महान पर्यावरण चिंतक सुंदरलाल बहुगुणा: चिपको आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत (Great environmental thinker Sunderlal Bahuguna: The source of inspiration for the Chipko movement)
महान पर्यावरण चिंतक सुंदरलाल बहुगुणा: चिपको आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत
सुंदरलाल बहुगुणा, जिनका नाम पर्यावरण संरक्षण में योगदान के कारण दुनिया भर में जाना जाता है, एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उनका जीवन केवल प्रकृति से जुड़ा हुआ नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज को पर्यावरण की अहमियत समझाने के लिए संघर्ष भी किया। उनका मानना था कि पारिस्थितिकी ही सबसे बड़ी आर्थिकी है, और स्थिर अर्थव्यवस्था स्थिर पारिस्थितिकी पर निर्भर करती है।
चिपको आंदोलन: पेड़ों को बचाने की एक ऐतिहासिक पहल
सन 1962 में भारत–चीन युद्ध के बाद भारत सरकार ने तिब्बत सीमा पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सीमा क्षेत्रों में सड़क निर्माण शुरू किया था। इस परियोजना के तहत उत्तराखंड के चमोली जिले में भी जंगलों की अंधाधुंध कटाई शुरू हो गई थी। सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट जैसे पर्यावरणविदों ने इसका विरोध किया और इसके परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन का जन्म हुआ। इस आंदोलन में लोग पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाने के लिए खड़े हो गए थे।
चिपको आंदोलन न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक प्रेरणा बन गया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वन संरक्षण कानून लाने का निर्णय लिया और 15 वर्षों तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी। इसके अलावा, भारत सरकार ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भी स्थापित किया। इस आंदोलन ने उन्हें वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध कर दिया।
सत्याग्रह और बड़े बांधों का विरोध
सुंदरलाल बहुगुणा का सत्याग्रह केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं था। वे बड़े बांधों के प्रखर विरोधी थे और उन्होंने देश भर में इसके खिलाफ आंदोलन किए। 1980 के दशक में छत्तीसगढ़ के बस्तर में और गढ़चिरौली में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने आदिवासी समुदाय के साथ मिलकर "मानव बचाओ, जंगल बचाओ" आंदोलन चलाया।
पुरस्कार और सम्मान
सुंदरलाल बहुगुणा को उनके कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। 1980 में, उन्हें फ्रेंड ऑफ नेचर द्वारा सम्मानित किया गया और 1981 में उन्हें स्टॉकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त, 1981 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, हालांकि उन्होंने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, वे इस सम्मान के योग्य नहीं मानते। उनके जीवन और कार्यों को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें पद्मविभूषण, जमनालाल बजाज पुरस्कार, और राइट लाइवलीहुड पुरस्कार शामिल हैं।
सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान आज भी प्रेरणास्त्रोत
आज जब दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वैश्विक तापमान को लेकर चर्चाएं हो रही हैं, तब हमें सुंदरलाल बहुगुणा की बातें याद आती हैं। उन्होंने हमेशा कहा कि हमें प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने के बजाय छोटे और स्थायी उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के खिलाफ उन्होंने जबर्दस्त विरोध किया और इस आंदोलन में उनका नारा था: “धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला” यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाओ और निचले क्षेत्रों में छोटी परियोजनाओं से बिजली उत्पन्न करो।
सादा जीवन, उच्च विचार का आदर्श अपनाते हुए सुंदरलाल बहुगुणा ने जीवनभर पर्यावरण, नदियों और वनों के संरक्षण की मुहिम में अपनी पूरी ताकत झोंकी।
निष्कर्ष
सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान सिर्फ एक आंदोलन तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने पूरे समाज को यह समझाया कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण ही मानवता की वास्तविक सेवा है। उनका जीवन और कार्य आज भी हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपनी प्राकृतिक धरोहर को बचाने के लिए जिम्मेदार बनें और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और हरित वातावरण सुनिश्चित करें।
सुंदरलाल बहुगुणा और चिपको आंदोलन: प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: सुंदरलाल बहुगुणा कौन थे?
उत्तर:
सुंदरलाल बहुगुणा भारत के एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद, गांधीवादी विचारक, और चिपको आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत थे। उन्होंने अपने जीवन को वनों, नदियों और पर्यावरण के संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया।
प्रश्न 2: चिपको आंदोलन क्या था?
उत्तर:
चिपको आंदोलन 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले से शुरू हुआ एक अहिंसक पर्यावरण आंदोलन था। इसमें ग्रामीण लोग पेड़ों से चिपककर उनकी कटाई रोकते थे। इसका उद्देश्य वनों को बचाना और पर्यावरण का संरक्षण करना था।
प्रश्न 3: चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर:
चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट थे।
प्रश्न 4: चिपको आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
चिपको आंदोलन के परिणामस्वरूप:
- तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वन संरक्षण कानून लागू किया।
- 15 वर्षों तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई गई।
- भारत सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय की स्थापना की।
प्रश्न 5: सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध इसलिए किया क्योंकि यह पर्यावरण, नदियों और स्थानीय समुदायों पर विनाशकारी प्रभाव डालता। उन्होंने छोटे और टिकाऊ बिजली उत्पादन परियोजनाओं का समर्थन किया।
प्रश्न 6: सुंदरलाल बहुगुणा का प्रसिद्ध नारा क्या था?
उत्तर:
उनका प्रसिद्ध नारा था:
"धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला,"
जिसका अर्थ है कि पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़ लगाएं और निचले क्षेत्रों में छोटी परियोजनाओं से बिजली उत्पन्न करें।
प्रश्न 7: सुंदरलाल बहुगुणा को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
उत्तर:
सुंदरलाल बहुगुणा को निम्नलिखित पुरस्कार मिले:
- राइट लाइवलीहुड अवार्ड (वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार)।
- जमनालाल बजाज पुरस्कार।
- पद्मविभूषण।
- फ्रेंड ऑफ नेचर सम्मान।
उन्होंने 1981 में पद्मश्री सम्मान अस्वीकार कर दिया था।
प्रश्न 8: सुंदरलाल बहुगुणा का प्रमुख संदेश क्या था?
उत्तर:
उनका प्रमुख संदेश था कि पारिस्थितिकी ही सबसे बड़ी आर्थिकी है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण मानवता की सच्ची सेवा है और हमें विकास के टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल उपाय अपनाने चाहिए।
प्रश्न 9: चिपको आंदोलन का अंतरराष्ट्रीय महत्व क्यों है?
उत्तर:
चिपको आंदोलन ने पूरी दुनिया को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहिंसक तरीकों से आंदोलन करने की प्रेरणा दी। यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर एक मिसाल बना।
प्रश्न 10: सुंदरलाल बहुगुणा का जीवन हमें क्या सिखाता है?
उत्तर:
सुंदरलाल बहुगुणा का जीवन हमें सिखाता है कि प्रकृति का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। सादा जीवन और उच्च विचार के साथ हमें पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए।
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