वनों से करो यारी नहीं आएगी महामारी.. (Epidemics will not come from the forests.)

वनों से करो यारी, नहीं आएगी महामारी

।।चिंतन।।

आज का मानव जितनी तेजी से प्रगति की ओर बढ़ रहा है, उतनी ही तेज़ी से वह अपनी ही पंक्ति और प्रकृति के खिलाफ जा रहा है। आधुनिकता के नाम पर हमने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है, जो हमारे लिए किसी भी महाप्रलय से कम नहीं है। हमारी यह सोच कि पृथ्वी और प्रकृति केवल हमारे नियंत्रण में हैं, न केवल गलत थी, बल्कि यह हमारे लिए एक घातक भूल साबित हुई है।

वनों से यारी

प्रकृति का हर रूप है अद्भुत,
वनों में बसी है उसकी रचनात्मकता।
वृक्षों की छांव, नदियों की धारा,
प्रकृति ही तो है जीवन की सहारा।

हमने जो लिया, वह कभी वापस किया,
अब समय है, प्रकृति से रिश्ते को नया किया।
वनों से यारी, मन से प्यार,
तभी हम सच्चे होंगे जीवन के सार।

यदि पेड़ नहीं होंगे, तो शुद्ध वायु कहाँ से आएगी,
प्रकृति के बिना, जीवन कैसे चलेगा, यह कहाँ से आएगी?
हमने किया दोहन, अब रुकना होगा,
प्रकृति की रक्षा में हर कदम बढ़ाना होगा।

वनों की महिमा को समझना होगा,
जीवन का हर संकटकाल दूर करना होगा।
जो हम खो चुके, उसे पुनः पाना है,
प्रकृति से यारी निभानी है, यह एक मंत्र बनाना है।

वनों से यारी, महामारी से बचाव,
प्रकृति से सच्चा प्यार ही है जीवन का उपाय।
आओ हम सब मिलकर इस राह पर चलें,
प्रकृति की रक्षा करें, ताकि भविष्य संवरें।

वनों से यारी, जीवन में समृद्धि लाएगी,
प्रकृति का संरक्षण, महामारी से बचाएगी।

प्रकृति के प्रति हमारी यह लापरवाही और अहंकार ही हमें इस संकट में डाल चुका है। हमने कभी यह नहीं माना कि पृथ्वी पर हमारे अलावा और भी जीव-जंतु और पेड़-पौधे हैं, जो जीवन के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं। पिछले कुछ दशकों में, 80 लाख से भी ज़्यादा जीव-जंतु और पेड़-पौधे विलुप्त हो गए हैं, और आज लगभग 10 लाख जीव विलुप्त होने की कगार पर हैं। यह स्थिति न केवल भयावह है, बल्कि शर्मनाक भी है, क्योंकि इसने हमें यह साबित कर दिया है कि प्रकृति से खिलवाड़ करने का परिणाम कितनी बड़ी कीमत पर भुगतना पड़ सकता है।

हम भूल गए हैं कि जब तक प्रकृति है, तब तक हम हैं। जब प्रकृति ही न होगी, तो हम कहां से होंगे? यह एक गहरी सोच और आत्ममंथन का विषय है। प्रकृति कहती है, "तुम मेरी रक्षा करो और मैं तुम्हारी।" यह सरल सा नियम हमने भुला दिया है, और यही कारण है कि आजकल हम प्रकृति के प्रकोप से लगातार जूझ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक आपदाएं – ये सभी प्रकृति के प्रकोप के रूप हैं, जो हम पर बार-बार गिर रहे हैं, और इसके कारण हम पूरी दुनिया में असंतुलन देख रहे हैं।

हमने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है, और अब हमें इसके परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। मनुष्य ने अपनी भोगवादी प्रवृत्तियों के कारण प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है, लेकिन क्या हम इसे फिर से ठीक कर सकते हैं? इसका उत्तर है – हां! हमें इसे बचाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। यह समय है जब हम और आने वाली पीढ़ी को प्रकृति के प्रति जागरूक करें और उसे बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं।

प्रकृति के नियमों को तोड़ने के नतीजे बहुत गंभीर हो सकते हैं। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यदि हमने प्रकृति की रक्षा की, तो वह हमें बहुत कुछ दे सकती है। अगर हम उसके साथ शांति से रहते हैं, तो वह हमें जीवन का सबसे बड़ा उपहार दे सकती है – एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य।

समाप्ति में, इस कठिन समय में हमें समझना होगा कि वनों से हमारी यारी ही हमारी सुरक्षा है। अगर हम प्रकृति से अपनी यारी निभाते हैं, तो न केवल हम बच सकते हैं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी एक स्वस्थ और हरित पृथ्वी का आनंद ले सकेगी। हम सभी को एकजुट होकर प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी और इसके संरक्षण के लिए हर कदम उठाना होगा।

आओ, मिलकर वनों से यारी करें, ताकि महामारी न आए।

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