राजराजेश्वरी मंदिर देवलगढ़: इतिहास, पूजा विधि, और धार्मिक महत्व (Rajarajeshwari Temple Devalgarh: History, Puja Vidhi, and Religious Significance)

राजराजेश्वरी मंदिर: देवलगढ़

चीड़-बांज के घने जंगलों और गांवों के बीच स्थित देवलगढ़ का प्राचीन श्री राजराजेश्वरी सिद्धपीठ आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में माँ राजराजेश्वरी की पूजा धन, वैभव, योग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए की जाती है। यह देवी गढ़वाल के राजा-महाराजाओं की कुलदेवी मानी जाती थीं।

इतिहास

गढ़वाल नरेश अजयपाल ने सन 1512 में चांदपुर गढ़ी से राजधानी बदलकर देवलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया और यहाँ तीन मंजिला मंदिर बनवाकर श्रीयंत्र, श्री महिषमर्दिनी यंत्र, और श्री कामेश्वरी यंत्र की स्थापना की। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। राजा अजयपाल के शासनकाल (1500-1519) में यह स्थान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना।

मंदिर की विशेषता

मंदिर में मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि यंत्रों की पूजा होती है। गर्भगृह में श्री राजराजेश्वरी, श्री महिषमर्दिनी, और श्री बालात्रिपुरसुंदरी की मूर्तियाँ सिद्धयंत्रों के साथ प्रतिष्ठित हैं। यहाँ पर अखंड ज्योति प्रज्वलित रहती है और नित्य हवन-यज्ञ होते हैं। श्रद्धालु हवन की राख को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

पूजा परंपरा

श्री राजराजेश्वरी पीठ में श्रीयंत्र की पूजा विशेष रूप से होती है, जिसे यंत्रराज कहा जाता है। यहाँ पर तांत्रिक और सात्विक पूजा दोनों प्रकार से की जाती है। प्रथम नवरात्र से विशेष पूजा और हवन का आयोजन होता है। माँ राजराजेश्वरी को भोग में पारंपरिक भोजन और मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं।

धार्मिक महत्व

यह स्थान शक्ति की दस महाविद्याओं (श्रीकाली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला) में से एक षोडशी की आराधना का मुख्य केंद्र है। यहाँ देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है।

पर्यटन और पहुँच

देवलगढ़ मंदिर श्रीनगर गढ़वाल से 18 किमी, पौड़ी से 48 किमी और खिर्सू से 25 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और देश-विदेश से श्रद्धालु यहाँ अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण मंदिर

देवलगढ़ में श्री सत्यनाथ भैरव स्थान, श्री गौरा देवी मंदिर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, और श्री मुरली मनोहर मंदिर भी दर्शनीय हैं। सोम का मांडा मठ यहाँ का एक अन्य आकर्षक स्मारक है।

सांस्कृतिक महत्व

नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध 'सत्यनाथ' की गद्दी यहीं पर स्थित है। प्राचीन समय से यह स्थान नाथ योगियों और ब्राह्मण उपासकों का महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है।

निष्कर्ष: देवलगढ़ का श्री राजराजेश्वरी सिद्धपीठ ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का जीता-जागता प्रमाण है। यहाँ की पवित्रता और आध्यात्मिक माहौल श्रद्धालुओं के मन में अद्भुत शांति और ऊर्जा का संचार करता है। मंदिर की भव्यता और पूजा परंपरा इसे एक विशिष्ट तीर्थस्थल बनाती है।

राजराजेश्वरी मंदिर, देवलगढ़ आधारित शायरी 

  1. माँ राजराजेश्वरी का आशीर्वाद मिले,
    शांति और सुख की राह पाएं हम,
    देवलगढ़ में बसी हैं देवी की शक्तियाँ,
    हर मन्नत पूरी हो, हर दर्द मिटाएं हम।

  2. देवलगढ़ की भूमि पर बसी है शक्ति की देवी,
    राजराजेश्वरी की पूजा से मिलती है हर खुशी,
    श्री महिषमर्दिनी और कामेश्वरी के यंत्रों से,
    हर भक्त की मन्नत हो जाती है पूरी।

  3. देवलगढ़ के आंगन में बसी देवी की शक्ति,
    जहाँ हर मन्नत में बसी हो आशीर्वाद की रौशनी,
    राजराजेश्वरी का दरबार हो बड़ा ऐश्वर्य से,
    यह स्थान है सुख, शांति और समृद्धि की रानी।

  4. सिद्धपीठ का स्थान है देवलगढ़, जहां शक्ति का वास है,
    राजराजेश्वरी की पूजा से दिल में आशीर्वाद का एहसास है,
    हर पूजा से मिलता है सुख, शक्ति और भव्यता का अहसास,
    यह मंदिर है आस्था का आकाश, यही है शुभता का प्रयास।

  5. देवलगढ़ का मंदिर है पूर्ण शक्ति का घर,
    राजराजेश्वरी की पूजा से मिलता है आशीर्वाद हर,
    यहां की नदियाँ भी गाती हैं देवी की महिमा,
    हर भक्त की मन्नत होती है सफल और सच्ची।

देवलगढ़ का राजराजेश्वरी मंदिर: प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: देवलगढ़ का राजराजेश्वरी मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तर: यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है और धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व रखता है।

प्रश्न 2: राजराजेश्वरी मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?
उत्तर: इस मंदिर का निर्माण राजा अजयपाल द्वारा 16वीं शताब्दी में करवाया गया था।

प्रश्न 3: राजराजेश्वरी मंदिर किस देवी को समर्पित है?
उत्तर: यह मंदिर देवी दुर्गा के एक रूप माता राजराजेश्वरी को समर्पित है।

प्रश्न 4: मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
उत्तर: देवलगढ़ प्राचीन समय में गढ़वाल की राजधानी थी। राजा अजयपाल ने अपनी राजधानी श्रीनगर स्थानांतरित करने से पहले यहाँ कई मंदिरों का निर्माण करवाया।

प्रश्न 5: मंदिर की वास्तुकला की विशेषता क्या है?
उत्तर: मंदिर की वास्तुकला कुमाऊँ और गढ़वाल शैली का सुंदर मिश्रण है। इसमें पत्थरों पर की गई नक्काशी और भव्य मूर्तियाँ हैं।

प्रश्न 6: मंदिर में कौन-कौन से प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं?
उत्तर: नवरात्रि, दुर्गाष्टमी, और विशेष पूजन समारोह यहाँ बड़े हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।

प्रश्न 7: देवलगढ़ के राजराजेश्वरी मंदिर तक कैसे पहुँचा जा सकता है?
उत्तर: यह मंदिर श्रीनगर से लगभग 19 किमी और ऋषिकेश से लगभग 125 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है।

प्रश्न 8: मंदिर से जुड़ी कोई विशेष मान्यता क्या है?
उत्तर: मान्यता है कि माता राजराजेश्वरी अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं। मंदिर का जलता हुआ अखंड दीपक दिव्यता का प्रतीक माना जाता है।

पौड़ी गढ़वाल: इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक धरोहर

टिप्पणियाँ