उत्तराखंड राज्य के संघर्ष और गठन का संक्षिप्त इतिहास - A brief history of the struggle and formation of the state of Uttarakhand.

उत्तराखंड राज्य के संघर्ष और गठन का संक्षिप्त इतिहास

उत्तराखंड के गठन की यात्रा संघर्ष और बलिदान की कहानी है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर पृथक राज्य बनने तक कई महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएं इस यात्रा का हिस्सा रही हैं। इस राज्य की पहचान न केवल इसके प्राकृतिक सौंदर्य से है बल्कि यहां के लोगों के अदम्य साहस और संघर्ष से भी है। आइए संक्षेप में उत्तराखंड राज्य के संघर्ष से गठन तक की महत्वपूर्ण तिथियों और घटनाओं को समझते हैं।

1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उत्तराखंड (1913)

1913 में कांग्रेस के अधिवेशन में उत्तराखंड के कई प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस समय उत्तराखंड में अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिए "टम्टा सुधारिणी सभा" का गठन हुआ, जो बाद में "शिल्पकार महासभा" के रूप में उभरा।

2. कुमाऊं परिषद की स्थापना (1916)

सितंबर 1916 में हरगोविंद पंत, गोविंद बल्लभ पंत, बदरी दत्त पांडे, और अन्य युवा नेताओं ने कुमाऊं परिषद की स्थापना की। इसका उद्देश्य उत्तराखंड की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान करना था। इस परिषद ने 1926 तक कई सामाजिक सुधार किए और राजनीतिक उद्देश्य भी हासिल किए।

3. कुमाऊं परिषद का कांग्रेस में विलय (1926)

1926 में कुमाऊं परिषद का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय कर दिया गया। इसके बाद उत्तराखंड के मुद्दे कांग्रेस के माध्यम से राष्ट्रीय पटल पर आने लगे।

4. पंडित नेहरू का समर्थन (1938)

मई 1938 में श्रीनगर (गढ़वाल) में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों के संघर्ष का समर्थन किया और अपनी परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने की बात कही।

5. पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा (1940)

1940 में हल्द्वानी सम्मेलन में बदरी दत्त पांडे ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा देने की मांग की। इसके साथ ही अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊं और गढ़वाल को एक पृथक इकाई के रूप में गठित करने की मांग रखी।

6. फजल अली आयोग की सिफारिश (1955)

1955 में फजल अली आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र को एक पृथक राज्य के रूप में गठित करने की सिफारिश की।

7. उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना (1979)

उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) की स्थापना 24 जुलाई 1979 को मसूरी में हुई। यह दल पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष का नेतृत्व करने लगा।

8. उत्तराखंड आंदोलन (1994)

1994 में छात्रों ने उत्तराखंड राज्य और आरक्षण के लिए बड़ा आंदोलन किया। इस दौरान मुलायम सिंह यादव के उत्तराखंड विरोधी बयानों ने आंदोलन को और तेज कर दिया। पुलिस फायरिंग की घटनाओं में मसूरी और खटीमा में कई लोग मारे गए। इस घटना ने उत्तराखंड आंदोलन को और उग्र बना दिया। 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में बड़ा प्रदर्शन किया गया, जिसमें हजारों उत्तराखंडी शामिल हुए।

9. मुजफ्फरनगर कांड (1994)

उत्तराखंड के आंदोलनकारी जब दिल्ली जा रहे थे, तब मुजफ्फरनगर में पुलिस द्वारा उन पर अत्याचार किया गया। पुलिस ने गोलियां चलाईं और महिलाओं के साथ बदसलूकी की। इस घटना के बाद आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया।

10. उत्तराखंड के लिए संघर्ष (1996-1998)

15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने लाल किले से उत्तराखंड राज्य की घोषणा की। इसके बाद 1998 में भाजपा गठबंधन सरकार ने उत्तरांचल विधेयक प्रस्तुत किया।

11. उत्तराखंड राज्य का गठन (2000)

27 जुलाई 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा में पेश किया गया, जिसे 1 अगस्त 2000 को लोकसभा और 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा ने पारित किया। 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) राज्य का गठन हुआ।

इस प्रकार उत्तराखंड के संघर्ष और बलिदान की लंबी यात्रा 9 नवंबर 2000 को सफलतापूर्वक समाप्त हुई, और उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना।

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