पौड़ी राजनैतिक सम्मेलन चमोली जनपद में सत्याग्रह

पौड़ी राजनैतिक सम्मेलन

सारे देश में अब तक सत्याग्रह शुरू हो गया था। किन्तु गढ़वाल जनपद में सत्याग्रह की रूपरेखा अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई थी। इसका प्रमुख कारण गढ़वाल में कांग्रेस के संगठन और नेतृत्व के संचालन के लिये नेताओं की आपसी सहमति न होगा। अब तक मुकुन्दी लाल ने भी कांग्रेस छोड़ दी थी जिससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के समक्ष कठिनाई उत्पन्न हो रही थी। दुगड्डा सम्मेलन की घोषणा के अनुसार 9 जून 1930 को पौड़ी में एक राजनीतिक सम्मेलन बुलाया गया।

Satyagraha in Pauri Political Conference Chamoli district 
इसमें कुमाऊँ के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भी बुलाया गया था। सम्मेलन में हरगोविन्द पन्त को सभापति बनाया गया। सम्मेलन के अंत में पौडी में जिला कांग्रेस कमेटी की स्थापना की गयी। एडवोकेट जीवानन्द डोभाल को कमेटी का अध्यक्ष व एडवोकेट भोलादत्त को मंत्री नियुक्त किया गया। अधिवेशन में देहरादून से भक्तदर्शन भी आये थे। इन्होंने कांग्रेस के तत्वाधान में सत्याग्रह समिति गठित की। समिति ने लगान बन्दी आन्दोलन, शराब की दुकानों पर धरना, सार्वजनिक भवनों और स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराना तथा सामूहिक सत्याग्रह कर ब्रिटिश शासन के विरोध करना सुनिश्चित किया।

• गढ़वाल कांग्रेस का कोट व श्रीनगर सम्मेलन

अभी तक हुये सम्मेलनों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की कोई निश्चित रणनीति नहीं बनी थी। अतः इस आन्दोलन को गढ़वाल में अन्तिम रूप देने के लिये जून 1930 में कोट सितोनस्यूं (पौड़ी गढ़वाल) में कांग्रेस का एक राजनैतिक सम्मेलन हुआ। इसकी अध्यक्षता भी हरगोविन्द पन्त ने की। उसमें महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री, लाला छज्जूराम तथा उनकी पुत्री सरस्वती देवी ने भाग लिया था। सम्मेलन में पेशावर काण्ड का समर्थन किया गया और प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें टिहरी के तिलाडी कांड पर राजशाही के अत्याचारों की भर्त्सना करते हुये कृषक समस्याओं के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई। सम्मेलन में सत्याग्रह की योजनाओं को अन्तिम रूप देते हुये उत्तरी और दक्षिणी गढ़वाल में एक साथ आन्दोलन चलाने का निर्णय किया गया। इसके बाद एक अन्य सम्मेलन श्रीनगर में भाष्करानन्द मैठाणी की अध्यक्षता में किया गया। गढ़वाल के उत्तरी व दक्षिणी हिस्सों में आन्दोलन के सफल संचालन के लिये दो दल बनाये गये। एक दल प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में देवप्रयाग, उदयपुर, दुगड्डा की ओर गया तथा दूसरा दल राम प्रसाद नौटियाल के नेतृत्व में चमोली की तरफ गया।

• चमोली जनपद में सत्याग्रह

चमोली जनपद ब्रिटिश गढ़वाल के उत्तरी भाग में स्थित है यहाँ रामप्रसाद नौटियाल को सत्याग्रह के संचालन के लिये भेजा गया। इनके साथ दल में 15 अन्य कार्यकर्ता भी श्रीनगर से चमोली तक पैदल चलकर गये। यहाँ देवकीनन्दन ध्यानी पहले से ही जनता को आन्दोलन करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। सत्याग्रह का प्रचार करते हुए एक दल ने बद्रीनाथ मन्दिर पर तिरंगा झंडा फहराया। वापस चमोली लौटकर एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने की। सभा में आस पास के व्यक्तियों के अतिरिक्त दूरदराज की ग्रामीण जनता भी भाग लेने के लिये एकत्रित हुई। सभी ने ब्रिटिश प्रशासन के साथ असहयोग की नीति को दोहराया। डिप्टी कमिश्नर इबटसन भी सभा में आया और सर्वप्रथम बलि के रूप में देवकी नन्दन ध्यानी को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर जनता को सत्याग्रह के लिये उत्तेजित करने का आरोप लगाया। पौड़ी जेल में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा था। उन्हें कठोर यातनायें दी जा रही थी। घटना के प्रतिरोध में जनता ने इबटसन को जब वह नैनीताल से लौट रहा था, जगह-जगह कोटद्वार, दुगड्डा तथा पौड़ी में काले झंडे दिखाये और अपना विरोध प्रकट किया।

• इबटसन कांड

इबटसन के विरोध प्रदर्शन से नाराज होकर सरकार ने प्रदर्शनकारी युवकों प्रताप सिंह नेगी, केशवचन्द्र जोशी तथा गंगादत्त जोशी आदि सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया। पौड़ी की जनता को जब इन सब बातों का पता लगा तो 18 जुलाई 1930 को कोतवाल सिंह नेगी एवं भोलादत्त चन्दोला के साथ एक विशाल जन-समूह कण्डोलिया के मैदान में एकत्रित हुआ। इबटसन के निवास स्थान के समीप इबटसन विरोधी नारे लगाये गये व उसे काले झण्डे दिखाये। पौड़ी का विरोध प्रदर्शन सबसे बड़ा प्रदर्शन था। आक्रोशित भीड़ ने इबटसन को घेर लिया व रास्ता रोकने की कोशिश की। इतनी भीड़ को एक साथ देखकर इबटसन घबरा गया व उन पर नियन्त्रण करने के लिये उसने भीड़ पर घोड़े दौड़ा दिये और दायें बायें हण्टर भी चलवा दिये। प्रर्दशनकारियों ने भी जवाब देते हुए कंकड़ व पत्थर फेंके किन्तु पुलिस की सहायता से डिप्टी कमिश्नर यहाँ से बच निकला। पौड़ी पहुँचकर उसने प्रदर्शनकारियों को दण्ड देने के लिये दमनात्मक कार्यवाही का आदेश दे दिया। इस प्रकार कांग्रेस ने अपनी संगठित कार्य प्रणाली से आन्दोलन को दिशा निर्देशित किया व जनता को आन्दोलन के लिये व कांग्रेस का साथ देने के लिये प्रेरित किया।

• शराब बन्दी आन्दोलन

नशे की बढ़ती हुयी प्रवृत्ति से समूचा कोटद्वार क्षेत्र दूषित हो रहा था। युवा अपने लक्ष्य से भटक रह थे। प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में कोटद्वार, दुगड्डा में सत्याग्रहियों ने शराब की भट्टियों और दुकानों की नाकेबन्दी का अभियान शुरू किया। इसके लिये उन्होंने कोटद्वार में एक सत्याग्रह शिविर का आयोजन किया। दक्षिण गढ़वाल के लैन्सडौन तहसील में सत्याग्रहियों ने शराब की दुकानों पर धरना प्रदर्शन किया। मई 1930 को जगमोहन सिंह नेगी सहित छवाण सिंह, नारायण दास महन्त और गोपाल सिंह के साथ स्वयं सेवकों ने योजनाबद्ध ढंग से शराब की भट्टियों पर धावा बोलकर उन्हें नष्ट कर दिया। जिलाधिकारी एक्टन ने उनके विरूद्ध पुलिस बल भेजा व शराब की दुकानों पर धरना दे रहे सत्याग्रहियों पर लाठियां बरसाई। सत्याग्रह कार्यकम को आगे बढाते हुए अक्टूबर 1930 को लैन्सडौन के यमकेश्वर में एक राजनैतिक सम्मेलन सम्पन्न हुआ। सम्मेलन को जगमोहन सिंह नेगी, कोतवाल सिंह नेगी, नरदेव शास्त्री, हरगोविन्द पन्त आदि कई नेताओं ने सम्बोधित किया।


सम्मेलन में सत्याग्राहियों के साथ उमड़ी भीड़ के भय से पुलिस ने कोई दमनात्मक कार्यवाही नहीं की तथा रक्षात्मक कार्यवाही करते हुए सभा स्थल के चारों ओर घेरा डाल दिया था। सभा में नेताओं ने जनता को सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अर्न्तगत देश में हो रही घटनाओं व गढ़वाल में हो रही सत्याग्रह आन्दोलन की घटनाओं से अवगत कराया एवं जनता को संगठित होकर ब्रिटिश प्रशासन के विरोध में आन्दोलन छेड़ने को कहा। पुलिस ने सभा समाप्त होने पर 18 सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी के वारंट दिखाकर उन्हें बन्दी बना लिया।

• जहरीखाल में झंडा सत्याग्रह

गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में सत्याग्रह करने के बाद नवयुवकों ने राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित होकर लैन्सडौन छावनी के निकट शैक्षिक केन्द्र जहरीखाल हाई स्कूल में तिरंगा झंडा फहराने का संकल्प लिया। संकल्प के बाद स्वयं सेवको का एक दल जहरीखाल के लिये चल पड़ा। बलदेव सिंह आर्य ने इसका नेतृत्व किया। रात्रि हो जाने पर रास्ते में एक मन्दिर में रूके तथा अगले दिन प्रातः ही विद्यालय पहुँच गये। सत्याग्रहियों ने विद्यालय के शिखर पर बिना किसी रूकावट के तिरंगा झंडा फहराया, इसके बाद वही पर प्रार्थना सभा की। राष्ट्रीय गीत की आवाज सुनकर विद्यालय परिसर में पुलिस पहुँच गयी। सत्याग्रहियों ने मैदान नहीं छोड़ा और राष्ट्रगान गाते रहे। लाठियों का भी जब उन पर असर नहीं हुआ तो पुलिस ने उन्हें बन्दी बना लिया और लैन्सडौन कारावास में डाल दिया। 

लगान बन्दी कार्यकम

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अन्तर्गत भूमि पर अतिरिक्त कर न देने का कार्यकम भी था। रामप्रसाद नौटियाल गुजडू क्षेत्र के कृषकों के साथ मिलकर कार्यक्रम शुरू करना चाहते थे। किन्तु उस समय कांग्रेस में नरमपंथी विचारधारा के लोग अधिक थे। ये लोग आन्दोलन को अधिक व्यापक व उग्र रूप में फैलाने की हिम्मत न कर सके। आन्दोलन की सीमाओं को लांघने की चिन्ता व हिचक के कारण  नमक आन्दोलन को प्रमुख अस्त्र नहीं बनाया जा सका। गढ़वाल में प्रशासन ने नवीन भू-सुधार लागू कर दिये और कृषको पर 33 प्रतिशत कर का अतिरिक्त बोझ डाल दिया। इससे प्रशासन की आय में वृद्धि हुई किन्तु पहाड़ के किसानों की आर्थिक स्थित दयनीय हो गयी। थान सिंह रावत, छवाण सिंह और सदानन्द सदगुरू बाबा प्रमुख थे, जिन्होंने अपने को कृषक समस्याओं के साथ सम्बद्ध करते हुए गुजडू क्षेत्र में लगान बन्दी आन्दोलन में जनता का साथ दिया। कृषकों के इस संगठित कार्य से प्रशासन की जड़ें हिल गयी। मालगुजारों ने भी आन्दोलनकारियों के साथ सहयोग किया जिससे प्रशासन को लगान वसूल करने में कठिनाई उत्पन्न हुई। प्रशासन ने सबक सिखाने के लिये खाटली व गुजडू की कृषक जनता पर सामूहिक आर्थिक दण्ड लगाकर 36 हजार रूपये वसूल किये।

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