू रियासत को सौंपी गई। हीरा सिंह को 1887 ई. में 'राय' की उपाधि प्रदान की गई। राय रघुवीर सिंह शांगरी रियासत के अंतिम शासक थे
- क्योंथल - क्योंथल रियासत की स्थापना सुकेत रियासत के संस्थापक बीरसेन के छोटे भाई गिरी सेन ने 1211 ई. में की थी। 1379 ई. में क्योंथल रियासत फिरोजशाह तुगलक के अधीन आ गई थी। 1800 ई. से पूर्व क्योंथल रियासत के अधीन 18 ठकुराइयाँ थी। कोटी, घुण्ड, ठियोग, मधान, महलोग, कुठार, कुनिहार, धामी, थरोच, शांगरी, कुमारसेन, रजाणा, खनेटी, मैली, खालसी, वधारी, दीघवाली और घाट। गोरखा आक्रमण के समय (1809 ई.) राणा रघुनाथ सेन सुकेत भाग गये थे।
- क्योंथल की 18 ठकुराइयाँ 1814 ई. में अलग रियासत के अधीन था जिसे 1830 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रावी ठकुराई के बदले प्राप्त किया। क्योंथल रियासत की राजधानी जुना हुई। वर्ष 1815 ई. में घूण्ड, मथान, रतेश, ठियोग और कोटी ठकुराइयाँ क्योंथल रियासत के अधीन आईं। वर्तमान शिमला शहर क्योंथलप्रदान किया गया। क्योंथल के राजा ने कुसुम्पटी को 1884 ई. को ब्रिटिश सरकार को पट्टे पर दिया था। हितेंद्र तेन क्योंथल रियासत के अंतिम शासक थे।
- घुण्ड - घुण्ड रियासत की स्थापना जनजान सिंह ने की थी। चूण्ड रियासत क्योंथल रियासत की जागीर थी। जो 1819 ई. में पुनः क्योंथल रियासत की जागीर बन गई। घूण्ड रियासत के अंतिम शासक रणजीत सिंह थे।
- ठियोग - ठियोग रियासत की स्थापना कहलूर के जैसचंद (जयचंद) ने की थी। ठियोग रियासत क्योंथल रियासत की जागीर ही। कृष्णचन्द्र ठियोग रियासत के अंतिम शासक थे ठियोग रियासत भारत में विलय होने वाली हि.प्र. की पहली रियासत थी।
- मधान - मधान रियासत की स्थापना कहलूर रियासत के राजा भीम चंद के दूसरे पुत्र और जैसचंद (ठियोग) तथा जनजान मधान रियासत ठियोग में मिलकर 1948 ई. में महासू जिले का भाग बनी।
- कोटखाई - कोटखाई रियासत की स्थापना कुम्हार सेन के अहिमाल सिंह ने की थी। कोटखाई कुमारसेन, कुल्लू और बुशहर की जागीर रही थी। गोरखा-ब्रिटिश युद्ध (1815) के बाद कोटखाई राणा रणजीत सिंह को दी गई तथा कोटगढ़ ब्रिटिशरों ने स्वयं अपने पास रखी।
- करांगला - करांगला की स्थापना कुम्हार सेन के संसार चंद ने की थी। करांगला रियासत बुशहर रियासत की जागीर थी।
- सारी - सारी रियासत की स्थापना 1195 ई. में उन चंद (सिरमौर) के दूसरे पुत्र मूलचंद ने की थी। रोहडू सारी रियासत के अधीन था। पूर्ण सिंह सारी के अंतिम शासक थे। ब्रिटिश सरकार ने 1864 ई. में सारी को नजराने के रूप में बुशहर रियासत को दे दिया।
- बुशहर रियासत और इसके शासक बुशहर रियासत की स्थापना श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने की थी) अपने पुत्र अनिरुद्धं (श्रीकृष्ण का पोता) का विवाह शोणितपर (सराहन) के राजा बाणासुर की पुत्री से करने आये थे। बाणासुर की मृत्यु के बाद प्रद्युम्न ने बुशहर रियासत की स्थापना की और कामरू को बुशहर रियासत की राजधानी बनाया। प्रद्युम्न के 110वें वंशज राजा चतर सिंह ने राजधानी "कामरू" से "सराहन" स्थानांतरित की।
1. केहरी सिंह (1639 - 1696) - केहरी सिंह बुशहर रियासत के प्रसिद्ध राजा थे। उनका दूसरा नाम "अजानबाहु केहरि” भी था। मुग़ल साम्राज्य के ओरंगजेब उनके समकालीन थे। उनके कार्यों के लिए ओरंगजेब ने उन्हें दिल्ली बुलाकर उन्हें छत्रपति की उपाधि से सन्मानित किया था। केहरी सिंह ने शिमला में वाणिजय और व्यापार को बढ़ाने के लिए लवी के मेले का आरम्भ किया था जो आज भी शिमला जिले में मनाया जजता है।
2. राजा राम सिंह (1767 1799) राजा राम सिंह ने "सराहन" जो अभी शिमला जिले की तहसील है को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय कुल्लू के राजा विधि सिंह, राम सिंह के समकालीन थे उन्होंने शिमला के बाहरी क्षेत्र पर हमला कर दिया और धवल, कोट खांडी और बलरामगढ़ पर कब्जा कर लिया। ये क्षेत्र आज भी कुल्लू जिले के ही हिस्से है। राजा राम सिंह ने 1776 में स्पीति के ढांकर दुर्ग को अपने अधीन किया था। राजा रामसिंह ने बुशहर रियासत की राजधानी सराहन से रामपुर स्थानांतरित की।
3. महेंद्र सिंह (1810 - 1815) - जब गोरखों का शिमला पर अत्याचार जारी था तब बुशहर रियासत के राजा महेंद्र सिंह थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन से गोरखों से लड़ने के लिए सहायता मांगी डेविड Auchterlony ने राम सिंह से वादा किया की वे उनके सहायता करेंगे ये घोषणा 1814 में की गई थी। इसमें ये भी ब्रिटिश शासन ने कहा कि गोरखों को भगाने के बाद उन्हें उनके पूर्वजो का साम्राज्य वापिस कर दिया जायेगा। उनके शासन काल में ही में 1814 में गोरखाओं और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ।
4. शमशेर सिंह :- शमशेर सिंह ने 1857 ईस्वी के विद्रोह में अंग्रेजों का साथ नहीं दिया। बुशहर रियासत का ये एक ऐसा राजा था जिसका शासन संतोषजनक नहीं था। इनके शासन काल में ही में धूम का विद्रोह हुआ था। उनके शासन न अच्छी तरह से करने के कारण रघुनाथ सिंह जो महेंद्र सिंह के बेटे थे को शासन दिया गया। भारत सरकार ने उन्हें CIE की उपाधि से सम्मानित किया।
5. पदम सिंह (1873 - 1947) - इसके बाद बुशहर रियासत पर पदम सिंह का शासन हुआ। उनके शासन काल के समय ही दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था। और पदम सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया। इससे खुश होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नौ-बंदूक की सलामी भी दी थी।
शिमला का इतिहास
1814-16 के गोरखा युद्ध के बाद सैनिक टुकड़ियों के सुरक्षित जगह पर आराम के लिये शिमला की स्थापना की गई थी। शिमला ठंडी जलवायु, सुरम्य प्राकृतिक दृश्यों, हिमाच्छादित पहाड़ी दृश्यों, चीड़ और देवदार के जंगलों और औपनिवेशिक वास्तु के आकर्षक शहरी भूदृश्य के लिये विख्यात है। इन्हीं कारणों से यह भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था।
1864 में शिमला को अंग्रेजों की राजधानी बनाया गया था। शिमला एक पर्यटक स्थल के रूप में भी मशहूर है। शिमला की खोज अंग्रेजों ने सन् 1819 में की थी। चार्ल्स कैनेडी ने यहाँ पहला ग्रीष्मकालीन घर बनाया था। जल्दी ही शिमला लॉर्ड विलियम बेन्टिन्क की नज़रों में आ गया, जो कि 1828 से 1835 तक भारत के गवर्नर जनरल थे।
19 वीं सदी के अतं में यहाँ ब्रिटिश वाइसरॉय के आवास (राष्ट्रपति निवास) का निर्माण हुआ था। आजकल इसमें इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडी है।
स्थिति
शिमला समुद्र तल से 6890 फीट ऊंचा, देश का सर्वाधिक ख़ूबसूरत हिल स्टेशन है, जो कि 12 किलोमीटर लम्बाई में फैला हैं। शिमला चंडीगढ़ से 114 किलोमीटर उत्तर में लगभग 2,200 मीटर की ऊँचाई पर लघु हिमालय की एक पर्वत चोटी पर स्थित है। शिमला लगभग 7267 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और यह अर्ध चक्र आकार में बसा हुआ है। जहां पूरे वर्ष ठण्डी हवाएँ बहने का वरदान है।
संस्कृति
शिमला में विभिन्न त्योहारों को मनाया जाता है। शिमला समर फेस्टिवल, पीक पर्यटन सीजन के दौरान हर साल रिज पर आयोजित किया जाता है। इसका मुख्य आकर्षण सभी देश भर से लोकप्रिय गायकों द्वारा प्रदर्शन शामिल है।
पर्यटन
शिमला में पहुँचने की आसानी और अनेक आकर्षक स्थलों के कारण शिमला भारत का सबसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। हिमालय पर्वत की निचली श्रृंखलाओं में अवस्थित शिमला शहर देवदार, चीड़ और माजू के जंगलों से घिरा है। इसके उत्तर में बर्फ़ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएँ है। यहाँ घाटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है और महान् हिमालय पर्वती की चोटियाँ चारों ओर दिखाई देती है। 12 किलोमीटर की दूरी में फैले शिमला शहर में पहाड़ी ढलानों पर बने मकानों और खेतों, देवदार, चीड़ और माजू के जंगलों से घिरा शिमला बहुत आकर्षक दिखाई देता है। कालका से धीमी रफ्तार से चलती छोटी रेलगाड़ी से यहाँ आना सुखद महसूस होता है। शिमला की घाटियों में बहते झरने और मैदान शिमला की शोभा बढ़ाते हैं। शहर के भीतर अनूठे कॉटेज और शानदार रास्तों में औपनिवेशिक प्रभाव देखा जा सकता है। शिमला में ख़रीदारी, खेलकूद और मनोरंजन के विभिन्न विकल्प मौजूद हैं। यहाँ ठण्डी हवाएँ बहती रहती है। शिमला का सुखद मौसम, आसानी से पहुँच और ढेरों आकर्षण इसे उत्तर भारत का एक सर्वाधिक लोकप्रिय पर्वतीय स्थान बना देते हैं।
यह भी पढे 👉👉👇👇
- लाहौल स्पीति का इतिहास (History of Lahaul Spiti)
- ऊना का इतिहास (History of Una(Himchal Pradesh)
- कांगड़ा का इतिहास(History of Kangra(Himchal Pradesh)
- चम्बा का इतिहास(History of Chamba (Himchal Pradesh)
- कुल्लू का इतिहास (History of Kullu himchal Pradesh)
- बिलासपुर का इतिहास(History of Bilaspur (Himchal Pradesh)
- शिमला का इतिहास (History of Shimla (Himachal Pradesh)
- किन्नौर का इतिहास(History of Kinnaur(Himachal Pradesh)
- सोलन का इतिहास (History of Solan(Himachal Pradesh )
- हमीरपुर का इतिहास (History of Hamirpur (Himachal Pradesh)
- सिरमौर का इतिहास(History of Sirmaur (Himachal Pradesh)
- मण्डी का इतिहास (History of Mandi(Himchal Pradesh)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें