Bhagwan Shri Krishna Ki Adbhut Janm Katha: Janmashtami Par Padhein - भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत जन्म कथा: जन्माष्टमी पर पढ़ें

 जन्माष्टमी पर पढ़ें भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा

भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा: जन्माष्टमी 2024 पर पढ़ें

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से हुआ था। यह पावन तिथि हर साल धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनने का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा:


भगवान श्रीकृष्ण का जन्म

द्वापर युग में, मथुरा में भोजवंशी राजा उग्रसेन राज्य करते थे। उनके पुत्र कंस ने अपनी बुरी प्रवृत्तियों के चलते अपने पिता को गद्दी से उतारकर खुद मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ था।

एक दिन कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था। उसी समय आकाशवाणी हुई कि, "हे कंस, जिस देवकी को तू प्रेम से ले जा रहा है, उसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।" यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को मारने की योजना बनाई।

देवकी ने कंस से विनती की, "मुझे जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?" कंस ने देवकी की बात मान ली और उन्हें कारागृह में डाल दिया।

श्रीकृष्ण का जन्म और भागना

वसुदेव और देवकी के सात बच्चों की हत्या कंस ने कर दी। अब आठवां बच्चा होने वाला था और कंस ने कारागृह में कड़े पहरे बिठा दिए थे।

इस समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चे की उम्मीद थी। देवकी और वसुदेव के दुखद जीवन को देखकर यशोदा ने आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय सोचा।

जब वसुदेव और देवकी को पुत्र प्राप्त हुआ, उसी समय यशोदा के घर कन्या का जन्म हुआ, जो वास्तव में 'माया' थी। देवकी के कारागार में अचानक एक दिव्य प्रकाश फैल गया और भगवान श्रीकृष्ण ने चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर वसुदेव से कहा, "मैं अब नवजात शिशु का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे अपने मित्र नंदजी के घर भेज दो और वहां जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो।"

श्रीकृष्ण का बचपन और कंस का दंड

वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से बाहर निकलने का साहस किया। यमुना नदी उफनती हुई भी वसुदेव का मार्ग प्रशस्त कर रही थी। वसुदेव ने यशोदा के पास पहुंचकर श्रीकृष्ण को सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा लौट आए।

कंस को सूचित किया गया कि वसुदेव और देवकी के यहाँ पुत्र हुआ है। कंस ने देवकी के हाथ से कन्या को छीनकर पृथ्वी पर फेंकने की कोशिश की, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और बोली, "मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो वृंदावन में पहुंच चुका है। वह जल्द ही तेरे पापों का दंड देगा।"

निष्कर्ष

भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा हमें सिखाती है कि सत्य और धर्म की विजय अंततः असत्य और अधर्म पर होती है। श्रीकृष्ण के जन्म की इस पावन कथा को पढ़कर हम उनकी दिव्यता और न्याय की महिमा को समझ सकते हैं।

आपको और आपके परिवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएँ!


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