गोपाल बाबू गोस्वामी: कुमाऊंनी संगीत का अनमोल रत्न - Gopal Babu Goswami: The Precious Gem of Kumaoni Music
गोपाल बाबू गोस्वामी: कुमाऊंनी संगीत का अनमोल रत्न
प्रभाग में काम करते हुए उन्होंने कुमाऊंनी गीत गाने शुरू किए और जल्द ही अपनी मधुर आवाज के दम पर चर्चित हो गए। आकाशवाणी लखनऊ में अपनी स्वर परीक्षा देने के बाद उनका पहला गीत "कैलै बजै मुरूली ओ बैणा" आकाशवाणी नजीबाबाद और अल्मोड़ा से प्रसारित हुआ, जो अत्यंत लोकप्रिय हुआ।
गोपाल बाबू ने न केवल कुमाऊंनी लोकगीतों को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया, बल्कि उन्होंने लोकगाथाओं जैसे मालूशाही और हरूहीत को भी संजोया। उनके गाए अधिकांश गीत स्वरचित थे, जो सामाजिक चेतना और पहाड़ों के जीवन को प्रदर्शित करते थे।
- बेड़ू पाको बारमासा
- घुगुती न बासा
- कैलै बजै मुरूली
- हाये तेरी रुमाला
- हिमाला को ऊँचा डाना
- भुर भुरु उज्याव हैगो
गोपाल बाबू गोस्वामी का कार्यक्षेत्र
1970 में, उत्तर प्रदेश राज्य के गीत और नाट्य प्रभाग की एक टीम अल्मोड़ा के चखुटिया तहसील में एक कार्यक्रम के लिए आई थी। उनकी प्रतिभा ने इस टीम के सदस्यों को इतना प्रभावित किया कि उन्हें नैनीताल के गीत-संगीत प्रभाग में भर्ती होने का सुझाव मिला।
1971 में, गोस्वामी जी को नैनीताल में गीत संगीत नाट्य प्रभाग में नियुक्ति मिल गई, जहाँ से उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने कुमाऊनी गीतों को मंच पर गाना शुरू किया और धीरे-धीरे कुमाऊनी लोकगीतों में अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी आवाज़ का जादू लोगों के दिलों में बस गया, और इस दौरान उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ से भी अपने गीतों को स्वर देना शुरू किया।
उनका पहला गीत "कैले बाजे मुरली" आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित हुआ, जिसने उन्हें घर-घर में प्रसिद्ध कर दिया। 1976 में HMV कंपनी ने उनका पहला कैसेट जारी किया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ।
प्रमुख गीत और रचनाएँ
गोपाल बाबू गोस्वामी के गीत उत्तराखंड की प्रकृति, नारी सौंदर्य, विरह और प्रेम को अपने में समेटे हुए हैं। उनके अधिकांश गीत खुद के लिखे हुए होते थे, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाते थे। उनके प्रमुख गीतों में शामिल हैं:
- कैले बाजे मुरली ओ बैणा
- बेडू पाको बारामासा
- हिमाला को
- भुर भुरू उज्याव हैगो
- मी बरमचारी छुं
- जा चेली जा सौरास
- छैला वे मेरी छबीली
- घुघूती ना बासा
- हाई तेरो रुमाला
- रुपसा रमोति घुँगुर न बजा छम
- गोपुली
- राजुला मालूशाही
- जय मैया दुर्गा भवानी
इनके गीतों में न सिर्फ उत्तराखंड की माटी की महक है, बल्कि वह सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश को भी संजोए हुए हैं। उनके द्वारा रचित राजुला मालूशाही, हरू हीत, और रामी बौराणी जैसी लोकगाथाएं भी बेहद प्रसिद्ध हुईं।
“घुगुती न बासा, म्यारा पहाड़ की याद दिलाई छु”
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें