लालटेन-लैम्प युग - Lantern-lamp era

लालटेन-लैम्प युग

लालटेन : कभी हर एक घर में रोशनी का जरिया थी, अब इसका शीशा भी ढूंढे न मिलेगा

भाइयों किसी जमाने में लालटेन बड़े काम की चीज रही है। यह भारत की आजादी की लड़ाई की साक्षी रही है तो वहीं महापुरूषों से लेकर राजनेताओं तक को दिशा दे चुकी है। गांव में किसान को अपने खेत में रोशनी दिखाने का काम किया है तो घर पर पशुओं को चारा खिलाने के लिए रोशनी दिखाने का काम किया है । न जाने कितने कवियों, लेखकों ने इसकी रोशनी में ही साहित्य सृजन की नई बुलंदियों को छुआ है। वहीं कितने विद्यार्थियों और युवाओं ने इसकी ज्योति में शिक्षा ग्रहण करके देश के उच्च पदों को सुशोभित किया है।

उत्तराखंड, जिसे हम अपनी प्राकृतिक सुंदरता और संस्कृति के लिए जानते हैं, आज एक गंभीर संकट का सामना कर रहा है। "लालटेन-लैम्प युग" कविता में इस संकट को बखूबी बयान किया गया है। यह कविता हमें बताती है कि कैसे आधुनिकता के इस युग में भी हम अपने अतीत की ओर लौटने को मजबूर हो गए हैं।


कविता: लालटेन-लैम्प युग

भावार्थ:
कवि ने उत्तराखंड के वर्तमान संकट को बेहद संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है। बारिश की तबाही, नदियों का उफान, और संचार के साधनों की कमी जैसी समस्याएं इस कविता के प्रमुख विषय हैं। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि विकास के इस युग में भी हम कैसे प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे हैं।


कविता के अंश:

हमारा उत्तराखंड,
कल्पित ऊर्जा प्रदेश,
आज अँधेरे में डूबा है,
क्योंकि, पहाड़ पर पानी,
रौद्र रूप धारण करके,
बरस रहा है बरसात में.

ऊफान पर हैं नदियाँ,
दरक रहे हैं पहाड़,
विनाश का मंजर,
निहार कर पर्वतजन,
हो रहे हैं हताश.

किसी के टूट रहे हैं घर,
पहाड़ का टूट गया है,
सड़क संपर्क,
संचार का साधन,
खामोश हैं मोबाइल यन्त्र,
बिना चार्जिंग के.

नहीं हो पा रहा है,
प्रवासी उत्तराखंडियौं का,
स्वजनों से संपर्क,
आज पहाड़ पुराने,
"लालटेन-लैम्प युग" में,
लौट आया है २१वीं सदी में.


प्राकृतिक आपदाएँ और उनका प्रभाव

कविता में वर्णित प्राकृतिक आपदाएँ सिर्फ उत्तराखंड की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक गंभीर चुनौती हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से हम सभी प्रभावित हो रहे हैं। इस संकट के समय में, हमें एकजुट होकर अपनी प्रकृति और संसाधनों की रक्षा करनी होगी।

निष्कर्ष

"लालटेन-लैम्प युग" कविता हमें यह याद दिलाती है कि विकास और तकनीक के बावजूद, हम अपनी जड़ों से जुड़ाव बनाए रखें। यह समय है एक-दूसरे की मदद करने का और अपनी धरती की रक्षा करने का।

आपके विचार:
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