चिपको आंदोलन और सुंदरलाल बहुगुणा: पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक - Chipko Movement and Sunderlal Bahuguna: Symbol of Environmental Protection
चिपको आंदोलन और सुंदरलाल बहुगुणा: पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक
चिपको आंदोलन भारतीय पर्यावरण संरक्षण आंदोलन की एक ऐतिहासिक घटना है, जिसने जंगलों की सुरक्षा के महत्व को उजागर किया। इसका नेतृत्व मुख्य रूप से सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट जैसे पर्यावरणविदों ने किया। इस लेख में हम चिपको आंदोलन के इतिहास, प्रभाव, और सुंदरलाल बहुगुणा के योगदान पर चर्चा करेंगे।
चिपको आंदोलन क्या था?
चिपको आंदोलन 1970 के दशक में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में शुरू हुआ, जब पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के खिलाफ स्थानीय ग्रामीण खड़े हुए। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण और जंगलों को बचाना था। आंदोलन का नाम "चिपको" इसलिए पड़ा क्योंकि ग्रामीण, विशेष रूप से महिलाएं, पेड़ों से चिपक जाती थीं ताकि उन्हें काटा न जा सके।
चिपको आंदोलन की शुरुआत
- समस्या:1962 में चीन-भारत युद्ध के बाद भारत सरकार ने सीमा क्षेत्रों में सड़क निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर जंगल कटाई शुरू की।
- प्रतिक्रिया:जंगल कटाई से स्थानीय पर्यावरण और आजीविका पर संकट गहराने लगा, जिससे ग्रामीणों में असंतोष फैला।
- मुख्य घटना:23 मार्च 1973 को उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गांव में महिलाओं ने गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ों से चिपककर उनकी कटाई रोक दी।
- प्रेरणा:इस घटना ने पूरे भारत में पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों को प्रेरित किया।
सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान
सुंदरलाल बहुगुणा (1927-2021) भारतीय पर्यावरण आंदोलन के अग्रदूत थे। उनके नेतृत्व में चिपको आंदोलन को वैश्विक पहचान मिली।
जीवन परिचय
- जन्म: 9 जनवरी 1927, सिलयारा, उत्तराखंड।
- मृत्यु: 21 मई 2021, ऋषिकेश।
- पारिवारिक सहयोग: उनकी पत्नी विमला नौटियाल ने उनके प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख योगदान
- पर्यावरण संरक्षण:उन्होंने पेड़ों की कटाई रोकने और जंगलों के महत्व को समझाने के लिए पूरे देश में यात्राएं कीं।
- गांधीवादी दृष्टिकोण:अहिंसा और सादगी के आदर्शों को अपनाते हुए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलन चलाए।
- टिहरी बांध का विरोध:उन्होंने टिहरी बांध परियोजना का विरोध किया क्योंकि इससे हजारों पेड़ नष्ट हो रहे थे और स्थानीय समुदायों को विस्थापन का सामना करना पड़ रहा था।
चिपको आंदोलन का प्रभाव
- वन संरक्षण कानून:आंदोलन की सफलता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 1980 में "वन संरक्षण अधिनियम" लागू करने के लिए प्रेरित किया।
- वैश्विक पहचान:यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गया और अन्य देशों ने इससे प्रेरणा ली।
- पर्यावरण शिक्षा:चिपको आंदोलन ने लोगों को पर्यावरण और जंगलों के महत्व के प्रति जागरूक किया।
सुंदरलाल बहुगुणा को मिले पुरस्कार और सम्मान
- पद्मश्री (1981, अस्वीकार)
- जमनालाल बजाज पुरस्कार (1985)
- राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (1987, वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार)
- पद्म विभूषण (2009)
निष्कर्ष
चिपको आंदोलन और सुंदरलाल बहुगुणा के प्रयास हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराते हैं। उनका योगदान न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्त्रोत है। यह आंदोलन दिखाता है कि स्थानीय समुदायों की छोटी पहल भी बड़े बदलाव ला सकती है।
"पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है।" – सुंदरलाल बहुगुणा
FQCs (Frequently Queried Concepts) on Sundarlal Bahuguna and Chipko Movement
सुन्दरलाल बहुगुणा कौन थे?
सुंदरलाल बहुगुणा एक भारतीय पर्यावरणविद, गांधीवादी, और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्हें चिपको आंदोलन का प्रमुख नेता और 'वृक्षमित्र' के नाम से जाना जाता है।सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म और मृत्यु कब हुई?
उनका जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के सिलयारा गांव में हुआ था। उनकी मृत्यु 21 मई 2021 को ऋषिकेश, उत्तराखंड में हुई।चिपको आंदोलन क्या है?
चिपको आंदोलन 1973 में शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण आंदोलन था, जिसमें लोग पेड़ों से चिपककर उन्हें काटने से बचाते थे। इसका नेतृत्व सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने किया।चिपको आंदोलन की शुरुआत कहां हुई थी?
चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गांव से हुई थी।गौरा देवी का चिपको आंदोलन में क्या योगदान था?
गौरा देवी ने रैणी गांव की महिलाओं का नेतृत्व करते हुए पेड़ों से चिपककर उनकी कटाई का विरोध किया। उन्होंने कहा, "पहले हमें काटो, फिर पेड़ को काटना।"चिपको आंदोलन का परिणाम क्या रहा?
इस आंदोलन ने सरकार को वन संरक्षण कानून लागू करने और वनों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रेरित किया।सुंदरलाल बहुगुणा के प्रमुख नारे क्या थे?
- "धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।"
- "पेड़ों को काटने से बेहतर उन्हें लगाना है।"
सुंदरलाल बहुगुणा को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
- 1981: स्टॉकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार
- 1987: राइट लाइवलीहुड पुरस्कार
- 2001: पद्म विभूषण
सुंदरलाल बहुगुणा ने पद्मश्री पुरस्कार क्यों ठुकराया?
उन्होंने 1981 में यह कहते हुए पद्मश्री पुरस्कार ठुकरा दिया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, वह खुद को इस सम्मान के योग्य नहीं समझते।चिपको आंदोलन का वैश्विक प्रभाव क्या था?
इस आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण पर वैश्विक जागरूकता बढ़ाई और दुनिया भर के पर्यावरण प्रेमियों को प्रेरित किया।चिपको आंदोलन के कारण किस मंत्रालय का गठन हुआ?
इस आंदोलन के प्रभाव से केंद्र सरकार ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का गठन किया।सुंदरलाल बहुगुणा का टिहरी बांध विरोध आंदोलन क्या था?
उन्होंने टिहरी बांध परियोजना का विरोध करते हुए इसे पर्यावरण के लिए खतरनाक बताया।चिपको आंदोलन की मुख्य प्रेरणा क्या थी?
स्थानीय लोगों का वनों पर अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, और प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी उपयोग।गांधीजी के विचारों का सुंदरलाल बहुगुणा पर क्या प्रभाव था?
बहुगुणा ने गांधीजी के 'सादा जीवन, उच्च विचार' और अहिंसात्मक आंदोलनों को अपने जीवन और आंदोलनों में अपनाया।चिपको आंदोलन में महिला मंगल दल की भूमिका क्या थी?
महिलाओं ने घर-घर जाकर पेड़ों के महत्व की जानकारी दी और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाई।सुंदरलाल बहुगुणा का मुख्य संदेश क्या था?
"पारिस्थितिकी ही असली आर्थिकी है।"सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन से हमें क्या सीखने को मिलता है?
पर्यावरण संरक्षण, सादा जीवन, और सामूहिक प्रयासों की ताकत।चिपको आंदोलन को 'चिपको' नाम क्यों दिया गया?
पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाने की प्रक्रिया के कारण इसे 'चिपको आंदोलन' कहा गया।चिपको आंदोलन के बाद कौन-कौन से पर्यावरणीय सुधार हुए?
- वनों की कटाई पर प्रतिबंध
- वन संरक्षण कानून
- पर्यावरण संरक्षण के लिए अलग मंत्रालय की स्थापना
- सुंदरलाल बहुगुणा का अंतिम संदेश क्या था?
उनके शब्दों में: "प्रकृति का सम्मान करें और अगली पीढ़ी को एक स्वस्थ वातावरण दें।"
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