इस कविता के माध्यम से पहाड़ की कठिनाइयों को बयां किया गया है

 पहाड़ कि व्यथा

इस कविता के माध्यम से  पहाड़ की कठिनाइयों को बयां किया गया है

पहाड़ कि व्यथा

कतुकै  सरकार  बदई    

न ग्वाव  न गुसैं  हमार

यों पहाड़ बांजै रै गयीं  

खेति बांजी  आर पार


नौव उजड़ा गौं ल उजड़ा

उजाड़  तीज त्यार

स्याल्दे बिखोति उदेखि गयीं  

उसांसि रईं घर द्वार


द्वर्याओं की आन छुटि

शान पड़ी लम्पस्यार

मल देसिया परदेस गया

घरुंकि हिल दन्यार


नगार छूटा दमुवां छूटो  

छूट   झ्वाड़   श्रृंकार

फुलदेई का टुपार भुलीं

सब नानतिना अनार


बुड़ि आम् क हंक लै रौ 

घर  देस परिवार

घर घर क पू छ में है रै  

भुतकई कि भर मार


छ्व ल पुज ग्व ल पुज

चढै हा लि ज्यौनार

चेलिबेटि मुख दिखै गयीं

बधाई सत्कार 


द्वी दिन कि चहल पहल  

फिर  उसै अन्यार

जागरि क जोर में जरा 

खुलिनि कुड़ि क द्वार

© दिनेश कांडपाल

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