हिमाचल प्रदेश का पंचायती राज (Panchayati Raj of Himachal Pradesh)
हिमाचल प्रदेश पंचायती राज विभाग
हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज विभाग की स्थापना वैधानिक रूप में हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1952 के प्रावधानों के तहत वर्ष 1954 में की गई थी। हिमाचल प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1952 के अधिनियम से पहले केवल 280 ग्राम पंचायतें मौजूद थीं। उक्त अधिनियम के लागू होने के बाद, 1954 में 466 ग्राम पंचायतों की स्थापना की गई और 1962 के दौरान ग्राम पंचायतों की संख्या बढ़ाकर 638 कर दी गई। 1 नवंबर, 1966 को पंजाब के पर्वतीय क्षेत्रों का इस राज्य में विलय कर दिया गया। ऐसे में ग्राम पंचायतों की संख्या 1695 हो गई। विलीन क्षेत्र में, पंजाब पंचायत समिति और जिला परिषद अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में थी, जबकि इस राज्य में दो स्तरीय प्रणाली प्रचलित थी। पुराने और नए विलय वाले क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था में एकरूपता लाने के उद्देश्य से, हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1968 इस राज्य में 15 नवम्बर, 1970 को लागू किया गया था और पूरे राज्य में दो स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्थापित की गई थी। न्यायिक कार्यों के निर्वहन के लिए इस राज्य में न्याय पंचायतें भी अस्तित्व में थीं, लेकिन 1977 के दौरान न्याय पंचायतों को समाप्त कर दिया गया और न्यायिक कार्यों को ग्राम पंचायतों में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 1970 में उक्त अधिनियम के अधिनियमित होने के बाद, समय-समय पर मौजूदा ग्राम सभाओं का पुनर्गठन एवं समय-समय पर विभाजन किया गया और नई ग्राम सभाओं एवं ग्राम पंचायतों की स्थापना की गई।
हिमाचल प्रदेश का पंचायती राज |
- पंचायती राज व्यवस्था - हिमाचल प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था है। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, विकास खण्ड स्तर पर पंचायत समिति है और जिला स्तर पर जिला परिषद। प्रदेश में सबसे पहले पंचायतों की स्थापना पंचायत अधिनियम, 1952 के अंतर्गत की गई। हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1993 में पारित किया गया जो अब भी लागू है। ग्राम सभा जिसकी जनसंख्या 2000 से कम होती है, उसमें प्रधान, उप-प्रधान सहित 7 सदस्य होते हैं। 2000 से 3500 वाली पंचायत में 9 और इससे अधिक जनसंख्या वाली पंचायतों में 11 सदस्य होते हैं। ग्राम पंचायतों में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया गया है।
- GDP (सकल घरेलू उत्पाद) और प्रति व्यक्ति आय -
हिमाचल प्रदेश का पंचायती राज |
- वर्ष 2010-11 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद स्थिर भावों (2004-2005) पर 39,036 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2011-12 में 41,939 करोड़ हो जाने से इस वर्ष की आर्थिक विकास दर 7.4% रही जबकि यह दर पिछले वर्ष 8.7% थी। प्रचलित भावों पर सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2010-11 में 56,355 करोड़ की तुलना में वर्ष 2011-12 में 63,812 करोड़ आँका गया है। यह 13.2% की वृद्धि दर्शाता है। 2012-13 में आर्थिक विकास दर 6.2% रही।
- वर्ष 2010-11 में प्रचलित भावों पर प्रति व्यक्ति आय 67,475 से बढ़कर वर्ष 2011-12 अनुमानों के अनुसार 74,694 हो गई जोकि 10.7% की वृद्धि दर्शाती है। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का मुख्य कारण सामुदायिक एवं व्यक्तिगत सेवाएं 20.0%, यातायात व व्यापार क्षेत्र की 8.9%, वित्त व स्थावर सम्पदा 8.1%रही जबकि प्राथमिक क्षेत्र में 5.2% की कमी आई है। खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2010-11 में 14.94 लाख मीट्रिक तन से बढ़कर 2011-12 में 15.54 लाख मीट्रिक टन रहा और 2012-13 में उत्पादन बढ़कर 15.80 लाख मीट्रिक टन होने की संभावना है।
- उद्योग व सेवा क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान 1950-51 में क्रमश: 1.1 व 5.9 प्रतिशत से बढ़कर 1967-68 में 5.6 तथा 12.4 प्रतिशत, 1990-91 में 9.4 प्रतिशत तथा 19.8 प्रतिशत और 2011-12 में 18.0 प्रतिशत तथा 12.3 प्रतिशत हो गया। शेष क्षेत्रों में 1950-51 के 35.5 प्रतिशत की तुलना में 2011-12 में 49.7 प्रतिशत का सकारात्मक सुधार हुआ है।
- अर्थ-व्यवस्था में कृषि क्षेत्र से उद्योग व सेवा क्षेत्रों के पक्ष में रूझान पाया गया क्योंकि कृषि क्षेत्र का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में प्रतिशत योगदान जो वर्ष 1950-52 में 57.9 प्रतिशत था तथा घटकर 1967-68 में 55.5 प्रतिशत, 1990-91 में 26.5 प्रतिशत और 2011-12 में 13.69 प्रतिशत रह गया।
- विभिन्न क्षेत्रों का योगदान - क्षेत्रीय विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2011-12 में प्रदेश की राज्य आय में प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान 19.15 प्रतिशत रहा। गौण क्षेत्रों का 40.20 प्रतिशत, सामुदायिक वैयक्तिक क्षेत्रों का 18.14 प्रतिशत, परिवहन संचार एवं व्यापार का 14.91 प्रतिशत तथा वित्त एवं स्थावर सम्पदा का योगदान 7.60 प्रतिशत रहा।
प्रदेश अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के योगदान में इस दशक में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पाए गए। कृषि क्षेत्र जिसमें उद्यान व पशुपालन भी सम्मिलित है , का प्रतिशत योगदान वर्ष 1990-91 में 26.5 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2011-12 में 13.69 प्रतिशत रह गया। फिर भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का सर्वाधिक महत्त्व रहा। यही कारण है कि खाद्यान्न / फल उत्पादन में आया तनिक भी उतार-चढ़ाव अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान, जिनमें कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन तथा खनन व उत्खनन सम्मिलित हैं, 1990-91 में 35.1 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 19.15 प्रतिशत रह गया।
गौण क्षेत्रों जिनका प्रदेश की अर्थव्यवस्था में दूसरा प्रमुख स्थान है में वर्ष 1990-91 के पश्चात महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। इसका प्रतिशत योगदान वर्ष 1990-91 में 26.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011-12 में 40.20 प्रतिशत हो गया जो कि प्रदेश औद्योगीकरण व आधुनिकीकरण की ओर स्पष्ट रूझान को दर्शाता है। विद्युत, गैस व जल आपूर्ति जो कि गौण क्षेत्रों का ही एक अंग है का भाग वर्ष 1990-91 में 4.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011-12 में 8.5 प्रतिशत हो गया अन्य सेवा संबंधी क्षेत्रों जैसे कि व्यापार, यातायात, संचार, बैंक, स्थावर सम्पदा और व्यावसायिक सेवाएँ तथा सामुदायिक व वैयक्तिक सेवाओं का योगदान भी सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2011-12 में 40.65 प्रतिशत रहा।
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