खड़ु उठा धौं लाठ्याळौं
प्रस्तावना
"खड़ु उठा धौं लाठ्याळौं" एक भावपूर्ण कविता है, जो जीवन की कठिनाइयों, संघर्ष और उम्मीदों को दर्शाती है। इसमें कवि ने जागरूकता और प्रयास की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि हम अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ सकें।

कविता: खड़ु उठा धौं लाठ्याळौं
खड़ु उठा धौं लाठ्याळौं, कनु द्वफरु ह्वैगि?
तुमुतैं त अजौं रातै पड़ी छ।
लोग त कनु कै वक्त ऊठितैं, चंद्रलोक तक पौन्छिग्यन!
अर तुम ए द्वफरा तक-फसोरि तैं स्ययाँ छैं।
दुनियाँ का लोग त रत्ब्वाणि मा ऊठिक-
बतेरा काम करिग्यन, अग्नै पौन्छग्यन।
अर तुम ए अपणा कोदा/झंगोरा देखि तैं खुश ह्व्वयां छैं।
दुनियाँ तैं देखा ऊ क्या कन्यां छन, कख जाण्या छन।
तुम भि ऊँ छौंपणैं कोशिस करा।
नींत छूटि जैल्या-पिछ्ड़्यां का पिछ्ड़्यां।
पढै-लिखै का ऊज्याला सी खूब देखा,
अर तब चला रास्ता फुंडु-सरासर।
पौंछी जैल्या दुनियाँ की तरौं-
स्वर्ग की सीड़्यौं जथैं, विकास का रस्ती तिर्प।
सुख का कोणा जथैं, खुशि का तप्पड़ जथैं।
कविता का विश्लेषण
इस कविता में कवि ने समाज के विभिन्न पहलुओं को छुआ है। वह यह दर्शाता है कि कई लोग अपने सपनों की ओर बढ़ने के लिए संघर्ष करते हैं, जबकि कुछ लोग अभी भी अपनी सोच में उलझे हुए हैं। यहाँ एक सवाल उठाया गया है कि क्या हम अपने लक्ष्यों की ओर आगे बढ़ रहे हैं या नहीं। कवि ने यह भी बताया है कि यदि हम प्रयास करें, तो हम सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष
"खड़ु उठा धौं लाठ्याळौं" कविता हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने प्रयासों को जारी रखना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। यह जीवन की कठिनाइयों को सहते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
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