यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा: बैरासकुंड की अनोखी परंपरा

यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा: बैरासकुंड की अनोखी परंपरा

उत्तराखंड, देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध, अपने पवित्र मंदिरों और अनूठी धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। चमोली जिले के घाट विकासखंड स्थित बैरासकुंड में एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान शिव के साथ लंकापति रावण की भी पूजा होती है। यह स्थान अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के कारण भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।


बैरासकुंड का पौराणिक महत्व

बैरासकुंड में स्थित भगवान शिव का मंदिर अत्यंत प्राचीन और पवित्र है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दस हजार वर्षों तक कठोर तपस्या की थी।

  • रावण शिला और यज्ञ कुंड: इस स्थान पर आज भी रावण द्वारा तपस्या के लिए उपयोग किए गए रावण शिला और यज्ञ कुंड मौजूद हैं।
  • शिव स्वयंभू लिंग: बैरासकुंड के शिव मंदिर में भगवान शिव स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं।

स्कंद पुराण के अनुसार

'स्कंद पुराण' के केदारखंड में उल्लेख मिलता है कि रावण ने यहां कठोर तपस्या करते हुए अपने नौ शीशों को यज्ञ कुंड में अर्पित कर दिया। जैसे ही वह अपना दसवां शीश समर्पित करने जा रहा था, भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसे मनवांछित वरदान दिया।

रावण ने भगवान शिव से सदा इस स्थान पर विराजने का वरदान मांगा। इस वरदान के कारण बैरासकुंड को भगवान शिव की पवित्र भूमि माना जाता है।


रावण की रचनाएं और दशोली का नामकरण

क्षेत्रीय परंपराओं के जानकारों के अनुसार, रावण ने इसी स्थान पर नाड़ी विज्ञान और शिव स्त्रोत की रचना की थी।

  • दशोली का नामकरण: मान्यता है कि इस क्षेत्र का नाम रावण (दशानन) के नाम पर ही पड़ा। दशोली शब्द दशमोली का अपभ्रंश है, जो रावण के दस सिर का प्रतीक है।
  • रावण शिला पर पूजा: बैरासकुंड में रावण शिला के पास रावण की पूजा की जाती है।

रामलीला और विजयादशमी का विशेष स्वरूप

  • रावण की तपस्या से शुरू होती है रामलीला: दशोली क्षेत्र में श्री रामलीला मंचन रावण की तपस्या और भगवान शिव द्वारा वरदान दिए जाने से शुरू होता है। इसके बाद राम जन्म की लीला का मंचन होता है।
  • विजयादशमी पर रावण का पुतला दहन नहीं होता: इस क्षेत्र में विजयादशमी पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। यह परंपरा रावण के प्रति श्रद्धा और सम्मान को दर्शाती है।

कैसे पहुंचें बैरासकुंड

बैरासकुंड पहुंचने का मार्ग बेहद सुगम है।

  1. ऋषिकेश से नंदप्रयाग: ऋषिकेश से बदरीनाथ हाईवे पर लगभग 198 किमी की दूरी तय कर नंदप्रयाग पहुंचें।
  2. नंदप्रयाग से बैरासकुंड: नंदप्रयाग से वाहन द्वारा 24 किमी की दूरी तय कर गिरी पुल के रास्ते बैरासकुंड पहुंचा जा सकता है।
  3. रहने और खाने की व्यवस्था: बैरासकुंड में मंदिर समिति द्वारा ठहरने और खाने की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

बैरासकुंड: श्रद्धा और आस्था का केंद्र

बैरासकुंड न केवल भगवान शिव की पवित्र भूमि है, बल्कि यह लंकापति रावण के तपस्या स्थल और रचनात्मक योगदान का भी गवाह है। यहां की परंपराएं और मान्यताएं इस स्थान को अद्वितीय बनाती हैं। यह धार्मिक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक धरोहरों का संगम है, जिसे हर श्रद्धालु को अवश्य देखना चाहिए।


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