पहाड़ के दर्द और संघर्ष की गूंज
कविता:
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ
जो मिन्नत करि, गों गों बठै वोट लिनयान
बाद में ऊनि, हामरी नौकरी बेची दिन्यान
युवा दर दरे, ठोकर खान खन मजबूर छ
दिल्ली आयी लगे, हामु खन भौते दूर छ
रोज हामु बठै, मूसा बिरालु झ खेल हुननोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
गरीब गुरपा परेशान छन, सुअर, गुनी बानरों ले
गौं छोड़ना खन मजबूर छन, इन कारणों लै
भैरो कोई सेठ, हामरी जमीनों गटकन्नो
भू कानून हामरो, साल दर साल अटकन्नो
दिन प्रतिदिन खेती बाड़ी हाल खराब हुननोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
दूर दराज बठै, कसीके पूजी र अस्पताल
खुदे बेहाल, बीमार छ अस्पताल
मासूम दयु दिन बठै, इलाजे थें तरसी र
दिगो भ बठै लाचार, बाप लै तड़पी र
मरिया नन्तिना के, काखि में लि रुननोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
सबोकि, शिक्षा की गारंटी छ कुननयान
सुनना में आरो, मल्ली बठै पैसा खूब बगनयान
गलती बाथरुमे छते कि छि, जो गिरि गे
मरया नन्तिना के, सहायता राशि ले मिली गे
बस ऐसी के, खेल में खेल हुननोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
चेली बचाओ चेली पढ़ाओ को नारो छ
कामा नाम पर खाली छारो छ
चेली कसी के पढ़ी लेखी बढ़ ने
उ इन हवसी रानकरा हाथ चढ़ ने
पवित्र पहाड़ अय्यासी को अड्डा हैगोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
आपनी भाषा मे काम काजो नहान अधिकार
ये बात में सबोलै करन पडलो विचार
आओ मिली आपनी भाषा संस्कृति बचुनु
सब मिली सिये सरकार के ले उठुनु
हामरी बोली भाषा, संस्कृति लोप हुन्नोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
मिलनो होलो, हाम सबो ले हिटनो होलो
जोर लगा लड़नो होलो, भिड़नो होलो
अगर हाम चानु, देव भूमि भलो "राजू"
मिली अध्यार बठै, लड़नो होलो, लड़नो होलो
दाज्यू हामरो पहाड़, हामु सबो बोलुनोछ
उठो जागो रे! मेरो पहाड़ रुननोछ।
अर्थ और विश्लेषण:
यह कविता हमारे पहाड़ों की पीड़ा, संघर्ष और दुर्दशा की एक हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। राजू पाण्डेय ने अपनी कविता के माध्यम से उन समस्याओं को उजागर किया है, जिनसे आज पहाड़ का हर निवासी जूझ रहा है। कविता पहाड़ों की उन चुनौतियों को हमारे सामने रखती है, जिनका सामना करते हुए वहां के लोग अपनी पहचान और संस्कृति को बचाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीतिक छल और बेरोजगारी:
कविता में पहले ही शेर में यह बताया गया है कि कैसे कुछ नेता वोट हासिल करने के बाद नौकरियों को बेच देते हैं और युवा पीढ़ी को बेरोजगारी के दलदल में धकेल देते हैं। यह शेर हमारे समाज में फैले भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की गंभीर समस्या की ओर इशारा करता है।जमीन और खेती की समस्या:
पहाड़ों में ज़मीनों की अंधाधुंध खरीद-बिक्री और खेती की बिगड़ती स्थिति का वर्णन करते हुए, यह कविता भू-कानूनों के अटकने और खेती-बाड़ी की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करती है।स्वास्थ्य सेवाओं की कमी:
कविता में बताया गया है कि दूरदराज के क्षेत्रों में अस्पतालों की कमी और खराब स्वास्थ्य सेवाओं के कारण लोग इलाज के लिए तरसते हैं। यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को उजागर करती है।शिक्षा की दुर्दशा:
कविता शिक्षा की गारंटी के खोखले वादों और सरकारी योजनाओं की असफलता की ओर इशारा करती है। यह दिखाता है कि कैसे शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के कारण पहाड़ों के बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल पाती।चेली बचाओ चेली पढ़ाओ अभियान की विफलता:
"चेली बचाओ चेली पढ़ाओ" के नारे का व्यंग्यात्मक उल्लेख इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे यह अभियान केवल नारों तक सीमित रह गया है और वास्तव में लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।भाषा और संस्कृति की सुरक्षा:
कविता में यह संदेश दिया गया है कि हमारी बोली, भाषा, और संस्कृति लुप्त होती जा रही है, जिसे बचाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा।संकल्प और एकजुटता की आवश्यकता:
कविता के अंत में पहाड़ के लोगों को एकजुट होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का आह्वान किया गया है। यह संदेश देता है कि यदि हम अपने पहाड़ों को सुरक्षित और सशक्त बनाना चाहते हैं, तो हमें एकजुट होकर लड़ना होगा।
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