जमानु अगने बडणु
प्रस्तावना
“जमानु अगने बडणु” एक सामाजिक-राजनीतिक कविता है, जो समय के परिवर्तन और मानवता के विकास पर ध्यान केंद्रित करती है। यह कविता न केवल वर्तमान की सच्चाइयों को उजागर करती है, बल्कि हमारी जीवनशैली में आए परिवर्तनों को भी रेखांकित करती है।

जमानु अगने बडणु
जमानु अगने बडणु,
पैलित गिरगिट रंग बदलदु थो,
पर अब मनखी रंग बदलणु।
पैलित खाणा बणोणक चुल्ला जगदा था,
अब चुल्लू ही खाणक भगणु।
जमानु अगने बडणु।
पैलित धारों मा पाणी रेंदू थो,
अब धारू पाणी छ खोजणु।
जमानु अगने बडणु।
पैलित पैणाक स्कूल चलदा था,
अब स्कूल पैणाक चलणु।
जमानु अगने बडणु।
पैलित गाडो मा घट रिंगदा था,
अब घट गाडो मा रिगुणु।
जमानु अगने बडणु।
पैलित विकास तें नेता बाणोदा था,
अब विकास नेतोक तें लगणु।
जमानु अगने बडणु।
विश्लेषण
यह कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे समाज के मूल्य और प्राथमिकताएं बदल रही हैं। जहां पहले मानवता और विकास की दिशा में सकारात्मक परिवर्तन हो रहे थे, वहीं आज हम विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
निष्कर्ष
“जमानु अगने बडणु” एक चेतावनी है, जो हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपनी संस्कृति, परंपराओं और नैतिक मूल्यों को संजोकर रखना चाहिए। समय चाहे कितना भी बदल जाए, हमें अपनी पहचान नहीं भूलनी चाहिए।
आपके विचार:
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