कविता "कितना गिरते जाएंगे ?"
कितना गिरते जाएंगे ?
कितना भ्रम बढ़ाएंगे ?
जब भ्रमित जन का भ्रम मिटेगा!
...फिर कैसे नजर मिलाएंगे ???
कितना गिरते जाएंगे ?
कितना भ्रम बढ़ाएंगे ?
तमसी सूरज की आभा को,
कब तक ढकती जाएगी!
चंडाल चौकड़ी मिट जाएंगी,
शुभध्वजा किरण लहराएगी!
है अन्याय चरम से आगे !
सोए खुद को कहते जागे !
अग्नि जैसे धुंए से ढकती !
थोड़ी दूर से नही है दिखती!
यूँ ही अन्याय से न्याय घिरा है !
भ्रमित लोगों का ज्ञान गिरा है !
सच्चों को खुलकर दोषी कहते !
मक्कारों की बात मे बहते !
ये बिना दोष के दोषी बनते !
सत राष्ट्रवाद से रोषी बनते !
यह भ्रम बहुत ही गहरा है !
...यह भ्रम बहुत ही गहरा है !
जब भ्रमित जन का भ्रम मिटेगा!
...फिर कैसे नजर मिलाएंगे ???
कितना गिरते जाएंगे ?
कितना भ्रम बढ़ाएंगे ???
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