अस्कोट-आराकोट यात्रा और कामरेड गोविंद सिंह रावत: कोसा गांव की गौरवगाथा - Askot-Arakot Yatra and Comrade Govind Singh Rawat: The glorious story of Kosa village
अस्कोट-आराकोट यात्रा और कामरेड गोविंद सिंह रावत: कोसा गांव की गौरवगाथा
जोशीमठ से नीति के मुख्य मार्ग पर स्थित कोसा गांव न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसे कामरेड गोविंद सिंह रावत जैसे अद्वितीय व्यक्तित्व का जन्मस्थान होने का गौरव भी प्राप्त है। हाल ही में, अस्कोट-आराकोट यात्रा अभियान के यात्रियों ने पहली बार इस गांव का दौरा किया। मुझे भी इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
गांववासियों द्वारा यात्रियों का किया गया भव्य स्वागत और उनके चेहरे पर गांव के गौरव के प्रति गर्व का भाव, इस गांव की विशिष्टता को और अधिक उजागर करता है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम कामरेड गोविंद सिंह रावत के जीवन, संघर्ष और उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।
कामरेड गोविंद सिंह रावत: एक प्रेरणादायक जीवन
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
23 जून 1935 को चमोली जिले के कोसा गांव में श्रीमती चंद्रा देवी और श्री उमराव सिंह रावत के घर जन्मे गोविंद सिंह का बचपन कठिनाइयों से भरा था। मात्र चार वर्ष की आयु में अपनी मां को खोने के बाद उन्होंने प्राथमिक शिक्षा गांव में और आठवीं तक की पढ़ाई नंदप्रयाग में पूरी की।
उनके पिता चाहते थे कि वह तिब्बत के साथ व्यापार करें, लेकिन गोविंद सिंह का रुझान शिक्षा की ओर था। उन्होंने पौड़ी गढ़वाल के बुआखाल में मेस्मोर इंटर कॉलेज से 10वीं पास की और 15 रुपये महीने की नौकरी करते हुए इंटर की पढ़ाई पूरी की।
स्वतंत्रता सेनानियों से प्रभावित जीवन
पौड़ी में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात कामरेड चंद्रसिंह गढ़वाली और अन्य क्रांतिकारी नेताओं से हुई। उनके विचारों ने गोविंद सिंह के जीवन को नई दिशा दी। समाज के प्रति जिम्मेदारी और जनहित के लिए कुछ करने का जुनून उनके भीतर पनपने लगा।
राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में प्रवेश
सन् 1969 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ज्वाइन की और जनता की समस्याओं को हल करने के लिए संघर्षरत हो गए।
ब्लॉक प्रमुख के रूप में जनसेवा
2 फरवरी 1973 को वह जोशीमठ विकासखंड के पहले ब्लॉक प्रमुख चुने गए। इस दौरान उन्होंने मलारी सड़क मार्ग निर्माण में मुआवजा दिलाने और वन संरक्षण जैसे मुद्दों पर जोर दिया। उनके नेतृत्व ने नीति घाटी और आसपास के गांवों में सामाजिक चेतना का प्रसार किया।
चिपको आंदोलन में अहम भूमिका
1973 में रैणी गांव के जंगलों को काटने के विरोध में शुरू हुए चिपको आंदोलन के पीछे गोविंद सिंह रावत का बड़ा योगदान था।
- उन्होंने गांव-गांव जाकर "लिपटो, झपटो और चिपको" का संदेश दिया और पर्यावरण संरक्षण का अलख जगाया।
- उनके प्रयासों ने गौरा देवी और रैणी गांव की महिलाओं को संगठित किया, जिनके अद्वितीय साहस ने चिपको आंदोलन को सफल बनाया।
अन्य संघर्ष और उपलब्धियां
- 1980 में वन अधिनियम के विरोध में उन्होंने जनता का नेतृत्व किया।
- 1988 में दोबारा जोशीमठ के ब्लॉक प्रमुख बने और 1996 तक इस पद पर रहे।
- उन्होंने उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
गोविंद सिंह रावत का अद्वितीय व्यक्तित्व
कामरेड गोविंद सिंह रावत ने अपनी सफलता को कभी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं भुनाया। उनका साधारण जीवन और जनहित के प्रति समर्पण उन्हें एक आदर्श नेता बनाता है।
21 दिसंबर 1998 को उन्होंने इस दुनिया से विदा ली, लेकिन उनका योगदान और प्रेरणादायक जीवन आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
निष्कर्ष
कोसा गांव और गोविंद सिंह रावत की कहानी अस्कोट-आराकोट यात्रा में एक ऐतिहासिक और प्रेरक पहलू जोड़ती है। उनकी दूरदर्शिता और संघर्ष ने न केवल चिपको आंदोलन को सफलता दिलाई, बल्कि समाज को एकजुट होने का संदेश भी दिया। उनका जीवन एक मिसाल है कि साधारण इंसान भी असाधारण बदलाव ला सकता है।
"कामरेड गोविंद सिंह रावत के योगदान को सलाम!"
सवाल-जवाब (FAQs) – कामरेड गोविंद सिंह रावत और उनका योगदान
1. कामरेड गोविंद सिंह रावत का जन्म कब और कहां हुआ?
- कामरेड गोविंद सिंह रावत का जन्म 23 जून 1935 को चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड के कोसा गांव में हुआ था।
2. उनके परिवार के बारे में क्या जानकारी है?
- उनके माता-पिता का नाम श्रीमती चंद्रा देवी और श्री उमराव सिंह रावत था। जब वे मात्र चार वर्ष के थे, उनकी मां का देहांत हो गया।
3. उनकी प्रारंभिक शिक्षा कहां हुई?
- प्राथमिक शिक्षा उन्होंने अपने गांव में प्राप्त की, और आठवीं तक की पढ़ाई नंदप्रयाग में पूरी की।
4. कामरेड गोविंद सिंह रावत ने कौन-कौन से प्रमुख आंदोलन किए?
- उन्होंने चिपको आंदोलन, वन संरक्षण, और अन्य सामाजिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. उन्होंने राजनीति में कब कदम रखा?
- 1969 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ज्वाइन की और 1973 में जोशीमठ विकासखंड के पहले ब्लॉक प्रमुख बने।
6. चिपको आंदोलन में उनकी भूमिका क्या थी?
- उन्होंने जंगलों को बचाने के लिए जनजागरूकता अभियान चलाया। उनकी पहल और जागरूकता के कारण रैणी की महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर जंगल कटाई का विरोध किया, जो चिपको आंदोलन की नींव बना।
7. चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
- जंगलों की कटाई रोकना और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करना।
8. कामरेड गोविंद सिंह रावत ने राज्य निर्माण आंदोलन में क्या योगदान दिया?
- उन्होंने अलग उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और जनहित से जुड़े कई मुद्दों पर आंदोलन किए।
9. उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता क्या थी?
- उनका सादगीपूर्ण जीवन और जनसमस्याओं को हल करने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता।
10. कामरेड गोविंद सिंह रावत का निधन कब हुआ?
- उनका निधन 21 दिसंबर 1998 को हुआ।
11. उनके योगदान की क्या विरासत है?
- उनका जीवन समाज सेवा, पर्यावरण संरक्षण, और जनहित के लिए प्रेरणा स्रोत है। चिपको आंदोलन और अन्य सामाजिक कार्यों में उनकी भूमिका को आज भी याद किया जाता है।
12. कोसा गांव में उनका क्या महत्व है?
- कोसा गांव के लोग उन्हें गर्व से याद करते हैं, क्योंकि उन्होंने गांव और क्षेत्र का नाम देश-विदेश में रोशन किया।
13. चिपको आंदोलन से 'लिपटो, झपटो और चिपको' का क्या अर्थ है?
- यह नारा पेड़ों को बचाने के लिए लोगों को प्रेरित करता है कि वे जंगलों से जुड़े रहें और उनके कटाव का विरोध करें।
14. कामरेड गोविंद सिंह रावत की सादगी का उदाहरण क्या है?
- ब्लॉक प्रमुख जैसे पद पर रहते हुए भी उन्होंने कभी निजी स्वार्थ नहीं रखा और एक सामान्य जीवन जिया।
15. उन्हें किन-किन संगठनों और आंदोलनों से प्रेरणा मिली?
- पेशावर कांड के नायक चंद्रसिंह गढ़वाली और अन्य क्रांतिकारी व्यक्तित्वों के विचारों ने उनके जीवन को प्रभावित किया।
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