महागौरी देवी: नारी शक्ति का प्रतीक और उनकी कथा - Mahagauri Devi: Symbol of female power and her story

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अष्टमं महागौरी

महागौरी देवी, नारी शक्ति का प्रतीक, आठवीं मूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्होंने भगवान शिव को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए पर्णकुटी में कठोर तप किया। महागौरी का स्वरूप गौरवर्ण है और उनके नेत्रों से संसार के प्राणियों के लिए अमृतरूपी प्रेम बरसता है। जो प्राणी उनके दरबार तक पहुंचकर चरणों का ध्यान करता है, उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है और परलोक में भी उत्तम स्थान मिलता है।

महागौरी की कथा

एक समय, मर्त्यलोक में मानवों द्वारा यज्ञ-यज्ञादि कर्मों के न होने से इन्द्रादि देव चिंतित हुए। ब्रह्मदेव के आदेश पर उन्होंने श्री महालक्ष्मी की आराधना की। महालक्ष्मी ने अपने पुत्र कामदेव को सहायता के लिए भेजा। कामदेव और राजा वीरव्रत के सैनिकों के बीच घोर युद्ध हुआ।

राजा वीरव्रत ने शंकर जी की आराधना की और विजय का वरदान प्राप्त किया। उन्होंने कामदेव पर शंकर-प्रेषित त्रिशूलात्मक बाण चलाया। कामदेव की मृत्यु पर लक्ष्मी ने उसे पुनर्जीवित किया। कामदेव के मन में शिवजी के प्रति द्वेष का भाव आ गया। त्रिपुराम्बा की आराधना कर उसने शिवजी को हटाने की प्रतिज्ञा की।

तब महालक्ष्मी ने त्रिपुराम्बा से प्रार्थना की। त्रिपुराम्बा द्वारा प्रेषित गौरी प्रकट हुईं और उन्होंने समझाया कि शिवजी सर्वोच्च हैं, उनसे स्पर्धा करना उचित नहीं है।

कामदेव ने गौरी की बातों को अनसुना किया और शिवजी को जीतने का निर्णय लिया। गौरी ने उसे शाप दिया कि "तुम शिवजी के द्वारा दग्ध होगे।" इसके बाद, लक्ष्मी और गौरी के बीच युद्ध आरंभ हुआ, जिसे ब्रह्मा और सरस्वती की मध्यस्थता से समाप्त किया गया।

कामदेव ने अपनी माता से त्रिपुराम्बा के सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का उपदेश लिया और मन्दराचल की गुहा में आराधना करने लगा। भगवती ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिया और कहा, "हे काम! आज से तुम अजेय हो।"

महागौरी देवी वृपभ की पीठ पर विराजमान हैं, उनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है, और चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और वाण लिए हुए हैं। उनके कानों में रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते हैं।

महागौरी की आराधना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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