✍ *गढवली मा कविता*
परदेस और पहाड़ी गांव का फर्क दिखाया है इस कविता द्वारा
ये दिल्ली का बाजार मा
पैसों का बुखार मा
कुड़ी पुंगड़ी छोड़ के
बैठयां छो उडियार मा
किराया कु कमरा
न जिंगला न गुठियार च
गैरों की भीड़ मा
न गाँव वालों की बहार च
न दगड्यों की भीड़ च
न मच्छों कु ठुंगार च
न टिचरी कु पव्वा च
न देशी की बहार च
मतलबी छिन लोग इख
यकुली छो परिवार मा
न ब्वेई बाबा कु दुलार च
न भे बन्दों कु प्यार च
सगोडा पतोडा छुडणा की
सजा मिलणी आज
खेती बड़ी छोड़ी की
रकरयादूँ छो बाजार मा
रूखी सुखी खान्दु छो
आम का आचार मा
ये दिल्ली का बाजार मा......
रैं लग्यै दिया।
- यह कविता बदलते ज़माने के परतीओ जमाना य कसि जै हाव चलि भाई
- पहाड़ी की यहां कविता आप कि दिल कि बाते लोकतंत्र पर पहाड़ क पीड़
- उत्तराखंड के चुनाव देहरादून, गैरसैंणा चक्कर में।
- पहाड़ में हुने वाला यहां फल का नाम। किस किस को पता है
- कविता चीड़ और देवदार के के पेड़ों से यह सीख (Learn this from the poetry of pine and cedar trees)
- आपके सामने पेश है फिर एक और कविता गमले में लगा गुलाब
- कविता कितना गिरते जाएंगे ?
- पलायन: एक चिंतन छोटा सा गांव मेरा , पूरा बिग बाजार था...
- इस कविता के माध्यम से पहाड़ की कठिनाइयों को बयां किया गया है
- जैसे कविता (पहाड़ी कविता)
- कविता कोश ;पहाड़ की बेटियाँ
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- परदेस और पहाड़ी गांव का फर्क दिखाया है इस कविता द्वारा
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