पहाड़ी की यहां कविता आप कि दिल कि बाते लोकतंत्र पर पहाड़ क पीड़

 पहाड़ी की यहां कविता आप कि दिल कि बाते "लोकतंत्र पर पहाड़ क पीड़...." 

लोकतंत्र पर पहाड़ क पीड़....

कस कसा स्वांग दिखाय

गांधि कैं सब ठगनैं आय

गौ का स्वैण दिखै बे

ठुल ठुल शहर बंणाय

पहाड़ी की यहां कविता आप कि दिल कि बाते "लोकतंत्र पर पहाड़ क पीड़...."

यौं मुख बगियै राय

ऊंठ सुकियै राय

अंग्रेजों क राज ग यो

सुकिल कपड़ि आय

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पैली टोपि छाजि

बल्दूं कि जोड़ि भाजि

जवाहार कट पैरि

गौंनू में आस जागि

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चमचमान  हौंस आय

लू में कांस सांटि ल्याय

सिलफरा भनां ल जसि

तौल कस्यार खाय

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को झोपड़ि कं रौ

को दी कैं ल्यों रौ

जाति कुजाति क 

को झगड़ लगौं रौ

पहाड़ी की यहां कविता आप कि दिल कि बाते "लोकतंत्र पर पहाड़ क पीड़...."

हम लै पड़ा फैलां

बकार बाघ दगण रैंला

यस मुलुक बणल

गौं दिन बदई जैंला

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बिकास क औफिस खुला

पधानो कि भाग खुला

जैल दन्याव नि हाल

छै ऊ किरसांण ठुला

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कस य बखत आय

टोपि कैं ज्वत ल खाय

पहाड़ ड़ाढ़ हालनीं

भाबर में बहि रै माय 

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भाबर का भाग जागा

मनखि सब उथैं भाजा

गौं की ठेकि ढिनाइ गई

दै दुध पैकेट म् गा जा


खेती सब बंजै हाला

च्याल अब कहाँ जाला

रूपैं कतुक ल्याला

खांहणि त र्वटै खाला

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ठुल ठुल औफिस बंन

फैक्ट्री बाजारों रं न

बांणि बांणि मनखि आया

घर पन चुंणमनं

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गाव् में कुथाव डाल

च्यला तू लै त जालै

भूड़ भाबर पन

द्वि र्वाट कमै खालै

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मकान निसासि रौल

पटांगंण कहैं रो ल

उखोव गिच खोलि 

सुंणूं बांज खुपावांक बोल

( दिनेश कांडपाल )

उत्तराखंड के जगलो मैं कुछ इस तरह की आवाज केवल काफल फल पकने पर अति हैं
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं श्रीमती बसंती बिष्ट 

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