महिषासुर मर्दिनी स्तुति: माँ दुर्गा की महिमा - Mahishasur Mardini Stuti: Glory of Maa Durga

महिषासुर मर्दिनी स्तुति: माँ दुर्गा की महिमा

माँ दुर्गा, जो महिषासुर मर्दिनी के रूप में जानी जाती हैं, की स्तुति हर श्रद्धालु की जुबान पर होती है। उनकी महिमा का वर्णन इस स्तुति में किया गया है, जो भक्तों को उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा से भर देती है। इस स्तुति में माँ दुर्गा की विशेषताओं, शक्तियों और उनके द्वारा दी गई आशीर्वाद की बात की गई है।

स्तुति का अर्थ और महत्व

१. हिमालाय की कन्या

अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१।।

अर्थ: हे हिमालाय की कन्या, विश्व को आनंद देने वाली, नंदी गणों द्वारा नमस्कृत, और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

२. दुर्धर असुरों का नाशक

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दानुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२।।

अर्थ: देवों को वरदान देने वाली और दुर्धर असुरों को नष्ट करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

३. जगत् माँ का प्रेम

अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते।
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते।।
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।३।।

अर्थ: हे जगतमाता, प्रेम से कदम्ब वन में निवास करने वाली, और मधु-कैटभ का नाश करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

४. शत्रुओं पर विजय

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।।
निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।४।।

अर्थ: शत्रुओं के हाथियों की सूंड काटने वाली और चण्ड-मुंड के शीशों को काटने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

५. रणभूमि की देवी

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते।
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रथमाधिपते।।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।५।।

अर्थ: रण में मदोन्मत्त शत्रुओं का वध करने वाली और शक्तियों की धारण करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

६. भक्ति की देवी

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे।
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे।।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिनकरे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥६।।

अर्थ: शरणागतों को अभयदान देने वाली और त्रिशूल धारण करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

७. धूम्रलोचन का नाशक

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।७।।

अर्थ: मात्र अपनी हुंकार से धूम्रलोचन राक्षस को भस्म करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

८. युद्धभूमि की विजेता

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके।
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्वहुरङ्ग रटद्बटुके।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।८।।

अर्थ: युद्धभूमि में धनुष के साथ चमकने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

९. दिव्य नृत्य की देवी

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते।
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।९।।

अर्थ: देवांगनाओं के संग नृत्य करने वाली माँ दुर्गा की जय हो।

१०. स्तुति की देवी

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते।
झणझणझिझिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१०।।

अर्थ: जय जयकार करने और स्तुति करने वाले समस्त विश्व के द्वारा नमस्कृत,अपने नूपुर के झण-झण और झिम्झिम शब्दों से भूतपति महादेव को मोहित करने वाली,नटी-नटों के नायक अर्धनारीश्वर के नृत्य से सुशोभित नाट्य में तल्लीन रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो,जय हो,जय हो।

मां महिषासुरमर्दिनी स्रोत: सारांश

जय मा दुर्गा! इस स्तुति में मां दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है, जो शेर पर सवार होकर दानव महिषासुर का वध करती हैं। यह स्रोत शक्ति, वीरता और मातृत्व के प्रतीक के रूप में मां दुर्गा की आराधना करता है।

मुख्य अंश:

  1. गुणों का वर्णन: स्तुति में मां दुर्गा को "गिरिनन्दिनि," "विश्वविनोदिनि," और "भगवति" जैसे विभिन्न नामों से संबोधित किया गया है, जो उनकी महानता और सौम्यता को दर्शाते हैं।
  2. शक्ति और विजय: मां दुर्गा की शक्ति का उल्लेख करते हुए, उनके द्वारा दुष्टों और असुरों का नाश करने की क्षमता की प्रशंसा की गई है। यह दर्शाता है कि वे सभी प्रकार की बाधाओं को दूर कर सकती हैं।
  3. सांस्कृतिक संदर्भ: स्रोत में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का संदर्भ दिया गया है, जैसे कि काली, भवानी, और अन्य शक्तिशाली रूप, जो उनकी विविधता और महानता को दर्शाते हैं।
  4. भक्ति की भावना: भक्तिपूर्ण स्वर में, स्तुति मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद की याचना करती है, जिसमें वे अपने भक्तों को सुरक्षा और शक्ति प्रदान करने के लिए प्रेरित करती हैं।

इस प्रकार, "महिषासुरमर्दिनी स्रोत" मां दुर्गा के प्रति भक्ति और श्रद्धा का एक सुंदर उदाहरण है, जो उनके अद्वितीय गुणों और शक्तियों का उल्लेख करते हुए भक्ति और समर्पण की भावना को प्रकट करता है।

जय माता दी!

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का महत्व

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति में साहस और आत्मविश्वास का संचार होता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान देवी पूजा में महत्वपूर्ण माना जाता है। देवी दुर्गा के इस रूप को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।


श्लोक और उनका अर्थ

11. सुमनःसुमनःसुमनः

श्लोक:

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते।
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।। ११।।

अर्थ:
हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम आकर्षक कान्ति और सुंदरता से युक्त हो। तुम्हारे काले भंवरों के सामान नेत्र हैं, जो चंद्र देव की आभा को फीका कर देते हैं। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


12. समेतमहाहव मल्लमतल्लिक

श्लोक:

समेतमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते।
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।। १२।।

अर्थ:
हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम युद्ध में निपुण योद्धाओं के साथ हो, जैसे चमेली के पुष्पों में कोमलता हो। तुम्हारी मुस्कान उषाकाल के सूर्य के समान है। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


13. अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर

श्लोक:

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते।
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।। १३।।

अर्थ:
हे देवी, तुम उन गजेश्वरी के समान हो जिनसे अविरल मद बहता है। तुम तीनों लोकों के आभूषण और सुंदरता की स्रोत हो। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


14. कमलदलामल कोमलकान्ति

श्लोक:

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते।
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।।
अलिकुलसकुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्वकुलालिकुले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।। १४।।

अर्थ:
हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारा मस्तक कमल पंखुड़ियों के समान है, और तुम सभी कलाओं की जननी हो। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


15. करमुरलीरव वीजितकूजित

श्लोक:

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते।
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।। १५।।

अर्थ:
तुम्हारे हाथ की मुरली से निकलने वाली ध्वनि से कोयल भी लज्जित होती है। तुम पुलिंद जनजाति की स्त्रियों के साथ मनोहर गीत गाती हो। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


स्तोत्र का पाठ कैसे करें

  1. स्थान: शुद्ध और पवित्र स्थान पर बैठें।
  2. स्नान करें: स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।
  3. दीप जलाएं: देवी के चित्र या मूर्ति के सामने दीप जलाएं।
  4. फूल चढ़ाएं: देवी को फूल चढ़ाएं और उनसे आशीर्वाद मांगें।
  5. स्तोत्र का पाठ: ध्यानपूर्वक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करें।
  6. आरती: अंत में देवी की आरती करें और प्रसाद बांटें।

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र: स्तुति और अर्थ

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र देवी दुर्गा की महिमा को गाने वाला एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसमें देवी की शक्ति, सौंदर्य और उनकी भक्ति का वर्णन किया गया है। इस ब्लॉग में हम इस स्तोत्र के विभिन्न श्लोकों और उनके अर्थ पर चर्चा करेंगे।


श्लोक 16

श्लोक:

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे।
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।

अर्थ:
जिनकी चमक से चन्द्रमा की रौशनी फीकी पड़ जाए ऐसे सुन्दर रेशम के वस्त्रों से जिनकी कमर सुशोभित है, देवताओं और असुरों के सर झुकने पर उनके मुकुट की मणियों से जिनके पैरों के नाखून चंद्रमा की भाति दमकते हैं और जैसे सोने के पर्वतों पर विजय पाकर कोई हाथी मदोन्मत होता है वैसे ही देवी के वक्ष स्थल कलश की भाँति प्रतीत होते हैं। ऐसी हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


श्लोक 17

श्लोक:

विजितसहसकरेक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते।
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।

अर्थ:
सहस्रों (हजारों) दैत्यों के सहस्रों हाथों से सहस्रों युद्ध जीतने वाली और सहस्रों हाथों से पूजित, सुरतारक (देवताओं को बचाने वाला) उत्पन्न करने वाली, उस तारकासुर के साथ युद्ध कराने वाली, राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य की भक्ति से समान रूप से संतुष्ट होने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


श्लोक 18

श्लोक:

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।

अर्थ:
जो भी तुम्हारे दयामय पद कमलों की सेवा करता है, हे कमला! (लक्ष्मी) वह व्यक्ति कमलानिवास (धनी) कैसे न बने? हे शिवे! तुम्हारे पदकमल ही परमपद हैं। उनका ध्यान करने पर भी परम पद कैसे नहीं पाऊंगा? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


श्लोक 19

श्लोक:

कनकलसत्कलसिन्धुजलेरनुषिञ्चति ते गुणरङ्गभुवम्।
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।

अर्थ:
सोने के समान चमकते हुए नदी के जल से जो तुम्हें रंग भवन में छिड़काव करेगा, वो शची (इंद्राणी) के वक्ष से आलिंगित होने वाले इंद्र के समान सुखानुभूति क्यों न पायेगा? हे वाणी! (महासरस्वती) तुममें मांगल्य का निवास है, मैं तुम्हारे चरण में शरण लेता हूँ। हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


श्लोक 20

श्लोक:

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते।
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।

अर्थ:
तुम्हारा निर्मल चन्द्र समान मुख चन्द्रमा का निवास है जो सभी अशुद्धियों को दूर कर देता है, नहीं तो क्यों मेरा मन इंद्रपुरी की सुन्दर स्त्रियों से विमुख हो गया है? मेरे मत के अनुसार तुम्हारी कृपा के बिना शिव नाम के धन की प्राप्ति कैसे संभव हो सकती है? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


श्लोक 21

श्लोक:

अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयेव त्वया भवितव्यमुमे।
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासि रते।
यदुचितमत्र भवत्पुररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।

अर्थ:
हे दीनों पर दया करने वाली उमा! मुझ पर भी दया कर ही दो, हे जगत जननी! जैसे तुम दया की वर्षा करती हो, वैसे ही तीरों की वर्षा भी करती हो, इस लिए इस समय जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा करो, मेरे पाप और ताप दूर करो। हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


निष्कर्ष

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र देवी दुर्गा की महिमा का गान करता है और भक्तों को शक्ति और साहस प्रदान करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता और आत्मविश्वास का संचार होता है। सभी भक्तों को इस स्तोत्र का श्रवण और पाठ अवश्य करना चाहिए।

जय महिषासुर मर्दिनी! 🌼

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