पहाड़ का पंछी
प्रस्तावना
"पहाड़ का पंछी" एक सुंदर कविता है जो पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता, वहां के जीवन, और पहाड़ी संस्कृति को दर्शाती है। कवि ने अपने अनुभवों के माध्यम से पहाड़ों की खूबसूरती और वहां की प्रकृति के प्रति अपनी गहरी भावनाएँ व्यक्त की हैं।
कविता: पहाड़ का पंछी
कवि ने देखा पेड़ के ऊपर,
बैठि एक हिल्वांस,
कैसे है बास रही,
हो रहा सुखद अहसास।
बांज बुरांश का जंगल है,
बह रही है बयार,
ठंडी हवा में झूम रहे,
दूर दूर देवदार।
प्रकृति का सुखद नजारा,
लग रही है ठण्ड,
चित्रण कर रहा कवि,
जहाँ हैं उत्तराखण्ड।
हिंवाळि काँठी दिख रही,
मारी आपस में अंग्वाळ,
देखना हो कवि मित्रों,
चलो कुमौं अर् गढ़वाळ।
अब बताता हूँ वो पंछी,
गा रहा मीठा गीत,
कानों में है गूँज रहा,
मधुर शैल संगीत।
कल्पना में देख रहा हूँ,
अपना प्यारा पहाड़,
"पहाड़ का पंछी" उड़ रहा,
जहाँ हैं जंगल झाड़।
शहरी जीवन भोग रहे,
मन में है एक आस,
बद्रीनाथ जी कब दूर होगा,
कठिन दुखद प्रवास।
पहाड़ प्रेम में डूबा,
कसक में कवि "जिज्ञासू"
आये याद पहाड़ की,
मत बहाना आंसू।
कविता का विश्लेषण
इस कविता में कवि ने पहाड़ों की सुंदरता और वहां के जीवन की सजीव तस्वीर पेश की है। पेड़-पौधे, बयार, और पहाड़ी पंछी की मधुर आवाज़ों के माध्यम से कवि ने हमें प्रकृति के करीब लाने की कोशिश की है। यह कविता शहरी जीवन की व्यस्तता में खोए हुए लोगों को पहाड़ों की याद दिलाती है और उन्हें अपने मूल स्थान की ओर लौटने के लिए प्रेरित करती है।
निष्कर्ष
"पहाड़ का पंछी" एक भावुक कविता है जो पहाड़ों की खूबसूरती और वहां के जीवन को उजागर करती है। यह कविता हमें याद दिलाती है कि प्रकृति से जुड़े रहना और अपने संस्कृति का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है।
आपके विचार:
क्या आप भी पहाड़ों की खूबसूरती को महसूस करते हैं? अपने अनुभव साझा करें और इस कविता को अपने दोस्तों के साथ बांटें!
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