चंडीप्रसाद भट्ट: पहाड़ों के सजग प्रहरी और पर्यावरण संरक्षण के जननायक - Chandiprasad Bhatt: Vigilant guard of mountains and public leader of environmental protection
चंडीप्रसाद भट्ट: पहाड़ों के सजग प्रहरी और पर्यावरण संरक्षण के जननायक
चंडीप्रसाद भट्ट, जिन्हें आधुनिक भारत के पहले पर्यावरणविद और गांधीवादी विचारधारा के सशक्त प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है, अपने 90वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। उनके जीवन का हर क्षण पर्यावरण, प्रकृति, और हिमालय को संवारने के प्रति समर्पित रहा है। उनकी प्रेरणा और योगदान ने पर्यावरणीय आंदोलन को वैश्विक पहचान दिलाई, विशेषकर चिपको आंदोलन, जिसने पर्यावरण संरक्षण के नए आयाम स्थापित किए।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
23 जून 1934 को उत्तराखंड के गोपेश्वर गांव में जन्मे चंडीप्रसाद भट्ट का बचपन आर्थिक संघर्षों और चुनौतियों के बीच बीता। पिता की असामयिक मृत्यु के बाद, भट्टजी ने अपने जीवन में शिक्षा और स्वावलंबन को प्रमुख बनाया।
सर्वोदय विचारधारा से प्रेरणा
1956 में जयप्रकाश नारायण के बद्रीनाथ दौरे ने चंडीप्रसाद भट्ट को गांधीवादी विचारधारा की ओर आकर्षित किया। 1960 में उन्होंने सामाजिक सेवा का संकल्प लेते हुए अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने और शराब के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रयास शुरू किए।
1964 में उन्होंने दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल की स्थापना की, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और वन-आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित किया।
चिपको आंदोलन: पर्यावरण संरक्षण का ऐतिहासिक अध्याय
1973 में चमोली जिले के मंडल गांव से शुरू हुआ चिपको आंदोलन भारत के पर्यावरणीय आंदोलनों में मील का पत्थर है।
- इस आंदोलन का उद्देश्य वनों की कटाई रोकना और पर्यावरण संतुलन बनाए रखना था।
- महिलाएं इस आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में थीं, जिन्होंने पेड़ों को गले लगाकर उनका संरक्षण किया।
- आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को वाणिज्यिक वनों की कटाई पर 15 वर्षों का प्रतिबंध लगाने के लिए प्रेरित किया।
चिपको आंदोलन न केवल वनों को बचाने का प्रतीक बना, बल्कि उसने महिलाओं को सशक्त और जागरूक नागरिक के रूप में प्रस्तुत किया।
भट्टजी का सामाजिक योगदान
चंडीप्रसाद भट्ट ने पर्यावरणीय मुद्दों से आगे बढ़कर सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं पर भी काम किया।
- 1974 में उन्होंने बद्रीनाथ मंदिर की सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहर को बचाने के लिए आंदोलन किया।
- वह राष्ट्रीय वन आयोग के सदस्य रहे, जिसने वन प्रबंधन नीतियों की समीक्षा कर सरकार को सिफारिशें प्रस्तुत कीं।
सम्मान और पुरस्कार
चंडीप्रसाद भट्ट के योगदान को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले, जिनमें प्रमुख हैं:
- 1982: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
- 1986 और 2005: भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण
- 2013: गांधी शांति पुरस्कार
हिमालय के प्रति चिंता और समाधान
हाल ही में, भट्टजी ने हिमालय क्षेत्र में बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और तीर्थयात्रियों की संख्या को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना है कि चारधाम परियोजना और बांधों के कारण पर्यावरणीय क्षति गंभीर स्तर पर है।
विरासत और प्रेरणा
चंडीप्रसाद भट्ट का जीवन पर्यावरण संरक्षण, गांधीवादी विचारधारा और हिमालय की संस्कृति को संरक्षित करने के प्रति समर्पित रहा है। उनका योगदान हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन ही सच्ची प्रगति का मार्ग है।
उनके 90वें जन्मदिवस पर, हम उनके दीर्घायु और सतत मार्गदर्शन की कामना करते हैं। चंडीप्रसाद भट्ट का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है कि प्रकृति और समाज को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए।
"चंडीप्रसाद भट्ट के विचार और कर्म हमें यह संदेश देते हैं कि विकास और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं। उनकी प्रेरणा हमें एक हरित और समृद्ध भविष्य की ओर ले जाती है।"
FQCs - चंडीप्रसाद भट्ट और पर्यावरण संरक्षण
1. चंडीप्रसाद भट्ट कौन हैं?
चंडीप्रसाद भट्ट देश के पहले आधुनिक पर्यावरणविद और गांधीवादी विचारक हैं, जो चिपको आंदोलन के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं।
2. चंडीप्रसाद भट्ट का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उनका जन्म 23 जून 1934 को गोपेश्वर गांव, चमोली (उत्तराखंड) में हुआ।
3. चिपको आंदोलन क्या है?
चिपको आंदोलन 1973 में शुरू हुआ एक अहिंसक आंदोलन है, जिसका उद्देश्य पेड़ों की कटाई रोकना और वनों का संरक्षण करना था। इसमें लोग पेड़ों को गले लगाकर उनकी रक्षा करते थे।
4. चिपको आंदोलन का नेतृत्व चंडीप्रसाद भट्ट ने कैसे किया?
चंडीप्रसाद भट्ट ने ग्रामीण समुदायों, विशेष रूप से महिलाओं को संगठित कर पेड़ों को बचाने के लिए प्रेरित किया। इसका पहला प्रदर्शन मंडल गांव में हुआ।
5. चिपको आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
चिपको आंदोलन ने सरकार को वनों की कटाई पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने पर मजबूर किया। 1980 के वन संरक्षण अधिनियम ने लाखों हेक्टेयर जंगलों को बचाने में मदद की।
6. चंडीप्रसाद भट्ट को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 2005 में पद्म भूषण, और 2013 में गांधी शांति पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले।
7. चंडीप्रसाद भट्ट का योगदान सर्वोदय आंदोलन में क्या है?
उन्होंने 1960 में सर्वोदय आंदोलन से जुड़कर ग्रामीण विकास, शराब विरोध, और सामाजिक सद्भाव जैसे मुद्दों पर काम किया।
8. चंडीप्रसाद भट्ट ने कौन सी संस्था की स्थापना की?
उन्होंने 1964 में "दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल" की स्थापना की, जो स्थानीय रोजगार और वनों के संरक्षण के लिए काम करती है।
9. चंडीप्रसाद भट्ट ने बद्रीनाथ और केदारनाथ में बढ़ते पर्यटक दबाव पर क्या कहा?
उन्होंने इन क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण और ग्लेशियरों के पिघलने पर चिंता व्यक्त की और सरकार को प्रभावी कदम उठाने का सुझाव दिया।
10. चंडीप्रसाद भट्ट का आज भी पर्यावरण संरक्षण में क्या योगदान है?
वह लेखन और जागरूकता अभियानों के माध्यम से आज भी पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय हैं।
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