मनोहर श्याम जोशी और उनकी कविता "काफल पाको"
मनोहर श्याम जोशी, हिंदी साहित्य के जगत में एक ऐसा नाम हैं, जो अपनी सरल लेकिन गहन लेखनी के लिए प्रसिद्ध हैं। वे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में एक कुमाऊँनी ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पिता एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् और संगीतज्ञ थे, जिनका प्रभाव उनकी लेखनी और सोच में झलकता है।
मनोहर श्याम जोशी न केवल हिंदी साहित्य के महान लेखक थे, बल्कि वे धारावाहिक लेखन और पत्रकारिता में भी उत्कृष्ट योगदान दे चुके हैं। उनका परिवार भी विद्वता की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है; उनके बेटे प्रो. अनुपम जोशी एक प्रमुख साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ हैं।
"काफल पाको": कविता और उसका सौंदर्य
"काफल पाको" मनोहर श्याम जोशी की एक ऐसी रचना है, जो हमें पहाड़ों की प्रकृति, लोककथाओं और उनकी मधुरता से परिचित कराती है। यह कविता उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सादगी का प्रतीक है।
कविता की पंक्तियाँ एक चिड़िया की कूक पर आधारित हैं, जो पहाड़ों में गूँजती है:
‘‘काफल पाको त्वील नी चीखो’’
(काफल पके, तूने नहीं चखे।)
यह पंक्ति कुमाऊँनी लोककथा से जुड़ी है, जो काफल फल और एक माँ-बेटी की मार्मिक कहानी को दर्शाती है।
आओ चलें पहाड़ों के आंगन,
जहां गूँजती है चिड़िया की वाणी,
"काफल पाको त्वील नी चीखो" की मिठास,
भर देती मन में नई कहानी।
देवदार के साये में लेट जाएं,
ना गिनें कितने पेड़ खड़े,
झरनों की छलछल, पत्तों की सरसर,
बस सुनें प्रकृति के गीत बड़े।
झींगुरों का संगीत हो साथ,
पवन की सरगम का अहसास,
घास पर लेटे, बिना किसी प्रयास,
खो जाएं प्रकृति के मधुर प्रकाश।
"काफल पाको" की मधुर तान,
जगाए भीतर के भूले अरमान,
शायद किसी जन्म की प्यासी पुकार,
बन जाए हमारी जुबां की पहचान।
बिना गिने, बिना तौले कुछ भी,
बस जियें हर पल को अनमोल,
क्योंकि यही है जीवन का सार,
यही है प्रकृति का अनमोल बोल।
"काफल पाको त्वील नी चीखो"
सुनें इसे, और खो जाएं,
वापस जीवन के हर कोने में,
प्रकृति के साथ सिमट जाएं।
कविता की पंक्तियों का विश्लेषण
प्रकृति का संगीत
कविता हमें एक ऐसे संसार में ले जाती है, जहां केवल प्रकृति का संगीत सुनाई देता है। झरनों की "छल छल", पत्तों की "सर सर", और झींगुरों की "झनन झनन" के बीच, चिड़िया की मधुर तान हमें अपने भीतर के शांति के क्षणों से जोड़ती है।
‘‘न गिने कि जंगल में देवदारु कितने हैं?
कितने बाँज? चीड़ कितने हैं?’’
इस पंक्ति से कवि यह संदेश देते हैं कि हमें प्रकृति की गहराई में डूबकर उसके हर रूप का आनंद लेना चाहिए, न कि उसे मात्र गिनने और तौलने का प्रयास करना चाहिए।
मानव और प्रकृति का जुड़ाव
कविता हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी सिर्फ प्रकृति के पास बैठकर, उसकी आवाजों को सुनना, हमारे भीतर के गहन प्रश्नों का उत्तर दे सकता है।
‘‘जब तक अनायास ही
हमारे होंठों से प्यास किसी पिछले जीवन की न फूट पड़े।’’
यहाँ कवि उस आध्यात्मिक क्षण की बात करते हैं, जब मनुष्य और प्रकृति एकाकार हो जाते हैं।
"काफल पाको" और उत्तराखंड की लोककथा
काफल उत्तराखंड का एक पहाड़ी फल है, जिसकी मिठास और सौंदर्य लोककथाओं और कहावतों में समाहित है। कुमाऊँ क्षेत्र में यह मान्यता है कि चिड़िया की आवाज़ ‘‘काफल पाको त्वील नी चीखो’’ उस माँ-बेटी की कहानी की याद दिलाती है, जो काफल के फलों को लेकर आपसी गलतफहमी के कारण बिछड़ गईं।
यह कथा माँ-बेटी के प्यार और बलिदान की मार्मिक व्याख्या करती है, और यही कारण है कि "काफल पाको" उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर में गहराई से रची-बसी है।
मनोहर श्याम जोशी का साहित्यिक योगदान
मनोहर श्याम जोशी ने साहित्य, पत्रकारिता और धारावाहिक लेखन में अपनी अनूठी पहचान बनाई। उनकी अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ हैं:
- "कसप"
- "क्याप"
- "नेताजी कहिन"
- "कुरु कुरु स्वाहा"
- "हमज़ाद"
उनके लिखे धारावाहिक "हम लोग" और "बुनियाद" भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में मील के पत्थर साबित हुए।
कविता का संदेश
"काफल पाको" कविता हमें यह सिखाती है कि जीवन में शांति और आनंद पाने के लिए प्रकृति के साथ जुड़ना बेहद महत्वपूर्ण है। यह कविता एक सरल लेकिन गहरी अनुभूति कराती है, जो हमें जीवन के छोटे-छोटे लेकिन अनमोल क्षणों का मूल्य समझने की प्रेरणा देती है।
‘‘कुछ न करें बस लेटे रहें
पास पास घास पर
सुनते रहें चिड़िया का गान।’’
समापन
मनोहर श्याम जोशी की यह कविता उत्तराखंड के लोकजीवन और प्रकृति के प्रति उनके गहरे प्रेम का प्रतीक है। यह न केवल साहित्य के पाठकों को, बल्कि हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है, जो शहरी जीवन के शोर-शराबे से दूर शांति की तलाश में है।
अगर आपने कभी काफल के फल का स्वाद नहीं चखा या पहाड़ों में चिड़ियों की आवाज नहीं सुनी, तो इस कविता के माध्यम से उसे महसूस करने का प्रयास कीजिए।
क्या आपने कभी पहाड़ों की सुंदरता और काफल की मिठास का अनुभव किया है? नीचे कमेंट में अपने विचार साझा करें!
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