हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान - हिमालय दिवस पर एक चिंतन - Our Mountain Darkan Lagyan - A Reflection on Himalaya Day

हिमालय दिवस पर बधाई और पहाड़ की बिगड़ती स्थिति


कविता:

हमारा पापो के दाज्यू ढोई-ढोई बैर
हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान ....
हवा पानी फल फूल किनै दी उनुअलै
भलि कै खकोली दिया पहाड़ हामीण

कर्म हमारा दाज्यू फरकन लाग्यान
हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान ....
कैले निकालि ढुङ्गा, कवै लिगो बजरी
देखि हाम चुप रयां, हाम रयां पसरी


रुख डाला बौट लै हडपन लाग्यान
हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान ....
जौ बाटो गंगा ज्यू को, घेरि बनाया घर
चुमास बगा लिगै, किछयो और तर


जानवर पंछी सब तडपन लाग्यान
हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान ....
सब हाम सी रयां, छुं हाम नीन मे
नै पांच में पचास मे, नै हाम तीन मे


"राजू" पहाड़ तरसन लाग्यान
हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान ....
हमारा पापो के दाज्यू ढोई-ढोई बैर
हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान ....


अर्थ और विश्लेषण:

"हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान" कविता में हिमालय की स्थिति और उसकी बिगड़ती स्थिति को दर्शाया गया है। यह कविता हिमालय दिवस के अवसर पर एक संवेदनशील संदेश देती है, जो पहाड़ की बिगड़ती स्थिति और उसके कारणों पर प्रकाश डालती है।

1. पहाड़ की बिगड़ती स्थिति:

  • कविता में पहाड़ की बिगड़ती स्थिति का चित्रण किया गया है, जहां पर्यावरणीय क्षति और खनन गतिविधियों के कारण पहाड़ टूट रहा है। यह पर्यावरणीय और सामाजिक संकट को उजागर करता है।

2. खनन और पर्यावरणीय प्रभाव:

  • खनन गतिविधियों और प्रकृति के शोषण का उल्लेख करते हुए, कविता दर्शाती है कि कैसे पहाड़ की प्राकृतिक संसाधनों की अनदेखी की जा रही है। यह बुनियादी संसाधनों के नुकसान और उनके नकारात्मक प्रभावों को रेखांकित करता है।

3. पर्यावरणीय अनदेखी और समस्याएँ:

  • कविता में पर्यावरणीय अनदेखी के परिणामस्वरूप जानवरों और पक्षियों की स्थिति का भी जिक्र है, जो पहाड़ की बिगड़ती स्थिति से प्रभावित हो रहे हैं। यह कवि की चिंता को दर्शाता है कि प्राकृतिक जीवन और पारिस्थितिक तंत्र को कितना नुकसान हो रहा है।

4. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव:

  • कविता में समाज और व्यक्तिगत दृष्टिकोण से पहाड़ की स्थिति की चिंता व्यक्त की गई है, जिसमें लोगों के मनोबल और स्थानीय जीवन की समस्याओं का उल्लेख है।

Keywords:

  • हिमालय दिवस
  • पर्यावरणीय संकट
  • पहाड़ की बिगड़ती स्थिति
  • खनन और प्राकृतिक संसाधन

"हमारा पहाड़ दरकन लाग्यान" कविता के माध्यम से राजू पाण्डेय ने पहाड़ की बिगड़ती स्थिति और उसके पर्यावरणीय प्रभावों को गहराई से चित्रित किया है। यह कविता हिमालय दिवस पर एक महत्वपूर्ण संदेश देती है, जो प्रकृति और उसके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को दर्शाती है।

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