बोडान मारी फाळ
प्रस्तावना
यह कविता "बोडान मारी फाळ" पहाड़ी जीवन के संघर्ष और हास्य को दर्शाती है। इसमें एक बौडा (गाय) और बाग (चालाक जानवर) के बीच की मजेदार बातचीत को प्रस्तुत किया गया है। इस कविता के माध्यम से पहाड़ी संस्कृति और जीवन के अनूठे अनुभवों को साझा किया गया है।
कविता: बोडान मारी फाळ
रुमक की बात छ, बौडा पिलौणु थौ भैन्सि,
कखिन आई बाग, ऊ बौडा का मुख फर हैन्सि।
फिर क्या थौ बौडा, झट्ट भीतर भागी,
ल्ह्याई बन्दूक अपणी, बाग फर गोळी दागी।
गोळी बाग फर त नि लगि,
पर चोट सुणिक बौडी,
भ्वीं मा लमसठ व्हैगि,
छक्की छकिक अफुमा रवैगि।
वीन समझी बौडा आज बागन ख्यलि,
नाक फर फूली पैनौ कू भाड़ु करयाली।
बौडा झट्ट बोडी का पास गै,
न रो हे चुचि, मैं ठीक ठाक छौं।
नि खयौं मैं बागन,
बचिग्यौं तेरा सौं,
अब तू होश मा औ,
ह्वै सकु त, स्वाळा पकोड़ा बणौ।
कविता का विश्लेषण
यह कविता न केवल हास्य प्रदान करती है, बल्कि पहाड़ी जीवन की वास्तविकताओं को भी उजागर करती है। बौडा और बाग की बातचीत से यह स्पष्ट होता है कि पहाड़ी लोग अपनी समस्याओं का सामना कैसे करते हैं, और किस प्रकार हास्य और समझदारी का सहारा लेकर कठिनाइयों को पार करते हैं।
निष्कर्ष
इस कविता को पढ़कर हमें यह समझ में आता है कि पहाड़ी संस्कृति में किस तरह के मजेदार किस्से और जीवन के अनुभव होते हैं। यह हमें अपने आसपास की संस्कृति और परंपराओं को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।
आपके विचार:
क्या आपने कभी पहाड़ी जीवन में ऐसे मजेदार अनुभव किए हैं? अपने विचार और अनुभव साझा करें और इस कविता को अपने दोस्तों और परिवार के साथ बांटें!
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