"दैणा होयाँ खोली का गणेशा": उत्तराखंड का जागरण गीत - "daina hoyan kholi ka ganesha": uttarakhand ka jagran geet

"दैणा होयाँ खोली का गणेशा": उत्तराखंड का जागरण गीत

परिचय

उत्तराखंड की धरती सदियों से भक्ति, आस्था, और संस्कृतियों की विविधता से समृद्ध रही है। यहाँ के पहाड़ों की गोद में बसे गाँव-गाँव में जो गीत गूंजते हैं, वे हमारी आस्था और परंपराओं के जीवंत प्रमाण हैं। ऐसा ही एक पारंपरिक जागरण गीत है "दैणा होयाँ खोली का गणेशा", जो भगवान गणेश के आह्वान के साथ-साथ समस्त प्रकृति और देवताओं की शक्ति का आह्वान करता है।

गीत का भावार्थ
यह गीत एक जागरण गीत है, जिसमें भगवान गणेश के साथ-साथ प्रकृति के विभिन्न तत्वों, समुद्रों, तीर्थस्थलों, और स्थानीय देवताओं का आह्वान किया जाता है। इस गीत के माध्यम से पहाड़ी समाज अपने ईष्ट देवताओं से आशीर्वाद और जीवन में शुभता की कामना करता है।

गीत के बोल

"दैणा होयाँ खोली का गणेशा हे"
ओ...
ॐ प्रभात को पर्व जाग, गौ-सरूप पृथ्वी जाग,
धरम सरूपी अगा जाग, उदंकारी कान्हा जाग,
भानुपंखी गरुड़ जाग, सप्तलोक जाग, इन्द्रलोक जाग,
मेघलोक जाग, सूर्यलोक जाग, चन्द्रलोक जाग,
तारालोक जाग, पवनलोक जाग, ब्रह्मा का वेद जाग,
गौरी का गणेश जाग, हरो हरो संसार जाग,
जीव जाग, जीवन जाग !

शीर्ष-समुद्र जाग, खारी समुद्र जाग, दूधी समुद्र जाग,
खेराणी समुद्र जाग, घोर समुद्र जाग,
अघोर समुद्र जाग, प्रचंड समुद्र जाग,
सेतुबंद रामेश्वर जाग
हिंयुं हिंवाल्युं जाग, पाणी प्यालूं जाग,
बाला बैजनाथ जाग, धौली देवप्रयाग जाग
हरी को हरिद्वार जाग, काशी विश्वनाथ जाग,
बूढ़ा केदार जाग, भोला सम्भुनाथ जाग

काली कुमों जाग, चोपड़ा चौथान जाग,
खटिंग को लिंग जाग, सोवंती गद्दी जाग

देंणा होंयाँ खोली का गणेसा ऐ,
देंणा होंयाँ मोरी का नारेणा हे,
देंणा होंयाँ भूमी का भुम्याला ऐ,
देंणा होंयाँ पंचनाम देवा हे,
देंणा होंयाँ नौखोली का नाग ऐ,
देंणा होंयाँ नौखंडी नरसिंगा हे

दैणा होया खोली का गणेशा हे
दैणा होया मोरी का नारेणा हे
दैणा होया भूमि का भुम्याला हे
दैणा होया पॉँच नाम देवा हे
दैणा होया नौ खोली का नाग हे
दैणा होया नौखंडी नरसिंघा हे

निष्कर्ष
"दैणा होयाँ खोली का गणेशा" गीत सिर्फ एक भक्ति गीत नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। इस गीत के माध्यम से हमारे पर्वतीय समाज की आस्था, प्रकृति के प्रति सम्मान, और देवताओं के प्रति श्रद्धा प्रकट होती है। यह गीत हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमें याद दिलाता है कि हमारी संस्कृति और परंपराओं की जड़ें कितनी गहरी और पवित्र हैं।


दैणा होयां खोली का गणेश: पहाड़ों की संस्कृति का अमूल्य गीत

"दैणा होयां खोली का गणेश" – ये गीत सुनते ही पहाड़ों की यादें ताज़ा हो जाती हैं। चाहे कोई सांस्कृतिक संध्या हो, कोई मंगल कार्य हो, या फिर यूँ ही पहाड़ों की याद आने पर, नेगी जी की जादुई आवाज़ में इस गीत का सुरों से सजीव होना एक विशेष अनुभव है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि इस गीत में आए शब्दों ‘खोली का गणेश’ और ‘मोरी का नारैण’ का असल अर्थ क्या है?

खोली का गणेश और मोरी का नारैण: पहाड़ों के घरों की आस्था

अगर आप पहाड़ों में पले-बढ़े हैं, तो शायद आप इन शब्दों का महत्व समझते होंगे। लेकिन, यदि आप भी मेरी तरह उन लोगों में शामिल हैं जिनकी पिछली पीढ़ी पहाड़ों से पलायन कर चुकी है, तो संभवतः यह गीत आपके लिए महज एक संगीत होगा, जिसके शब्दों का गहरा अर्थ आप नहीं जानते होंगे।

खोली का गणेश:
पहाड़ों में पारंपरिक घरों की सुंदरता और वास्तुकला अद्वितीय होती है। बड़े-बड़े पत्थरों की पठालों और लकड़ी की नक़्क़ाशीदार तिबरी से सजे ये घर किसी कला से कम नहीं होते। इन घरों का मुख्य द्वार, जहाँ से ऊपरी मंज़िल की सीढ़ियाँ शुरू होती हैं, उसे ‘खोली’ कहा जाता है। इस खोली के द्वार पर गणेश भगवान विराजमान होते हैं, जिन्हें घर के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। गीत में ‘खोली का गणेश’ का उल्लेख इन्हीं भगवान गणेश की ओर इशारा करता है, जो हर शुभ कार्य की शुरुआत में सबसे पहले पूजे जाते हैं।

मोरी का नारैण:
इसी प्रकार, पहाड़ी घरों की खिड़कियों को ‘मोरी’ कहा जाता है। इन मोरियों पर भगवान विष्णु, जिन्हें नारायण भी कहा जाता है, की मूर्तियाँ सजाई जाती हैं। इन नक्काशीदार मोरियों पर विराजमान नारायण का यह उल्लेख गीत में ‘मोरी का नारैण’ के रूप में किया गया है।

दैणा होयां: एक प्रार्थना

गीत में ‘दैणा होयां’ का अर्थ है ‘आप प्रकट हों, आपकी कृपा दृष्टि हम पर बनी रहे’। यह एक प्रार्थना है, जिसमें अपने देवी-देवताओं को पुकारा जाता है कि वे हमेशा अपने भक्तों पर आशीर्वाद बनाए रखें।

गीत के बोल और उनका महत्व

यह गीत न केवल संगीत की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके बोल पहाड़ों की संस्कृति, उनकी आस्थाओं और परंपराओं की गहरी झलक प्रस्तुत करते हैं। इस गीत के माध्यम से हमारी संस्कृति और पूर्वजों की परंपराओं का सम्मान किया जाता है।

गीत के हिंदी बोल:

दैणा होयां खोली का गणेशा हे,  
दैणा होयां मोरी का नारेणा हे।  

दैणा होयां भूमि का भुम्याला हे,  
दैणा होयां पंचनाम देवा हे।  

दैणा होयां नौ खोली का नाग हे,  
दैणा होयां नौखंडी नरसिंघा हे।  

गीत के English/Hinglish Lyrics:

Daina hoya kholi ka Ganesha ye,  
Daina hoya mori ka Nareena ye.  

Daina hoya bhumi ka bhumyaala ye,  
Daina hoya Panchnaama Deva ye.  

Daina hoya No kholi ka Naga ye,  
Daina hoya Nokhandi Narsingha ye.  

निष्कर्ष:

"दैणा होयां खोली का गणेश" गीत पहाड़ों की संस्कृति और जीवनशैली का एक प्रतीक है। इस गीत के माध्यम से हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और इसे सुनकर पहाड़ों की खूबसूरती, संस्कृति, और हमारी पुरानी परंपराओं की याद ताजा हो जाती है। इस गीत के शब्द और अर्थ हमें अपने पूर्वजों की आस्था और उनकी जीवनशैली को समझने का एक मौका देते हैं।

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