भगवान कृष्ण और राक्षसी पुतना की कथा - Bhagwan Krishna Aur Rakshasi Putna Ki Katha: Dharma Aur Adharma Ki Yudh

भगवान कृष्ण और राक्षसी पुतना की कथा

प्रस्तावना
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अद्भुत लीलाओं से भरा हुआ है, जिनसे हमें अनमोल सीख मिलती है। उनके बाल्यकाल की एक प्रसिद्ध कथा राक्षसी पुतना से जुड़ी हुई है। यह कथा बताती है कि किस प्रकार भगवान कृष्ण ने अपने बचपन में ही अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की, और साथ ही हमें जीवन की महत्वपूर्ण सीख भी दी।

कंस की साजिश और पुतना का आगमन
कृष्ण का मामा कंस, जो उनकी मृत्यु के लिए सदैव प्रयासरत था, ने कृष्ण को मारने के लिए कई प्रयास किए। कंस को यह भविष्यवाणी मिली थी कि उसका वध देवकी के आठवें पुत्र द्वारा होगा, इसलिए वह कृष्ण को मारने के लिए एक के बाद एक योजनाएँ बनाता रहा। इसी क्रम में उसने ‘पुतना’ नामक एक राक्षसी को कृष्ण का वध करने का कार्य सौंपा।

राक्षसी पुतना, जो एक शक्तिशाली और भयानक योद्धा थी, ने एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लिया और गोकुल पहुँच गई। वह अपने छल से नंद बाबा के घर पहुँची, जहाँ बाल कृष्ण अपनी माँ यशोदा के पास थे। पुतना ने अपनी खूबसूरती और मधुर वाणी से यशोदा का विश्वास जीत लिया और कृष्ण को दूध पिलाने का अनुरोध किया। यशोदा को उसके असली इरादों का कोई आभास नहीं हुआ और उन्होंने उसे अनुमति दे दी।

पुतना का अंत
पुतना ने अपने स्तनों पर विष लेपा हुआ था, जो बाल कृष्ण को मारने के लिए पर्याप्त था। जैसे ही उसने कृष्ण को दूध पिलाना शुरू किया, भगवान कृष्ण ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस राक्षसी के जीवन को चूस लिया। पुतना के सारे प्रयास विफल हो गए, और वह अपने असली रूप में वापस आ गई। भगवान कृष्ण के स्पर्श से ही उसकी आत्मा को मुक्ति मिल गई और उसका अंत हो गया। विष का बाल कृष्ण पर कोई प्रभाव नहीं हुआ, क्योंकि वह स्वयं विष्णु के अवतार थे।

कथा की सीख
पुतना की यह कथा हमें सिखाती है कि कभी भी किसी को जान–बूझकर चोट पहुँचाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके लिए हमें अंततः भुगतना पड़ सकता है। पुतना की मृत्यु इस बात का प्रमाण है कि बुरे इरादे और छल का अंत सदैव बुरा ही होता है। लेकिन, भगवान कृष्ण की कृपा से उसे मुक्ति प्राप्त हुई, जो यह दर्शाता है कि ईश्वर के प्रति भक्ति और अच्छे कर्मों का महत्व कितना अधिक है।

उपसंहार
भगवान श्रीकृष्ण और पुतना की कथा हमें जीवन में सत्कर्म, सच्चाई, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। भगवान कृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएँ हमें यह सिखाती हैं कि हर परिस्थिति में हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में अधर्म का सहारा नहीं लेना चाहिए।

जय श्रीकृष्ण!


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