उत्तराखंड मेरी मातृभूमि - एक गीत, एक वंदना - Uttarakhand, my homeland - a song, a tribute.

उत्तराखंड मेरी मातृभूमि - एक गीत, एक वंदना

उत्तराखंड, एक ऐसा प्रदेश जिसे प्रकृति ने अपार सुंदरता और पवित्रता से नवाज़ा है। इसके पर्वत, नदियाँ, तीर्थस्थल, और परंपराएँ हर उत्तराखंडी के हृदय में बसती हैं। इस भूमि की महिमा का बखान स्वर्गीय गिरीश चंद्र तिवाड़ी 'गिर्दा' ने अपनी अद्वितीय रचना "उत्तराखंड मेरी मातृभूमि" के माध्यम से किया है।

इस गीत के माध्यम से गिर्दा ने न केवल उत्तराखंड की प्राकृतिक सौंदर्य की बात की है, बल्कि इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी बहुत ही सरल, परंतु गहन शब्दों में प्रस्तुत किया है। उन्होंने उत्तराखंड को अपनी मातृभूमि और पितृभूमि कहकर संबोधित किया है, जो उनकी इस भूमि के प्रति अपार प्रेम और श्रद्धा को दर्शाता है।

गीत का भावार्थ:

गीत की शुरुआत में गिर्दा उत्तराखंड के हिमालय का जिक्र करते हैं, जिसे वे 'हिम से भरे मुकुट' के रूप में वर्णित करते हैं। इसके साथ ही गंगा की पवित्र धारा का उल्लेख करते हुए इस धरती को पावन और जीवनदायिनी बताया गया है।

गीत में उत्तराखंड की भौगोलिक विशेषताओं का भी उल्लेख है - तराई और भाबर की भूमि, जो इस प्रदेश को कृषि और वन्य जीवन से समृद्ध करती है। बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे पवित्र तीर्थस्थलों का भी गीत में विशेष महत्व है। गिर्दा ने कनखल और हरिद्वार जैसे तीर्थों का उल्लेख कर यह भी कहा है कि इस धरती पर हर कदम पवित्रता से भरा है।

काली और धौली गंगा नदियों का जिक्र करते हुए उन्होंने उत्तराखंड की पवित्रता को और अधिक गहराई से व्यक्त किया है। वे इस भूमि को देवी पार्वती का मायका और भगवान शिव का ससुराल कहकर इसका धार्मिक महत्व बताते हैं।

गीत के अंत में गिर्दा इस बात पर गर्व करते हैं कि उनका जन्म इस महान भूमि में हुआ और मरते समय भी वे यहीं की मिट्टी में समर्पित होना चाहते हैं। इस गहन भावना के साथ उन्होंने इस धरती की जयजयकार की है।

उत्तराखंड मेरी मातृभूमि - गीत के बोल:

उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मातृभूमि यो मेरी पितृभूमि ,
ओ भूमि तेरी जय-जयकारा... म्यर हिमाला।

ख्वार मुकुटो तेरो ह्युं झलको, ख्वार मुकुटो तेरो ह्युं झलको,
छलकी गाड़ गंगा की धारा... म्यर हिमाला।


तली-तली तराई कुनि, तली-तली तराई कुनि,
ओ कुनि मली-मली भाभरा ...म्यर हिमाला।

बद्री केदारा का द्वार छाना, बद्री केदारा का द्वार छाना,
म्यरा कनखल हरिद्वारा... म्यर हिमाला।

काली धौली का बलि छाना जानी, काली धौली का बलि छाना जानी, 
वी बाटा नान ठुला कैलाशा... म्यर हिमाला।

पार्वती को मेरो मैत ये छा, पार्वती को मेरो मैत ये छा, 
ओ यां छौ शिवज्यू कौ सौरासा...म्यर हिमाला।

धन मयेड़ी  मेरो यां जनमा, धन मयेड़ी  मेरो यां जनमा ….
ओ भयो तेरी कोखि महान... म्यर हिमाला।

मरी जूंलो तो तरी जूंल, मरी जूंलो तो तरी जूंलो…
ओ ईजू ऐल त्यार बाना… म्यर हिमाला। 

गीत का विश्लेषण:

गिर्दा की यह कविता सिर्फ़ उत्तराखंड की भौगोलिक विशेषताओं और धार्मिक महत्त्व का वर्णन नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक यात्रा है। उनके लिए उत्तराखंड न केवल एक स्थान है, बल्कि एक पहचान, एक गर्व का प्रतीक है। गिर्दा का उत्तराखंड प्रेम हर पंक्ति में झलकता है, जो हर उत्तराखंडी के दिल में गहरे बसता है।

उनके इस गीत में हमें उत्तराखंड के हिमालय की ऊँचाइयाँ, गंगा-यमुना की पवित्रता, बद्रीनाथ और केदारनाथ के तीर्थस्थल, और इस भूमि की अद्भुत विविधता का एहसास होता है। गिर्दा की लेखनी ने इस गीत को एक वंदना का रूप दे दिया है, जिसमें मातृभूमि के प्रति आदर और श्रद्धा का भाव प्रकट होता है।

निष्कर्ष:

"उत्तराखंड मेरी मातृभूमि" सिर्फ़ एक गीत नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है। यह गीत हमें हमारी संस्कृति, परंपराओं और भूमि के प्रति प्रेम और गर्व का एहसास कराता है। गिर्दा की यह रचना हमेशा उत्तराखंड की आत्मा को जीवंत रखेगी और हमें हमारी मातृभूमि की महिमा का बोध कराएगी।

जय उत्तराखंड! जय मातृभूमि!

यह भी पढ़ें

  1. बहुत ही सुंदर कविता #उत्तराखंड_माँगे_भू_कानून " तुझे फर्क पड़ता क्यूं नहीं।"
  2. हिमालय की पुकार - समझो और संभलो!
  3. यादें और बचपन - एक घर की दिल छू लेने वाली पुकार
  4. खतड़ुआ पर कविता
  5. घिंगारू: पहाड़ों की अनमोल देन
  6. जागो, मेरे पहाड़ - पहाड़ की पुकार
  7. मनो सवाल - समाज की विडंबनाओं पर एक कटाक्ष
  8. गाँव की यादें: "आपणी गौ की पुराणी याद"
  9. आपणी गौ की पुराणी याद
  10. सीखने की प्रक्रिया - प्रकृति और पर्वों से अर्जित जीवन के पाठ
  11. गुनगुनाओ धै हो, यो पहाड़ी गीत - सब है मयाली
  12. कविता गाँव की मिट्टी पहाड़ी जीवन पर आधारित
  13. आपणी गौ की पुराणी याद: गाँव की भूली-बिसरी यादों का स्मरण 

टिप्पणियाँ