उत्तराखंड के गाँवों की यादें: दोस्ती, प्रेम और पलायन की दास्तान - Memories of villages in Uttarakhand: tales of friendship, love, and migration.

गांव की यादें और दोस्ती के प्यारे पल

हे भैजि, ...... कख़ा छिन्न।
ब्योडु तिमला पक्यां छिन्न।
ब्याळि ओन्दा... खीर खंदा,
आज भैंसा... थक्यां छिन्न।

गाँव के अनमोल पल, जैसे तिमला (अंजीर) के पकने का मौसम और ब्याळि (रात) में खीर खाने का उत्साह, हमें हमेशा याद दिलाते हैं कि हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं। यहां तक कि भैंसा की थकान भी इन छोटे-छोटे पलों को खास बना देती है।


दोस्ती का रिश्ता: मौसमी हवाओं के साथ

मौसम ठन्डु छ जरा अपड्डु ख्याल रख्या,
अपणी दोस्ती इनी बरकरार रख्या,
हमारी यादों की खुशबू जरुर आली,
बस तुम अपणी प्यारी सी नाक साफ रख्या।

हमारी दोस्ती का रिश्ता वैसा ही ठंडे मौसम में भी गर्मजोशी से भरा होना चाहिए। हमें एक-दूसरे की देखभाल करनी चाहिए, जैसे सर्दियों में अपनी नाक साफ रखना जरूरी होता है।


प्रेम का इज़हार और विश्वास

"मैं तुमसि बहुत प्यार करदु पर याद रख्या"
मेरु विश्वास और तुमारा हडगा एकी दिन
टुटणा

सच्चे प्यार और विश्वास का बंधन कभी-कभी दर्दनाक हो सकता है, लेकिन यह भरोसा हमेशा बना रहता है कि हम एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे, चाहे हालात कैसे भी हों।

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हालात की मजबूरियां: दुःख का साझा एहसास

त्वेते म्येरि जौरत पर मैं दूर छौं।
त्येरा दुःख मा मैं भी दुखि जरूर छौं।
म्येरू हाथ र कंधा नी त्येरा पास,
क्य कन यार मैं हालत से मजबूर छौं।

जीवन की कठिनाइयां हमें अपनों से दूर कर देती हैं, लेकिन सच्चा साथी वह होता है जो अपने दोस्त के दुख को समझता है, भले ही शारीरिक रूप से दूर हो।


माया का खेल: जीवन का सौदा

सौदा नी ब्योपार नी।
यु नकद नी उधार नी।
माया बस माया होंदी
माया कैकि भी चार नी।

माया, अर्थात मोह या प्रेम, वह भाव है जिसे न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा। यह किसी भी व्यापार का हिस्सा नहीं है, बल्कि दिलों का सौदा है जो बहुत ही खास होता है।


पलायन की त्रासदी: गाँव की खाली होती जिंदगी

कितली कि चा इस्टील का गिलास।
पलायन पर चलणी चर्चा यख खास।
हम बूड बुड्या रैग्यां अब गौंऊँ मा,
नौनि नौना उन्द कना नौकरी तलास।

गाँव के युवा, जो कभी अपने बचपन के खेलों और कहानियों का हिस्सा थे, अब नौकरी की तलाश में दूर जा चुके हैं। इस पलायन ने गाँव की चाय की चुस्की को एक खास चर्चा का विषय बना दिया है।


गाँव के बुजुर्गों की स्थिति

हालत ब्वे बाबा कि तै दिन बटी ख़राब हे
पढायूं लिखायूं नौनू जै दिन बटी साब हे
जीन नि सिखै हो ब्वे बाबा की कदर कन
तुमे ब्वौला स्य किताब बी क्वे किताब हे
विधाता च जु सबूं कु हिसाब किताब करदू
कैगु सनक्वाळी त कैगु द्येर से हिसाब हे

हमारे बुजुर्गों की हालत और हमारे गाँवों की दयनीय स्थिति की एक झलक इन पंक्तियों में है। बुजुर्गों के पास जो ज्ञान और अनुभव है, वह आज की पीढ़ी के लिए किताब जैसा है, जिसे उन्हें पढ़ना चाहिए।


निष्कर्ष

यह कविता और शायरी उत्तराखंड के ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को उजागर करती हैं। इसमें गाँव, दोस्ती, प्रेम, और पलायन की त्रासदी पर गहरा विचार है। यह ब्लॉग न केवल उत्तराखंड की संस्कृति को दर्शाता है, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी ध्यान दिलाता है।


आशा है यह ब्लॉग पोस्ट आपके पाठकों के दिल को छूने वाला होगा। इसे पढ़कर वे अपने जीवन और भावनाओं से जुड़ा महसूस करेंगे।

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