चंडी प्रसाद भट्ट: पर्यावरण संरक्षण के अग्रदूत - Chandi Prasad Bhatt: Pioneer of environmental protection
चंडी प्रसाद भट्ट: पर्यावरण संरक्षण के अग्रदूत

- रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1982)
- पद्म भूषण (2005)
- गांधी शांति पुरस्कार (2013)
चंडी प्रसाद भट्ट, भारत के पहले आधुनिक पर्यावरणविदों में से एक हैं। उन्होंने 1964 में दशोली ग्राम स्वराज्य संघ (DGSS) की स्थापना की, जो बाद में चिपको आंदोलन का आधार बना। चिपको आंदोलन ने भारत में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक नया इतिहास रचा। उनके योगदान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया और वे कई पुरस्कारों से सम्मानित किए गए।
प्रारंभिक जीवन
चंडी प्रसाद भट्ट का जन्म 23 जून 1934 को उत्तराखंड के गोपेश्वर में हुआ। वे एक पुजारी परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता गंगा राम भट्ट और माता महेशी देवी थपलियाल थीं। पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया। गोपेश्वर जैसे छोटे से गांव में पले-बढ़े भट्ट ने शुरुआती शिक्षा रुद्रप्रयाग और पौड़ी में की, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण डिग्री पूरी नहीं कर सके।
करियर की शुरुआत
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रोजगार की कमी और खेती की सीमित संभावनाओं के कारण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी जीवनयापन के लिए नौकरी की। उन्होंने गढ़वाल मोटर ओनर्स यूनियन (GMOU) में बुकिंग क्लर्क के रूप में कार्य किया।
1956 में उनकी जिंदगी में बदलाव आया जब उन्होंने गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण का भाषण सुना। इससे प्रेरित होकर उन्होंने सर्वोदय आंदोलन में भाग लिया और ग्राम विकास के साथ-साथ शराबबंदी जैसे अभियानों का नेतृत्व किया।
1960 में भट्ट ने अपनी नौकरी छोड़कर पूर्ण रूप से सामाजिक कार्यों में समर्पित हो गए। 1964 में उन्होंने दशोली ग्राम स्वराज्य संघ की स्थापना की। इसका उद्देश्य वन आधारित उद्योगों के माध्यम से ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करना और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दिशा में काम करना था।
चिपको आंदोलन
1973 में चंडी प्रसाद भट्ट ने ग्रामीणों और वन-वार समाज के सदस्यों को संगठित कर चिपको आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना और वनों पर ग्रामीणों के अधिकार को सुनिश्चित करना था।
आंदोलन की प्रमुख बातें:
- महिलाओं की भूमिका: चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई। वे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उन्हें गले लगाती थीं।
- अहिंसात्मक दृष्टिकोण: आंदोलन पूरी तरह से गांधीवादी अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित था।
- पर्यावरण शिक्षा: इस आंदोलन ने ग्रामीणों को जंगलों के पारिस्थितिक संतुलन की महत्ता के बारे में जागरूक किया।
अन्य योगदान
भट्ट ने बद्रीनाथ मंदिर की सांस्कृतिक और पुरातात्विक विरासत को बचाने के लिए भी आंदोलन किया। उन्होंने वन प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय वन आयोग में भी योगदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया और भारत के बाहर रूस, अमेरिका, जापान जैसे देशों में पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाया।
पुरस्कार और सम्मान

चंडी प्रसाद भट्ट को उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
- रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1982)
- पद्म श्री (1983)
- पद्म भूषण (2005)
- गांधी शांति पुरस्कार (2013)
निष्कर्ष
चंडी प्रसाद भट्ट का जीवन प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दिखाया कि साधारण जीवन जीते हुए भी असाधारण बदलाव लाए जा सकते हैं। उनकी सोच और कार्यों ने न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बल्कि सामाजिक न्याय और ग्रामीण विकास में भी एक मिसाल कायम की है।
"चंडी प्रसाद भट्ट ने न केवल पेड़ों को बचाया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरित भविष्य की नींव रखी।"
चंडी प्रसाद भट्ट से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. चंडी प्रसाद भट्ट कौन हैं?
चंडी प्रसाद भट्ट एक भारतीय पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे चिपको आंदोलन के प्रणेता और 1964 में "दशोली ग्राम स्वराज्य संघ" के संस्थापक हैं।
2. चंडी प्रसाद भट्ट का जन्म कब और कहां हुआ था?
चंडी प्रसाद भट्ट का जन्म 23 जून 1934 को उत्तराखंड के गोपेश्वर में हुआ।
3. चंडी प्रसाद भट्ट को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं:
- रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1982)
- पद्म श्री (1983)
- पद्म भूषण (2005)
- गांधी शांति पुरस्कार (2013)
4. चंडी प्रसाद भट्ट का चिपको आंदोलन में क्या योगदान है?
चंडी प्रसाद भट्ट ने 1973 में चिपको आंदोलन की नींव रखी। उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों, खासतौर पर महिलाओं, को संगठित कर वनों की रक्षा के लिए पेड़ों को गले लगाने की रणनीति अपनाई। यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण और वन अधिकारों की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।
5. दशोली ग्राम स्वराज्य संघ (DGSS) क्या है?
दशोली ग्राम स्वराज्य संघ की स्थापना 1964 में चंडी प्रसाद भट्ट ने की थी। इसका उद्देश्य ग्रामीणों को वन आधारित उद्योगों में रोजगार प्रदान करना और उनके अधिकारों की रक्षा करना था। यह चिपको आंदोलन का मातृ संगठन बना।
6. चंडी प्रसाद भट्ट का पर्यावरण संरक्षण में क्या दृष्टिकोण है?
भट्ट ने "सामाजिक पारिस्थितिकी" का विचार प्रस्तुत किया, जो प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर बल देता है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की।
7. चंडी प्रसाद भट्ट के प्रारंभिक जीवन के बारे में क्या जानकारी है?
उनका जन्म गोपेश्वर के एक पुजारी परिवार में हुआ। उनके पिता का निधन बचपन में ही हो गया, और उनकी मां ने उनका पालन-पोषण किया। प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे सर्वोदय आंदोलन में सक्रिय हो गए।
8. उन्होंने किन महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया?
- चिपको आंदोलन (1973): वनों की रक्षा के लिए।
- बद्रीनाथ मंदिर संरक्षण आंदोलन (1974): मंदिर की सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहर को बचाने के लिए।
9. चंडी प्रसाद भट्ट का जीवन दर्शन क्या है?
वे गांधीवादी विचारधारा के समर्थक हैं। उनका जीवन दर्शन अहिंसा, सादगी, और सामुदायिक विकास पर आधारित है।
10. चंडी प्रसाद भट्ट की प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं?
- चिपको आंदोलन के माध्यम से वनों का संरक्षण।
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा।
- पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में वैश्विक पहचान।
11. क्या चंडी प्रसाद भट्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कार्य किया है?
जी हां, उन्होंने कई देशों जैसे अमेरिका, रूस, जापान, जर्मनी, फ्रांस, और चीन में पर्यावरणीय सम्मेलनों में भाग लिया और भारत के पर्यावरणीय मॉडल को प्रस्तुत किया।
12. वर्तमान में चंडी प्रसाद भट्ट क्या कर रहे हैं?
चंडी प्रसाद भट्ट वर्तमान में भी पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता के लिए सक्रिय हैं। वे विभिन्न संगठनों और समितियों के माध्यम से पर्यावरणीय नीतियों में सुधार के लिए कार्य कर रहे हैं।
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