हिमाचल प्रदेश का पशुपालन (Animal Husbandry of Himachal Pradesh )

हिमाचल प्रदेश का पशुपालन (Animal Husbandry of Himachal Pradesh )

हिमाचल प्रदेश का पशुपालन  परिचय

पशुपालन तथा दुग्ध से सम्बंधित गतिविधियां मनुष्य जीव का एक अभिन्न अंग रही है | हिमाचल प्रदेश में पशुधन अधिक संख्या में उपलब्ध है तथा प्रदेश में पशुपालक अपनी आजीविका के लिए पशुपालन गतिविधियों से जुड़े हैं | 19वीं पशुधन जनगणना- 2012 के अनुसार हिमाचल प्रदेश में कुल पशुधन सँख्या 48,44,431 है, जिसमें से 21,49,259 गोजातीय, 7,16,016 भैंसे, 8,04,87 भेड़ें, 11,19,491 बकरीयां, 15,081 घोड़े तथा टट्टू हैं | इसके अतिरिक्त प्रदेश में 11,04,476 कुक्कट भी हैं |
हिमाचल प्रदेश का पशुपालन
हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने के समय प्रदेश में केवल 9 पशु चिकित्सालय थे तथा पहाड़ी नस्ल के पशु ही प्रदेश में पाले जा रहे थे | पशुपालन विभाग का गठन प्रदेश में 1948 में किया गया तथा प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने हेतु विभिन्न परियोजनाएं चलाई गई |ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढावा देने के लिए दुग्ध उत्पादन में वृद्धि तथा नस्ल सुधार के कार्यक्रमों को हाथ में लिया गया | वर्ष 1951 में गायों की नस्ल सुधार हेतु कई कार्यक्रम अखिल भारतीय मुख्य ग्राम (Key Village Scheme) योजना के तहत आरम्भ किये गए तथा दो मुख्य प्राकृतिक गर्भाधान केन्द्र कोटगढ़ तथा सोलन में स्थापित किये गए, जहाँ लाल सिंधी नस्ल के बैलों को नस्ल सुधार (Cross Breeding) कार्यक्रम के लिए रखा गया | इन कार्यक्रमों का प्रभाव काफी उत्साहवर्धक रहा परन्तु इनका विस्तार-क्षेत्र काफी सीमित था | इसके बाद कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली को अपनाया गया तथा वर्ष 1954-55 में पहली बार जर्सी वीर्य तृण हवाई जहाज द्वारा बंगलोर से हिमाचल प्रदेश पहुँचाये गये | इसी अवधि दौरान नया पशुधन प्रजनन संस्थान कोठिपुरा, जिला बिलासपुर में आरम्भ किया गया जहाँ पर जर्सी नस्ल के पशुधन डेनमार्क से आयात कर कोठीपुरा फार्म पर पाले गये तथा उनका प्रदर्शन काफी उत्साहवर्धक रहा | पशुधन प्रजनन सुधार कार्यक्रमों में सबसे अहम योगदान इन्डोन्यूजीलैंड पशुधन सुधार परियोजना का रहा, जिसके तहत 175 शुद्ध जर्सी नस्ल के पशुओं को न्यूजीलैंड से 1974 में लाया गया तथा पालमपुर के विश्वविद्यालय परिसर में रखा गया | इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक वीर्य प्रयोगशाला न्यूजीलैंड सरकार के सहयोग से स्थापित की गई | इसके अतिरिक्त 1974 में ही हिम वीर्य प्रयोगशाला पश्चिम जर्मनी सरकार की सहायता से जिला मंडी के भंगरोटू स्थान पर स्थापित की गई | इन दोनों हिम वीर्य प्रयोगशालाओं ने हिमाचल प्रदेश में कृत्रिम गर्भाधान के कार्यक्रमों को नए आयाम पर पहुंचानें हेतु अपना अहम योगदान दिया है |

विभाग की मुख्य गतिविधियाँ

  • पशु चिकित्सा सेवाएं तथा रोगों की जाँच करना |
  • नस्ल सुधार (Cross Breeding) तथा स्वदेशी पशुओं के संरक्षण के माध्यम से पशुधन उत्पादों में वृद्धि करना |
  1.      गाय व भैंस विकास कार्यक्रम |
  2.      भेड़ विकास कार्यक्रम |
  3.      अंगोरा खरगोश विकास कार्यक्रम |
  4.      कुक्कुट विकास कार्यक्रम |
  • पशुओं के पोषण स्तर में सुधार करना |
  • वैज्ञानिक तरीकों से पशुपालन को बढावा देने के लिये पशुपालकों को प्रशिक्षण देना |
  • विस्तार सेवा तथा प्रौधोगिकी का हस्तांतरण | 
हिमाचल प्रदेश का पशुपालन

हिमाचल प्रदेश का पशुपालन

वर्ष 2011-12 में 11.20 लाख टन दूध, 1648 टन ऊन, 105 मिलियन (10.5 करोड़) अण्डे, 3966 टन मांस का उत्पादन हुआ। वर्ष 2013 तक हिमाचल प्रदेश में 1 राज्य स्तरीय पशु-चिकित्सालय, 7 पोलिक्लीनिक, 49 उप-मण्डलीय पशु चिकित्सालय, 282 पशु चिकित्सालय, 30 केंद्रीय पशु औषधालय, 6 पशु निरिक्षण चौकिया तथा 1762 पशु औषधालय थे।

हिमाचल प्रदेश में कुल पशुधन 52 लाख हैं जिसमें 22.64 लाख गाय-बैल (43.50%) 12.40 लाख बकरी (23.86%) 9 लाख भेड़े (17.30%) और 7.60 लाख भैंसें (14.6%) है। मण्डी जिले में सर्वाधिक पशुधन (9,41,489) है। मण्डी जिले में सर्वाधिक गाय-बैल, काँगड़ा जिले में सर्वाधिक भैंसें, लाहौल-स्पीति जिले में सर्वाधिक याक, चम्बा जिले में सर्वाधिक भेंड़े, बकरियाँ और खच्चर पाए जाते है। हिमाचल प्रदेश में 8 मुर्गियाँ और 2.10 लाख कुत्ते पाए जाते है जिनकी सर्वाधिक संख्या काँगड़ा जिले में है। कुल्लू जिले में सर्वाधिक खरगोश पाए जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश का पशुपालन
  • भेड़ पालन - हिमाचल प्रदेश में भेड़ व ऊन विकास हेतु सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म ज्यूरी (शिमला), सरोल (चम्बा), ताल (हमीरपुर) और कड़छम (किन्नौर) में स्थित है। वर्ष 2011-12 में 1639 मीट्रिक टन ऊन का उत्पादन हुआ। सर्वाधिक ऊन का उत्पादन चम्बा जिले (444.8 मीट्रिक तक) में हुआ जो कि कुल उत्पादन का 27% था। चम्बा जिले में 375 हजार हेक्टेयर चरागाह है जो कि प्रदेश में सर्वाधिक है। 2007-08 में केंद्रीय योजना \"भेड़पालक बीमा योजना\" को शुरू किया गया। नाबार्ड द्वारा भेड़पालक समृद्धि योजना चलाई जा रही है।
हिमाचल प्रदेश का पशुपालन
  • खरगोश पालन - कन्दवाड़ी (काँगड़ा) और नांगवाई (मण्डी) में अंगोरा खरगोश के प्रजनन फार्म खोले गए हैं। प्रदेश में 6620 खरगोश हैं जिनकी सर्वाधिक संख्या कुल्लू जिले (3236) में है।
  • कुक्कुट / मुर्गीपालन - हिमाचल प्रदेश में 8 लाख मुर्गे-मुर्गियाँ हैं। काँगड़ा जिले में सर्वाधिक (2.93 लाख) मुर्गियों की संख्या है। पिजेहरा (सोलन) हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा मुर्गी पालन फार्म है। वर्ष 2010-11 में हिमाचल प्रदेश में 10.20 करोड़ अण्डों का उत्पादन हुआ था। सर्वाधिक अण्डों का उत्पादन काँगड़ा जिले (1.97 करोड़) में हुआ। दूसरा स्थान ऊना जिले का आता है।
  • मछली पालन - हिमाचल प्रदेश में 2011-12 में मछली का वार्षिक उत्पादन 8045 मीट्रिक टन हुआ जिसका कुल औसत मूल्य 50.54 करोड़ था। सर्वाधिक मछली का उत्पादन काँगड़ा जिले (2768 मीट्रिक टन) में हुआ। काँगड़ा के बाद दूसरा स्थान बिलासपुर का अता है। दियोली (घाघस), बिलासपुर में एशिया का सबसे बड़ा मत्स्य प्रजनन केंद्र है जिसकी स्थापना 1961 ई. में की गई थी। आलसू (मण्डी), सुल्तानपुर (चम्बा), मिलवां (काँगड़ा) में सरकारी मत्स्य प्रजनन केंद्र खोले गए हैं। प्रदेश में महाशेर, मिरर कार्प, ट्राउट मछली की किस्में पाई जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में नार्वे की सहायता से ट्राउट का प्रजनन किया जा रहा है।
  • मधुमक्खी पाल - हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2012-13 में 243 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ। चम्बा के सरोल में 1954 ई. में मधुमक्खी पालन केंद्र खोला गया।
  • हिमाचल प्रदेश का पशुपालन
  • दुग्ध उत्पादन - गाय और बैलों के लिए कोठीपुरा (बिलासपुर), कमाण्ड (मण्डी) और पालमपुर में प्रजनन केंद्र है। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2011-12 में 1107 हजार टन दूध का उत्पादन हुआ। सर्वाधिक दूध का उत्पादन काँगड़ा जिला (215 हजार टन) और मण्डी जिला (202 हजार टन)करते हैं। नाबार्ड के सहयोग से हिमाचल प्रदेश में 2009 में दूध गंगा योजना शुरू की गई। वर्ष 2010-11 में मुख्यमंत्री आरोग्य पशुधन योजना शुरू की गई। हिमाचल प्रदेश में 1980 में मिल्कफेड का पंजीकरण हुआ। मिल्कफेड ने 2 अक्टूबर, 1983 ई. में कार्य करना प्रारंभ किया। पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य सरकार का पशुपालन विभाग मुहखुर, बी.क्यू. एंटरोटोम्सेमिया, पी. पी. आर, रैबीज, रानीखेत और मरैकस रोगों का मुफ्त टीकाकरण करती है। वर्ष 2006 में काँगड़ा और मण्डी में पशुधन बीमा योजना शुरू की गई जिसे चम्बा, शिमला और हमीरपुर जिलों तक विस्तृत किया गया है। हिमाचल प्रदेश में 2011-12 में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 445 ग्राम प्रतिदिन थी।
  • अन्य - न्यूट्रीमिक्स उत्पाद संयंत्र की स्थापना मण्डी के चक्कर में हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड द्वारा किया गया है। हमीरपुर जिले के भोरंज के समीप 16 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता वाला पशु आहार प्लांट लगाया गया है। शिमला के कोटखाई के गुम्मा नामक स्थान पर 5 हजार लीटर क्षमता का अभिशीतन केंद्र स्थापित किया गया है। I.D.D.P. (एकीकृत डेरी विकास परियोजना)> के अंतर्गत शिमला के रामपुर क्षेत्र के दत्तनगर में दुग्ध विधायन संयंत्र लगाया गया है जो प्रतिदिन 5 मीट्रिक टन मिल्क पाउडर का उत्पादन करता है। इसके अलावा हमीरपुर के जंगल बैरी, सोलन के नालागढ़, मण्डी के तांदी व चौंतड़ा में अभिशीतन केंद्र स्थापित किए गए हैं।

यह भी पढे

  1. हिमाचल प्रदेश का पशुपालन (Animal Husbandry of Himachal Pradesh )
  2. हिमाचल प्रदेश के कल्याणकारी योजनाएँ(Welfare Schemes of Himachal Pradesh)
  3. हिमाचल प्रदेश के कृषि व बागवानी (Agriculture and Horticulture of Himachal Pradesh)
  4. हिमाचल प्रदेश का परिवहन, यातायात (Transport, Traffic of Himachal Pradesh)
  5. हिमाचल प्रदेश का प्रयटन, होटल (Himachal Pradesh Tourism, Hotels)
  6. हिमाचल प्रदेश के सिंचाई व परियोजनाएं(Irrigation and Projects of Himachal Pradesh)
  7. हिमाचल प्रदेश का ऊर्जा संसाधन(Energy Resources of Himachal Pradesh)
  8. हिमाचल प्रदेश का पंचायती राज (Panchayati Raj of Himachal Pradesh)
  9. हिमाचल प्रदेश के उद्योग खनिज (Industries of Himachal Pradesh Minerals)

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