कुल्लू का इतिहास (History of Kullu himchal Pradesh)

कुल्लू का इतिहास (History of Kullu himchal Pradesh)

रामायण, महाभारत आदि जैसे कई पौराणिक ग्रंथ, कुल्लू घाटी के संदर्भ में, इस घाटी की प्राचीनता का ब्योरा देते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, घाटी को मानव जाति के गढ़ के रूप में माना जाता है महान बाढ़ के बाद, मानवता के पूर्वज, मनु ऋषि ने वर्तमान मनाली में अपने निवास की स्थापना की, जिसे ‘मनु-आल्य’ के नाम से जाना जाता है (अर्थात मनु का घर)। परशुराम, जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है, वह घाटी में बसे थे, निरमंड में स्थापित पौराणिक परशुराम मंदिर को इसका साक्ष्य माना जाता है।

कुल्लू का इतिहास (History of Kullu himchal Pradesh)

रामायण काल ​​से जुड़ी कुछ किंवदंतियों के अनुसार, श्रृंगा ऋषि, जो बंजार के पास निवास करते थे, राजा दशरथ द्वारा आयोजित ‘पुत्तरेश्वर यज्ञ’ में शामिल हुए, जिसके बाद भगवान राम का जन्म हुआ। ब्यास नदी का  नाम आम परंपरा के अनुसार ऋषि वशिष्ठ के द्वारा दिया गया है, जिसका संदर्भ रामायण में पाया जाता है। कहा जाता है कि उनके पुत्रों की मृत्यु के बाद जीवन से उचट होने के कारण, ऋषि वशिष्ठ अपने हाथ पैर बांध कर नदी में कूद गए। लेकिन पवित्र नदी ने उनके बंधनों को तोड़ कर उन्हें तट पर उतार दिया। तब से व्यास नदी ‘विपाशा ‘ व्  ‘बंधन की मुक्तिदाता’ के रूप से जानी गई। पुनः ऋषि वशिष्ठ ने खुद को सतलुज में फेंक दिया लेकिन नदी के पवित्र जल ने खुद को सौ उथले नालों में विभाजित कर दिया और ऋषि को सूखी भूमि पर छोड़ दिया। इसी कारण इस नदी को ‘सतादरी’ के नाम से जाना जाता है।

यह भूमि पांडवों से जुड़ी कई किंवदंतियों से भी भरी है। माना जाता है कि पांडव घाटी में अपने निर्वासन का एक हिस्सा बिता चुके हैं। मनाली में हिडिम्बा मंदिर, सैंज में शन्चूल महादेव मंदिर और निरमंड के देव धनक मंदिर पांडवों के साथ जुड़े हुए माने जाते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में भीमसेन ने एक मजबूत और क्रूर दानव हडिम्ब को मार डाला और उसकी बहन हडिम्बा, जो मनाली की एक शक्तिशाली देवी थी, से शादी कर ली। भीम और हडिम्बा के पुत्र घटोत्कच ने महाभारत में अद्वितीय वीरता और दमख़म दिखाया। एक अन्य किंवदंती के अनुसार अर्जुन, ऋषि व्यास की सलाह पर, इंद्र्किला के पहाड़ पर ‘अर्जुन गुफा’ नाम की गुफा में तपस्या करता था ताकि इंद्र के शक्तिशाली पशुपति अस्त्र को प्राप्त कर सके, जिसे अब देओ टिब्बा कहा जाता है, कहा जाता है कि महान ऋषि व्यास इस घाटी में महाभारत काल के दौरान रोहतांग दर्रे पर ‘व्यास कुंड’ नामक एक जगह पर तप करते थे। इसी वजह से विपाशा नदी को वर्तमान में ब्यास का नाम मिला। घाटी की देव संस्कृति एक दिलचस्प पौराणिक कथा से पैदा हुई है। यह माना जाता है कि मलाना गांव के शक्तिशाली देवता, जमलू ने एक बार चंद्र्खेनी दर्रे से गुजरते हुए देवताओं की टोकरी वहां पर खोल दी और तेज़ हवाओं ने देवताओं को अपने वर्तमान स्थान तक फैला दिया, जिससे कुल्लू को देवताओं की घाटी के रूप में जाने जाना लगा।
  • जिले के रूप में गठन 1963 ई.
  • जिला मुख्यालय कुल्लू
  • जनसंख्या (2011 में) 4,37,903
  • जनसंख्या घनत्व (2011 में) 80
  • कुल क्षेत्रफल 5503 वर्ग किमी
  • साक्षरता दर (2011 में) 79.14%
  • लिंग अनुपात (2011 में) 942
  • शिशु लिंगानुपात (2011 में) 962
  • कुल गाँव 172 (आबाद गाँव-172)
  • ग्राम पंचायतें 204
  • विकास खंड 6 (कुल्लू, नग्गर, बंजार, आनी, भुंतर, निरमंड)
  • उप मण्डल अन्नी, निरमंड) ......5 (कुल्लू, मनाली, बंजार,
  • विधानसभा सीटें 4
  • लोकसभा क्षेत्र........मंडी
  • ग्रामीण जनसंख्या (2011 में) 6,11,884 (75.23%)
  • तहसील आनी, निरमंड) 6 (कुल्लू, भुंतर, मनाली, बंजार,
  • उप-तहसील .........3 (सैंज, नित्थर, Jari)
  • भुंत
  • हवाई अड्डा भुंतर
  • भाषा हिन्दी, कुल्ल्वी

कुल्लू का इतिहास (History of Kullu himchal Pradesh)

  • कुल्लू रियासत की स्थापना - कुल्लू का पौराणिक ग्रन्थों में 'कुल्लूत देश' के नाम से वर्णन मिलता है। रामायण, विष्णुपराण, महाभारत, मारकडेण्य पुराण, वृहत्संहिता और कल्हण की राजतरंगिणी में 'कुल्लूत' का वर्णन मिलता है। वैदिक साहित्य में कूलूत देश गन्धवों की भूमि कहा गया है। कुल्लू घाटी को कुलांतपीठ भी कहा गया है क्योंकि इसे रहने योग्य संसार का अंत माना गया था।। कुल्लू रियासत की स्थापना विहंगमणिपाल ने हरिद्वार (मायापुरी) से आकर की थी। विहंगमणिपाल के पूर्वज इलाहाबाद (प्रयागराज) से अल्मोड़ा और फिर हरिद्वार आकर बस गये थे। विहंगमणिपाल स्थानीय जागीरदारों से पराजित होकर प्रारंभ में जगतसुख के चपाईराम के घर रहने लगे। भगवती हिडिम्बा देवी के आशीर्वाद से विहंगमणिपाल ने रियासत की पहली राजधानी (नास्त) जगतसुख स्थापित की। विहंगमणिपाल के पुत्र पच्छपाल ने 'गजन' और 'बेवला' के राजा को हराया। यह त्रिगर्त के बाद दूसरी सबसे पुरानी रियासत है।
  • कुल्लू रियासत की सात वजीरियाँ
1) परोल वजीरी (कुल्लू)
2) वजीरी रूपी (पार्वत और सैंज खड्डु के बीच)
3)  वजीरी लग महाराज (सरवरी और सुल्तानपुर से बजौरा तक)
4) वजीरी भंगाल
5) वजीरी लाहौल
6)  वजीरी लग सारी (फोजल और सरवरी खड्डु के बीच)
7) वजीरी सिराज (सिराज को जालौरी दर्रा दो भागों में बाँटता है)
  • महाभारत काल - कुल्लू रियासत की कुल देवी हिडिम्बा ने भीम से विवाह किया था। घटोत्कच भीम ओर हिडिम्बा का पुत्र था जिसने महाभारत युद्ध में भाग लिया था। भीम ने हिडिम्ब (टाण्डी) का वध किया था जो देवी राक्षसी हिडिम्बा का भाई था।
  • ह्वेनसांग का विवरण चीनी यात्री हेनसांग ने 635 ई० में कुल्लू रियासत की यात्रा की। उन्होंने कुल्लू रियासत की परिधि 800 कि० मी० बताई जो जालंधर से 187 कि० मी० दूर स्थित था। उसके अनुसार कुल्लू रियासत में लगभग एक हजार बौद्ध भिक्षु महायान का अध्ययन करते थे। भगवान बुद्ध के कुल्लू भ्रमण की याद में अशोक ने कुल्लू में बौद्ध स्तूप बनवाया।

कुल्लु में पाल वंश का शासनकाल? History of Pal Dynasty in Kullu

  • विसुदपाल - नग्गर के राजा कर्मचंद को युद्ध में हराकर विसुदपाल ने कुल्लू की राजधानी जगतसुख से नग्गर स्थानांतरित की।
  • रूद्रपाल और प्रसिद्धपाल - रूद्रपाल के शासनकाल में स्पीति के राजा राजेन्द्र सेन ने शासनकाल में स्पीति के राजा राजेन्द्र सेन ने कुल्लू पर आक्रमण करके उसे नजराना दिया। प्रसिद्ध पाल ने स्पीति के राजा छतसेन से कुल्लू और चम्बा के राजा से लाहौल को आजाद करवाया।
  • दत्तेश्वर पाल - दत्तेश्वर पाल के समय चम्बा के राजा मेरूवर्मन (680-700 ई०) ने किल्लु पर आक्रमण कर दतेश्वर पाल को हराया और वह इस युद्ध में मारा गया। दत्तेश्वर पाल पालवंश का 31वां राजा था।
  • जारेश्वर पाल (780-800 ई०) जारेश्वर पाल ने बुशहर रियासत की सहायता से कुल्लू को चम्बा से मुक्त करवाया।
  • भूपपाल - कुल्लू के 43वें राजा भूपपाल सुकेत राज्य के सस्थापक वीरसेन के समकालीन थे। बीरसेन ने सिराज में भूपाल को हराकर उसे बंदी बनाया।
  • पड़ोसी राज्यों के पाल वंश पर आक्रमण - हस्तपाल के समय बुशहर, नरिंटर, काँगड़ा, केरल पाल के समय सुकेत ने कुल्लू पर आक्रमण कर कब्जा किया और नजराना देने के लिए मजबूर किया।
  • उर्दान पाल (1418-1428 ई०) पाल वंश के 72वां राजा उर्दान पाल ने जगत सुख में संधिया देवी का मंदिर बनवाया।
  • पाल वंश का अंतिम शासक कैलाश पाल (1428 - 1450 ई०) कुल्लू का अंतिम राजा था जिसके साथ 'पाल' उपाधि का प्रयोग हुआ। संभवतः वह पालवंश का अंतिम राजा था।
  • सिंह बदानी वंश - कैलाशपाल के बाद के 50 वर्षों के अधिकतर समय में कुल्लू सुकेत रियासत के अधीन रहा। वर्ष 1500 ई० में सिद्ध सिंह ने सिंह बदानी वंश की स्थापना की। उन्होंने जगतसुख को अपनी राजधानी बनाया।

कुल्लू में सिंह वंश के राजा और उनका शासनकाल?

  • बहादुर सिंह (1532 ई०) बहादुर सिंह सुकेत के राजा अर्जुन सेन का समकालीन था। बहादुर सिंह ने वजीरी रूपी को कुल्लू राज्य का भाग बनाया। बहादुर सिंह ने मकरसा में अपने लिए महल बनवाया। मकरसा की स्थापना महाभारत के विदुर के पुत्र मकस ने की थी।  राज्य की राजधानी उस समय नग्गर थी। बहादुर सिंह ने अपने पुत्र प्रताप सिंह का विवाह चम्बा के राजा गणेश वर्मन की बेटी से करवाया। बहादुर सिंह के बाद प्रताप सिंह (1559 - 1575), परतप सिंह (1575 1608), पृथ्वी सिंह (1608 - 1635) और कल्याण सिंह (1635- 1637) मुगलों के अधीन रहकर कुल्लू पर शासन कर रहे थे।
  • जगत सिंह (16371672 ई०) जगत सिंह कुल्लू रियासत का सबसे शक्तिशाली राजा था। जगत सिंह ने लग वजीरी और बाहरी सिराज पर कब्जा किया। उन्होंने डूग्गीलग के जोगचंद और सुल्तानपुर के सुल्तानचंद (सुल्तानपुर का संस्थापक) को 1650 1655 के बीच पराजित कर 'लग' वजीरी पर कब्जा किया। औरंगजेब उन्हें 'कुल्लू का राजा' कहते थे। कुल्लू के राजा जगत सिंह ने 1640 ई० में दाराशिकोह के विरुद्ध विद्रोह किया तथा 1657 ई० में उसके फरमान को मानने से मना कर दिया था। राजा जगत सिहं ने टिप्परी' के ब्राह्मण की आत्महत्या के दोष से मुक्त होने के लिए राजपाठ रघुनाथ जी को सौंप दिया। राजा जगतसिंह ने 1653 में दामोदर दास (ब्राह्मण) से रघुनाथ जी की प्रतिमा अयोध्या से मंगवाकर राजपाठ उन्हें सौंप दिया। राजा जगत सिंह के समय से ही कुल्लू के ढालपुर मैदान पर कुल्लू का दशहरा मनाया जाता है।  राजा जगत सिहं ने 1660 ई. में अपनी राजधानी नग्गर से सुलतानपुर स्थानांतरित की। जगत सिहं ने 1660 ई. में रघुनाथ जी का मंदिर और महल का निर्माण करवाया था।
  • मानसिंह (1688-1702 ई०) कुल्लू के राजा मानसिंह ने मण्डी पर आक्रमण कर गुम्मा (दंग) नमक की खाना में कब्जा जमाया। उन्होंने 1688 ई० में वीर भंगाल क्षेत्र पर नियंत्रण किया। उन्होंने लाहौल-स्पीति को अपने अधीन कर तिब्बत की सीमा लिंगटी नदी के साथ निधारित की। राजा मानसिंह ने शांगरी और बुशहर रियासत के पण्ड्रा ब्यास क्षेत्र को भी अपने अधीन किया। उनके शासन में कुल्लू रियासत का क्षेत्रफल 10, 000 वर्ग मील हो गया। 
  • राजसिंह (17021731 ई०) राजा राजसिंह के समय गुरु गोविंद सिंह जी ने कुल्लू की यात्रा की।
  • टेढ़ी सिंह (1742 1767 ई०) राजा टेढ़ी सिंह के समय घमण्ड चंद ने कुल्लू पर आक्रमण किया।
  • प्रीतम सिंह (17671806) प्रीतम सिंह संसारचंद द्वितीय का समकालीन राजा था। उसके समय कुल्लू का वजीर भागचंद था
  • विक्रम सिंह (1806-1816 ई०) राजा विक्रम सिंह के समय में 1810 ई० में कुल्लू पर पहला सिक्ख आक्रमण हुआ जिसका नेतृत्व दीवान मोहकम चंद कर रहे थे।
  • अजीत सिंह (1816 - 1841 ई०) - राजा अजीत सिंह के समय 1820 ई० में विलियम मूरक्राफ्ट ने कुल्लू की यात्रा की। कुल्लू प्रवास पर आने वाले वह पहले यूरोपीय यात्री थे। राजा अजीत सिंह को सिक्ख सम्राट शेरसिंह ने कुल्लू रियासत से खदेड़ दिया (1840 ई० में)।
  • ब्रिटिश संरक्षण के अधीन सांगरी रियासत में शरण लेने बाद 1841 ई० में अजीत सिंह की मृत्यु हो गई। कुल्लू रियासत 1840 ई० से 1846 ई० तक सिक्खों के अधीन रही।

कुल्लू जिले का निर्माण

  • 9. ब्रिटिश सत्ता और जिला निर्माण प्रथम सिख
  • युद्ध के बाद 9 मार्च, 1846 ई० को कुल्लू रियासत अंग्रेजों के अधीन आ गया। 
  • अंग्रेजों ने वजीरी रूपी को कुल्लू के शासकों को शासन करने के लिए स्वतंत्र रूप से प्रदान किया।
  •  लाहौल - स्पीति को 9 मार्च, 1846 को कुल्लू के साथ मिलाया गया। 
  • स्पीति का लद्दाख से कुल्लू मिलाया गया। कुल्लू को 1846 ई० में कांगड़ा का उपमण्डल बनाकर शामिल किया गया।
  • कुल्लू उपमण्डल का पहला सहायक आयुक्त कैप्टन हेय था। सिराज तहसील का उस समय मुख्यालय बजार था। स्पीति को 1862 में सिराज से निकाल कर कुल्लू की तहसील बनाया गया। वर्ष 1863 ई० में वायसराय लार्ड एल्गिन कुल्लू आने वाले प्रथम वायसराय थे।
  • कुल्लू उपमण्डल से अलग होकर लाहौल स्पीति जिले का गठन 30 जून, 1960 ई० को हुआ। कुल्लू उपमण्डल को 1963 ई० में काँगड़ा से अलग कर पंजाब का जिला बनाया गया। कुल्लू जिले के पहले उपायुक्त गुरचरण सिंह थे। कुल्लू जिले का 1 नवम्बर, 1966 ई० को पंजाब से हिमाचल प्रदेश में विलय हो गया।

कुल्लू जिला -

  • बिजली महादेव मंदिर -यह मंदिर कुल्लू से 14 किलोमीटरदूर ब्यास नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ हर वर्ष शिवलिंग पर बिजली गिरती है।

  1. कुल्लू में स्थित बिजली महादेव मंदिर का रहस्य (Mystery of Bijli Mahadev Temple in Kullu)
  2. बिजली महादेव मंदिर, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश (Bijli Mahadev Temple Kullu Himachal Pradesh)

  • हिडिम्बा देवी मंदिर - यह मंदिर मनाली से 3 किलोमीटर दूर ढुंगरी के जंगल में स्थित है। यह मंदिर भीम की पत्नी हिडिम्बा देवी को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1553 ई में राजा बहादुर सिंह ने करवाया था। प्रतिवर्ष मई के महीने में यहाँ ढुंगरी का मेला लगता है।

  1. हिडिम्बा देवी मंदिर मनाली में हिमाचल प्रदेश (Hidimba Devi Temple in Manali, Himachal Pradesh)
  2. हिडिम्बा मंदिर के बारे में रोचक तथ्य (Interesting facts about Hidimba Temple)

  • बजौरा मंदिर - यह मंदिर कुल्लू के बजौरा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

  1. विश्वेश्वर मंदिर, बजौरा, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश (Vishweshwar Temple, Bajaura, Kullu, Himachal Pradesh)
  2. श्री बशेश्वर महादेव मंदिर (प्राचीन हिंदू मंदिर) Shri Basheshwar Mahadev Temple (Ancient Hindu Temple)

  • जामलू मंदिर - यह मंदिर कुल्लू जिले के मलाणा गाँव में स्थित है। यह मंदिर जमदग्नि ऋषि को समर्पित है, जिन्हें जामलू देवता के नाम से जाना जाता है।

  1. जामलू मंदिर (जमुला ऋषि को समर्पित)मनाली में जमुला मंदिर(Jamlu Temple (dedicated to Jamula Rishi))

  • मनु मंदिर - यह मंदिर शंसर कुल्लू में स्थित है, जो मनालीके पास स्थित है। यह मंदिर मनु को समर्पित है।

  1. मनु मंदिर, पुरानी मनाली(Manu Temple, Old Manali )

  • रघुनाथ मंदिर - रघुनाथ मंदिर कुल्लू में स्थित है, जिसे राजा जगत सिंह ने बनवाया था।

  1. रघुनाथ मंदिर (कुल्लू हिमाचल प्रदेश) Raghunath Temple (Kullu Himachal Pradesh)
  2. रघुनाथ (राम नाम का जाप, मंत्र, श्री रामाष्टकः, आरती, दोहा) Raghunath (Chanting of Ram's name, Mantra, Shri Ramashtakah, Aarti, Doha)
  3. जय भगवान रामचन्द्र श्लोक, गायत्री मंत्र, तारक मंत्र (Jai Bhagwan Ramchandra Shloka, Gayatri Mantra, Tarak Mantra)
  4. भगवान रामचन्द्र के पवित्र चरणों से अहिल्या उद्धार(Ahalya delivers from the holy feet of Lord Ramachandra)
  5. भगवान रामचन्द्र मंदिर(रामनवमी इतिहास (चैत्र शुक्ल नवमी )( Lord Ramachandra Temple (Ram Navami History (Chaitra Shukla Navami)

  • कार्तिकेय (मूर्ति) कनखल - कनखल मंदिर में शिव के पुत्र कार्तिकेय की मूर्ति है। यह मंदिर कुल्लू मण्डी के बीच कनखल में स्थित है।
कनखल मंदिर कुल्लू
  • रामचंद्र मंदिर (मणिकर्ण), रामचंद्र मंदिर (वशिष्ठ), और रघुनाथ मंदिर (सुल्तानपुर) का निर्माण राजा जगत सिंह ने करवाया था।
  1. भगवान रामचन्द्र मंदिर(Mandir Shri Ramchandra Ji)
  2. जय भगवान रामचन्द्र श्लोक, गायत्री मंत्र, तारक मंत्र (Jai Bhagwan Ramchandra Shloka, Gayatri Mantra, Tarak Mantra)
  3. रघुनाथ (राम नाम का जाप, मंत्र, श्री रामाष्टकः, आरती, दोहा) Raghunath (Chanting of Ram's name, Mantra, Shri Ramashtakah, Aarti, Doha)
  4. भगवान रामचन्द्र के पवित्र चरणों से अहिल्या उद्धार(Ahalya delivers from the holy feet of Lord Ramachandra)
  5. भगवान रामचन्द्र मंदिर(रामनवमी इतिहास (चैत्र शुक्ल नवमी )( Lord Ramachandra Temple (Ram Navami History (Chaitra Shukla Navami)
रघुनाथ मंदिर (सुल्तानपुर

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